शनिवार, 30 जुलाई 2016

संबोधन वो, जिसमें लिपटा हो प्रेम...

सोचती हूं क्या कहकर पुकारूं तुम्हें
जिंदगी,जुस्तजू या जान कहूं
या फिर
प्रिये, प्रियतम या दिलबर कहूं
संबोधन वो, जिसमें लिपटा हो प्रेम मेरा
यूं तो शब्दकोश में हैं कई शब्द
लेकिन, प्रतीत होते हैं सब अपूर्ण
परिभाषित नहीं करता कोई
तुम्हारे प्रति मेरा अथाह प्रेम
संभव है मैं व्यक्त नहीं कर पाती
खुद को लेकिन,
ए सुनो ना तुम
जब भी मेरे मुख से निकले
कोई प्रेमपूर्ण शब्द
समझ लेना मैंने पुकारा है तुम्हें
इतना तो समझते हो ना तुम मुझे?

रजनीश आनंद
30-07-16


गुरुवार, 28 जुलाई 2016

बादलों में छिपा चांद...

बादलों में छिपा चांद, मुझे बहुत भाता है
उसका सौंदर्य कुछ देर के लिए
बादलों की ओट में छिप भले ही जाता हो, लेकिन
पुन: उससे रूबरू होने की व्यग्रता
मुझे इंतजार के लिए प्रेरित करती है
अभी बादल छंटेंगे और
नजर आयेगा चांद, उसकी मनोहारी छवि
अहा, इंतजार में यह उम्मीद
मन को कितना सुकून देती है
तुम क्या जानो प्रिये
मैंने तो तुम्हारे इंतजार में
उम्मीद के इसी दीये को रौशन कर रखा है
तमाम आंधी तूफान से
इस दीये को छिपाती फिरती हूं
क्योंकि इसी उम्मीद में है मेरी प्राणवायु
सो इस उम्मीद को ना तोड़ना तुम
एक बारी ही सही, आ जाना तुम

रजनीश आनंद
28-07-16

बुधवार, 27 जुलाई 2016

कौन हो तुम मेरा हृदय में...

हर पल यह सोचती हूं मैं
कौन हो तुम मेरा हृदय में
जिसकी मुस्कान से
तनमन में भर जाती है ऊर्जा
जिसकी चुप्पी  कर देती है अधीर
जिसके ना आने से ढलक जाते हैं अश्रु
जिसकी एक पुकार कर देती है बेकरार
क्यों तुम्हारे साथ के लिए आतुर हूं मैं
क्यों नहीं है कोई और सूरत मनोहर
सिर्फ तुम ही तुम क्यों हो हृदय में
लेकर तेरा नाम क्यों रात सुलाती है मुझे
भोर भी तेरी तसवीर सामने रख जगाती है मुझे
दिखता नहीं कोई बंधन फिर भी
आबद्ध हूं आजीवन तुमसे
कौन हो तुम मेरा हृदय में...

रजनीश आनंद
27-07-16

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

ओ काले मेघ सुन लो मेरी बात...

ओ काले मेघ, तुम तो मेरे बालपन के सखा हो
क्या मेरा एक काम करोगे
तुम्हें हमारी दोस्ती का वास्ता
उस किश्ती का वास्ता जिसे
तुम्हारे बरसने पर मैं चलाया करती थी
तुम्हें तो उससे बहुत प्रेम था
तभी तो तेज बरस कर तुम उसे ले जाते थे अपने साथ
तुमने तो कइयों के संदेश पहुंचाये हैं
तो क्या मेरी पीड़ा को तुम नहीं समझोगे
तुम पर तो कोई बंदिश भीनहीं कहीं भी आ- जा सकते हो
तो जाओ ना मेरे प्रियतम के गांव
 जाकर कहना उससे अब सही नहीं जाती विरह की पीड़ा
वो एक बार तो आ जाये और सजा ले मुझे अपनी बांहों में
फिर तो मन में उसकी मूरत और तन में उसके स्पर्श का एहसास
काफी है पूरी जिंदगी गुजारने के लिए
जानते हो काले मेघ, मैंने इन हवाओं से भी कहा था
मेरा संदेश मेरे प्रिये तक पहुंचा दो
लेकिन इसने पहुंचाया नहीं, इसे ईर्ष्या होती है मुझसे
इसे मिला नहीं ना कोई मेरे प्रिये सा प्रेम करने वाला
लेकिन तुम तो मेरे सखा हो, मेरा ये काम कर दो
ना-ना मेरी पीड़ा पर यहां ना आंसू बहाना
थाम लो अपने आंसुओं को, यहां मत बरसाओ इन्हें
जाओ जाकर मेरे प्रिये पर बरसना
उन्हें इन आंसुओं से कर देना तर-बतर
ताकि मेरी पीड़ा महसूस हो उन्हें और
कम से कम एक बार तो आ जाये वो
उस दिन तुम मेरे आंगन में बरसाना, खुशी के आंसू
ताकि भींग जायें  हम प्रेम की बरसात में
ओ काले मेघ...

