शनिवार, 1 जून 2019

भारत में हर कोई हिस्सेदार है, किरायेदार नहीं...

-रजनीश आनंद-

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कल एक बयान दिया है, जिसका मैं स्वागत करती हूं, ओवैसी ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रहार करते  हुए कहा है कि 300 से ज्यादा सीट लाकर अगर कोई यह सोच रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मनमानी करेंगे, तो मैं उन्हें यह कहना चाहता हूं कि यह संभव नहीं है. मैं खुद संविधान का हवाला देकर मजलूमों के इंसाफ के लिए लड़ूंगा. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि हम यानी के मुसलमान किरायेदार नहीं बल्कि हिस्सेदार हैं. सही है, ऐसी सोच मुसलमानों को डेवलप करनी चाहिए.


मुसलमान या कोई और नागरिक जो हिंदू धर्म का नहीं है, वह क्यों खुद को इस देश में किरायेदार समझे. आखिर संविधान ने जब नागरिकों में कोई फर्क नहीं किया, तो वे निश्चित तौर पर इस देश में हिस्सेदार हैं और उनका इस देश पर हक है. जो लोग उन्हें हिस्सेदार मानने से इनकार करते हैं या फिर उन्हें हिस्सेदारी देने से मना करते हैं वे संविधान का अपमान करते हैं, तो ओवैसी जी हालांकि आपकी बातों से मैं हमेशा सहमत नहीं होती, लेकिन इस बार आपने सही फरमाया है. यह सोच अगर हर मुसलमान अपने अंदर विकसित कर ले कि हम यहां किरायेदार नहीं हिस्सेदार हैं, तो विवाद की कोई वजह ही नहीं रहेगी.

इस देश में जितने भी मुसलमान हैं, वे कोई अरब से नहीं आये हैं, इसी धरती पर जन्मे और हिंदुस्तान की संस्कृति में पले-बढ़े हैं. जन्म-मृत्यु, शादी विवाह के दौरान निभाये जाने वाले रीति-रिवाज इसके उदाहरण हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों इस देश में हिंदू का अन्य धर्म के अल्पसंख्यकों के साथ कभी उस तरह का विवाद नहीं होता जैसा कि मुसलमानों के साथ होता है. दोनों धर्मों के लोग कहीं ना कहीं एक दूसरे को शक की नजर से देखते हैं या इसे यूं भी कह सकते हैं इन दोनों धर्मों के लोगों के बीच नफरत फैलाई जाती है. इस बात को समझने की जरूरत है. अगर हम इतिहास में जायेंगे तो पायेंगे हिंदुस्तान पर हमला करने वाले कई योद्धा मुसलमान थे जिन्होंने इस देश की संपत्ति लूटी और यहां की औरतों के साथ दुर्व्यवहार किया. अरब से आये आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी और मोहम्मद गोरी इसके उदाहरण हैं. खिलजी वंश, तुगलक राजवंश और तैमूरलंग के समय भी हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत थी, मुसलमान शासकों ने हिंदू औरतों और उनकी धार्मिक मान्यता पर प्रहार करके उनके दिल में अपने लिए नफरत बढ़ाई. जबकि होना यह चाहिए था कि वे हिंदुओं के प्रति नरम रवैया अपनाते और अपनी स्वीकार्यता बढ़ाते. आज हम हिंदू और मुसलमानों के बीच जो नफरत देखते हैं उसकी बीज यही से पड़ी थी.

हा़लांकि भारत के महान शासक अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान हिंदुओं को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रयास किये और वे सफल भी हुए. अकबर ने जोधाबाई को अपनी पटरानी बनाया और ‘जजिया कर’ को भी हटाया. वे एक तरह से भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे. उन्होंने यह बात साबित की कि वे बाहरी नहीं इस देश के हैं .हालांकि बाद में औरंगजेब जैसे शासकों ने हिंदुओं पर अत्याचार किया. जबरन धर्मांतरण भी उस काल में एक बड़ा फैक्टर था.

हालांकि यह चीजें समाज से समाप्त हो जाती हैं अगर आजादी के वक्त धर्म के आधार पर देश का बंटवारा ना होता और राजनेता आम लोगों के बीच नफरत ना फैलाते. 1947 के दंगा में अनगिनत लोग दोनों धर्मों के मारे गये, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ. संपत्ति की हानि हुई.  इस समय जो नफरत की खाई दोनों धर्मों के लोगों के बीच पनपी उसे राजनेताओं ने कभी पाटने की कोशिश नहीं की उलटे और गहरा किया. कांग्रेस पार्टी ने मुस़लमानों को अपना वोट बैंक बनाया और कभी उन्हें विकास की कोशिश नहीं की. बहुसंख्यक मुसलमान गरीब थे और उनमें शिक्षा का अभाव था, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा भी हुआ कि शिक्षा का अभाव मुसलमानों के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है. भाजपा ने धार्मिक उन्माद को बढ़ाया और अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर इस देश की राजनीति में अपनी गोटी तो लाल कर ली, लेकिन हिंदू-मुसलमान के बीच दूरी बढ़ा दी.

बावजूद इसके इस देश में हिंदू-मुसलमान साथ रह रहे हैं. एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदार बनकर, क्योंकि भारत का हर नागरिक इस देश का है और वह इस वतन और यहां के लोगों को अपना मानता है. हिंदुओं को यह जरूर सोचना चाहिए कि मुसलमान खुद को असुरक्षित ना महसूस करें, तो मुसलमानों को भी यह सोचना चाहिए कि वे इसी मुल्क के हैं और वे यहीं सबसे सुरक्षित हैं. धर्म के आधार पर विभाजन होने के बाद भी जो लोग हिंदुस्तान छोड़कर नहीं गये और यहीं रहे, उन्हें अपनी जमीन से प्रेम था. इसलिए जो लोग हिंदुस्तान के मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं उन्हें शर्म आनी चाहिए. हालांकि पुराने राजनेता से लेकर गिरिराज सिंह तक पाकिस्तान भेजने की बात कर चुके हैं.

बावजूद इसके मुसलमान हिंदुस्तान में रहते थे खुशहाल थे और रहेंगे क्योंकि भारत का संविधान नागरिकों में अंतर नहीं करता और ना ही देश की संस्कृति इस बात की इजाजत देती है. तो खुश रहिए और मोदी जी अगर देश के 130 करोड़ जनता को एक समान मानने की बात संविधान की कसम खाकर कहते हैं, तो उनपर विश्वास कीजिए और उन्हें मौका दीजिए, हो सकता है उनकी मंशा सही हो, जैसे मुसलमानों को अपनी देशभक्ति पर सवाल उठाना हमेशा पसंद नहीं वैसे ही मोदी जी मंशा पर भी हमेशा सवाल उचित नहीं. विश्वास कीजिए और हिस्सेदार बने रहिए, किरायेदार बनने की जरूरत नहीं.