रजनीश आनंद
22-07-16

सपना जो सच हो गया

एक कहानी सुनेंगे आप. मुझे बहुत पसंद है,शायद आपको भी भा जाये. ना भाये तो ना पढ़ें लेकिन मैं कह रही हूं. यह प्रेम कहानी है. कहानी का शीर्षक है ‘सपना जो सच हो गया’. इस कहानी में सपने हैं, यथार्थ है और जीवन को जीने की चाह है. चूंकि मैंने बचपन से जितनी कहानियां सुनीं उनमें कहानियों की शुरुआत कुछ ऐसे होती थी कि एक समय की बात है किसी राज्य में एक राजकुमारी रहती थी. उस राज्य का नाम विजयगढ़ और राजकुमारी का नाम विजया था. तो मेरी कहानी में भी एक राजकुमारी है लेकिन अब विजयगढ़ तो है नहीं, सो वो कहां रहेगी, चलिए मेरे शहर में ही रहेगी रांची में और नाम उसका होगा रख लेते है चलिए निहारिका. लेकिन पुरानी कहानी की नायिकाओं की तरह वह बहुत सुंदर तो नहीं थी, हां जो भी उसे देखता उसकी प्रशंसा करता था. यानी यह कह सकते है कि हंसमुख थी. उसके कई सपने थे. तो उसके सपने और उसके सपनों के राजकुमार के बारे में मैं आपको बताती रहूंगी आज के लिए इतना ही ...

इंतजार में तुम्हारे मैं हर रात जागूंगी...

इंतजार में तुम्हारे मैं हर रात जागूंगी
तुम आओ न आओ, राह तकना नहीं छोड़ूंगी
खुद को तुम्हारे लिए संवार कर टकटकी लगाये
रात के सन्नाटे में दरवाजे पर बैठी हूं मैं
कहीं भूले से दस्तक दे दो दरवाजे पर तुम
इस डर से की कहीं सुन ना पाऊं तुम्हारी दस्तक
मैंने दरवाजा भी बंद नहीं किया है
सामने चांद मुस्कुरा रहा है, लेकिन उसकी चांदनी
जरा भी नहीं भा रही मुझे, वो तो तब सुंदर होगी जब तुम आओगे
जब-जब बोझिल होती हैं आंखें मेरी
भान होता है जैसे, तुमने लगायी हो आवाज
देखो प्रिये मैं आ गया और यह आवाज
मुझे भर देती है नयी ऊर्जा से
और मैं फिर करने लगती हूं तुम्हारा इंतजार
जी चाहता है, तुम एक बार आ जाओ
और भर लो मुझे अपनी बांहों में
लेकिन शायद इंतजार ही मेरी नियति है
आज समझ पायी हूं मैं मीरा के प्रेम को, उसके दर्द को
कसम है मुझे, जो राह तकने में कोई भी कोताही करूं
तुम आओ ना आओ प्रिये, मैं इंतजार करना नहीं छोडूंगी
क्योंकि अद्‌भुत है इंतजार का सुख और मैं जी रही हूं इसे...
रजनीश आनंद
21-07-16

बुधवार, 20 जुलाई 2016

दिमाग के फितूर का परिणाम है बलात्कार

पुरुषों के दिमाग में व्याप्त फितूर के कारण हमारे समाज में बलात्कार की इतनी घटनाएं होती हैं.  प्राचीन काल से हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं होती रहीं हैं, अब तो यह इतनी आम हो गयी है कि हम इसके आदी हो चुके हैं, तभी तो इस अपराध की घटना को हम पढ़ कर यूं भूल जाते हैं, जैसे यह कोई रूटीन खबर हो. कई घटनाएं तो इसलिए सामने नहीं आतीं कि इससे लड़की की बदनामी होती है. मीडिया में लड़की का नाम नहीं छपा जाता और हम इसे बड़े शान से बताते हैं कि लड़की का नाम बदल दिया गया है. वाह रे समाज. जो पीड़ित है बदनामी उसी की होती है? यह तो बात हमारे देश की है, लेकिन विदेशों में भी बलात्कार की घटनाएं आम हैं.

बलात्कार को दिमागी फितूर इसलिए कह रही हूं क्योंकि तमाम कठोर कानून के बावजूद इस अपराध पर लगाम नहीं कस रही है. आदिकाल से हमारे देश में बलात्कार होते आये हैं. पौराणिक कथाओं में भी बलात्कार का जिक्र है. गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ देवराज इंद्र ने बलात्कार किया था. इसके अलावा भी कई उदाहरण मौजूद हैं. मध्ययुग में तो बलात्कार आम था. हालांकि अब जबकि संविधान ने महिलाओं को समान नागरिक अधिकार दिये हैं और बलात्कार के विरूद्ध कई कड़े कानून भी बनाये हैं, यह अपराध बदस्तूर जारी है, ऐसा क्यों यह सवाल लाजिमी है?

रोहतक में बलात्कार पीड़ित लड़की के साथ जो कुछ हुआ, उसे क्या कहा जाये. एक महिला होने के नाते मुझे जो समझ आता है उसके आधार पर यह कह सकती हूं कि ऐसे पुरुषों  (जो बलात्कार जैसे अपराध करते हैं) के लिए महिलाएं बस शरीर हैं, जिसे जरिये वे सिर्फ अपनी हवस की पूर्ति कर करते हैं. उनके कृत्य से एक महिला को क्या महसूस होता है इस बात से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता. महिला की सहमति-असहमति से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता.

कई बार यह भी देखा जाता है कि किसी महिला को सबक सिखाने या उसके परिवार से दुश्मनी होने पर भी बलात्कार जैसे कृत्य को अंजाम दिया जाता है. खासकर ग्रामीण इलाकों में तो जमीन -जायदाद के मामलों में भी महिला के साथ बलात्कार कर लोग खुद को जीता हुआ महसूस करते हैं. दांपत्य जीवन में भी बलात्कार की घटनाएं होती हैं, जिसे औरतें अपनी नियति मान बैठती हैं और पुरुष अपना हक.

कुछ लोग तो दिमागी रूप से बीमार होते हैं और जहां भी अकेली महिला को पाते हैं अपनी यौन इच्छा को शांत करने लगते हैं. ऐसे लोग तो एक चार साल की बच्ची और 40 साल की औरत का फर्क भी नहीं समझते. ऐसे ही लोग हर सीमा को पार कर जाते हैं और अपने अपराध को जघन्य बना देते हैं. कई बार ऐसी खबरें आतीं हैं जिनकी चर्चा एक औरत होने के नाते करते हुए सिहर जाती हूं. मसलन प्राइवेट पार्ट को क्षतिग्रस्त करना. अंदर कांच के टुकड़े डाल देना. कंकड़-पत्थर डालना. और भी कई बातें हैं जिन्हें लिखने में रूह कांप जाती है. हालांकि जो लोग खबरों से रूबरू रहते हैं उन्हें भली-भांति पता है कि और किस-किस तरह पाश्विक व्यवहार क्या जाता है.

वह भी तब जबकि इस अपराध के खिलाफ ‘रेयर आफ रेयरेस्ट’ मामला होने पर मृत्युदंड तक का प्रमाण है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष हमारे देश में लगभग 30 हजार बलात्कार की घटनाएं होतीं हैं, जो कि दर्ज की जाती हैं. इसके अलावा हजारों घटनाएं ऐसी होतीं हैं, जो दर्ज नहीं की जातीं. इस परिस्थिति में बलात्कार कभी रूकेगा यह संभव प्रतीत नहीं होता है, जबतक कि लोग महिलाओं के प्रति अपना सोच नहीं बदलेंगे.

रजनीश आनंद
20-7-16

सोमवार, 18 जुलाई 2016

...थोड़ा और इंतजार

पता नहीं क्यों आज, रेत के टीले पर बैठ
मैं लगी थी बनाने एक घरौंदा
एक उम्मीद सी जागी थी
मानस पटल पर उभरी थी
वही मनमोहिनी आकृति
जिसकी वाणी जादुई, आंखें शरारती थीं
लगा था बाहों में सजकर कहूं
आ गये तुम, देखो बनाया है
मैंने हमारे लिए एक घरौंदा
बस एक कमी है, तुम आकर सजा दो इसमें पुटुस के फूल
फूलों से रंगीन ख्वाब को सच कर दो
जिन्हें सजाकर रखा है मैंने अपनी आंखों में
आकर रख दो मेरे सीने पर पर अपना हाथ
ताकि इस धड़कते दिल को भी
मिल जाये थोड़ा सुकून
और यह बेसब्र ना हो कर ले
थोड़ा और इंतजार और इंतजार...
रजनीश आनंद
18-07-16

बुधवार, 13 जुलाई 2016

हां मुझे एक मर्द ....

हां मुझे एक मर्द चाहिए. यह एक शाश्वत सत्य है. मैं एक औरत हूं तो निश्चततौर पर मुझे एक मर्द चाहिए. यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है. मेरे अंदर जो भावनाएं हैं उन्हें संपूर्ण एक पुरुष ही कर सकता है.  मैं जानती हूं कि मेरे इन चंद शब्द से ही कितने लोगों को परेशानी हो रही होगी, कुछ लोग मुझे चरित्रहीन का सर्टिफिकेट भी दे चुके होंगे. जी जरूर दीजिए किसी के प्रमाणपत्र दे देने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन यह एक सच्चाई है कि हर औरत को एक मर्द चाहिए होता है. लेकिन हमारे समाज की परिकल्पना कुछ इस तरह से की गयी है कि औरतें संकोचवश कुछ कहती नहीं और उसके इस संकोच को पुरुषवादी समाज अपने तरीके से लेता है और खुद को औरत का भाग्यविधाता मान बैठता है. औरतों को इस बात का हक ही नहीं है कि वे अपने बारे में कोई निर्णय लें.
प्रकृति ने स्त्री-पुरूष दोनों को गढ़ा, उसे एक दूसरे का पूरक बनाया. उनमें कई ऐसी भावनाएं दी जिसकी पूर्ति दोनों संग-संग करते हैं. विज्ञान भी इस बात को मानता है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. जब पुरुष और महिला एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं तो दोनों में  सेक्स हार्मोन  टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन स्राव होता है. जब संबंध थोड़े मजबूत और दीर्घकालीन होते हैं तो  ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन जैसे हार्मोंन उन्हें और भी नजदीक लाते हैं और दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहते हैं. यह बताने का आशय सिर्फ यह है कि भावनाएं और प्रतिक्रिया दोनों में एक जैसी ही होती है.

ऐसे में यह कैसे सही माना जायेगा कि पुरुष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति खुल्लम खुल्ला करे और औरत बेचारी सहमी-दबी भावनाओं को नियंत्रित करे और कुंठित हो जाये. अरे भाई जो आग एक पुरुष को जलाती है वह औरत को भी जलाती है. फिर यह भेदभाव क्यों? जब प्रकृति ने भावनाएं देने में कजूंसी नहीं की, तो समाज क्यों कर रहा है. लड़के अगर किसी लड़की को ‘मस्त’ कह दें, तो यह उनका अधिकार, सुनने वाले मुस्कुरा देंगे, लेकिन लड़कियां सलमान खान को भी ‘सेक्सी’ कह दें, तो छिछोरी हो जाती हैं.

मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि जीने का हक सबको है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. तो औरत को भी जीने दीजिए. वह जिसके साथ जीना चाहती है. कम से कम उसके शरीर के बारे में तो निर्णय एक पुरुष ना करे. वह खुद समर्थ है. वह जानती है कि उसे किसके साथ अपना शरीर शेयर करना है और किसके साथ नहीं. जबरदस्ती उसे पसंद नहीं, चाहे वह कोई भी करे. बलात्कार एक महिला के साथ जघन्य अपराध है जिसकी माफी नहीं. यह समाज समझे कि औरत पुरुषों से नफरत नहीं करती उसके लिए जीती है, उससे प्रेम करती है, लेकिन वह पुरुष कौन होगा, जिससे वह प्रेम करेगी यह हक तो एक औरत को होना है, कोई दूसरा यह निर्णय क्योंकर करेगा?

रजनीश आनंद
13-07-16

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

... और मैं तुम्हारी हो गयी

उस दिन मैं बहुत दुखी थी
तो तुम्हारी बहुत याद आयी थी
आज मैं बहुत खुश हूं
पर तुम्हारी कमी है
ऐसा तो नहीं कहती मैं कि
तुम्हें सबसे ज्यादा प्रेम करती हूं
लेकिन दावा है मेरा
किसी से कम भी नहीं करती हूं
जो तुम्हें प्रिय वो मुझे प्यारा
जो तुम कहो वो कर्णप्रिय
ना जाने क्यों तुम्हारे लिए
सीने में एक टीस सी उठती है
देख तुम्हारा चांद सा मुखड़ा,
खुद पर गर्व होता है
सोचती हूं, ईश्वर को कितना प्यार होगा मुझसे
तब तो उसने मेरी मांग में सजा दिया तुम्हें
...और मैं तुम्हारी हो गयी सिर्फ तुम्हारी

रजनीश आनंद
13-07-16

सोमवार, 11 जुलाई 2016

पावस ऋतु और तुम

पावस ऋतु हमेशा जलाती होगी
लेकिन इस बार तो
उम्मीद कि डोर मैंने थाम रखी है
जब भी आकाश में मेघ उमड़ते हैं
प्रतीत होता है तुम आसपास कहीं हो
अपने प्रेम की वर्षा कर तनमन शीतल कर दोगे
देखो ना,  बिजली भी चहक कर तुम्हारे आने का संदेश देती है
इस सावन जब बांहों में भरोगे तुम
बूंदें बादलों से  नहीं, मेरी आंखों से बरसेंगे
ए सुनो ना प्रिये
मेरे आंसुओं को तुम
बन धरती खुद में समेट लेना
क्योंकि वो आंसू नहीं प्रेम है मेरा
तुम्हारे लिये तड़प का प्रमाण है
जब कई रातें मैंने तुम्हारे इंतजार में काट दी
पलकें नहीं भींगने दी, क्योंकि तुम पास नहीं थे
लेकिन अब एक आस है
तभी तो जब-जब आकाश में काले बादल छाते हैं
मैं भागकर छत पर जाती हूं
काले बादलों को निहारती हूं
प्रतीत होता है प्रिय जैसे
अभी, बस अभी बूंद बन
तुम कर लोगे मेरा स्पर्श...

रजनीश आनंद
12-07-16

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

क्या प्रेम महज ‘इंटरटेनमेंट’ का साधन है?

क्या प्रेम महज ‘इंटरटेनमेंट’ का साधन है? यह सवाल मुझे कल से परेशान कर रहा है. कारण यह है कि मुझे प्रेम पर बड़ा यकीन है लेकिन मेरे एक अनुज ने यह कह दिया कि यह महज एक इंटरटेनमेंट का साधन है. हालांकि उसने जो सवाल उठाये, वह तथ्यात्मक थे और उनसे इनकार नहीं किया जा सकता.
मेरा यह मानना है कि प्रेम एक अद्‌भुत अनुभूति है, जिसे इंसान के साथ-साथ जानवर भी समझते और महसूस करते हैं. मैंने तो इसे अपने जीवन में महसूस किया है और निश्चित तौर पर आपने भी अपने जीवन में महसूस किया होगा. प्रेम कई रिश्तों में होता है और उन सब की अपनी अहमियत है, लेकिन यहां चर्चा सिर्फ एक स्त्री और पुरुष के संबंधों की हो रही है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है और वो होता भी है. खास आयुवर्ग में यह आकर्षण ज्यादा होता है और टीनएजर्स किसी भी खूबसूरत चेहरे पर मर मिटते हैं, यह बात दीगर है कि खूबसूरती का पैमाना सबके लिए अलग होता है और कौन किसे भायेगा, यह हर व्यक्ति के पसंद पर निर्भर करता है. लेकिन क्या किसी का चेहरा भर अच्छा लगना प्रेम की निशानी है? आखिर प्रेम है क्या? अपनी राय में कहूं, तो प्रेम आपको तब होता है जब आपको कोई बहुत खास लगता है. उसका साथ, उसकी बातें और संभवत: उसका व्यक्तित्व आपको खुशी देता है. जब आपको किसी के साथ से खुशी मिले तो निश्चत तौर पर यह प्रेम है. प्रेम के रिश्ते में एक-दूसरे के लिए सम्मान का होना भी बहुत जरूरी है. अगर एक व्यक्ति किसी का सम्मान करे और दूसरा उसका अपमान करे, तो प्रेम ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है. भले ही अगर आप रिश्तों की डोर में बंधें हैं, तो वह रिश्ता रह जाये, लेकिन प्रेम तो नहीं रहेगा, इसका मुझे यकीन है.

प्रेम नहीं है इंटरटेनमेंट का साधन
आज के दौर में अगर प्रेम का वर्गीकरण किया जाये, तो हम पायेंगे कि यह तीन तरह का हो गया है-1. प्रेम 2. आकर्षण 3. इंटरटेनमेंट. प्रेम में उस तरह के संबंध हैं जो सही में एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के साथ जीना चाहते हैं. यह बात अलग है कि इनमें से कितने सामाजिक रिश्तों में बंध पाते हैं और कितने नहीं. लेकिन अगर दो लोग जिनमें प्रेम है वो सामाजिक रिश्तों में ना बंध पायें तो उनका प्रेम नापाक  नहीं हो जाता है. मैं यह मानती हूं कि प्रेम ऐसे सामाजिक रिश्तों का मोहताज नहीं वह तो हमेशा कायम रहता है और पवित्र होता है. दूसरे कैटेगरी में आता है आकर्षण. ऐसा संभव है कि आप किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो जायें, उसकी कोई बात कोई अदा आपको भाती हो. लेकिन यह प्रेम नहीं है. कोई व्यक्ति किसी खिलाड़ी, किसी होरो-हीरोइन और किसी राजनेता के प्रति भी आकर्षित होता है, तो क्या उसे प्रेम कहा जा सकता है. प्रेम में इंसान दूसरे इंसान की कमियों के साथ उसे स्वीकार करता है, लेकिन यह बात आकर्षण में लागू नहीं होती. तीसरी कैटेगरी है इंटरटेनमेंट की जो बहुत ही खतरनाक है. कई बार ऐसा होता है कि कोई लड़का या लड़की महज मजा मस्ती के लिए किसी के साथ संबंध बनाते हैं और अगले को ऐसा महसूस करवाते हैं कि वह उसके लिए खास है और वह उसे प्रेम करता है, जबकि वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है. ऐसे में अगर दोनों व्यक्ति का एक जैसा नजरिया हो, तब तो किसी हद तक यह ठीक भी है, लेकिन अगर एक इंटरटेनमेंट कर रहा हो और दूसरा रिश्ते के प्रति गंभीर हो, तो स्थिति बहुत खराब हो जाती है. ऐसे रिश्ते को प्रेम की संज्ञा देना मेरी समझ से बहुत ही गलत है.

लड़कियां जरूरत के लिए लड़कों से करती हैं प्रेम का नाटक
आधुनिक समाज में एक बड़ा परिवर्तन यह देखने को मिल रहा है कि अब लड़कियों के भी कई प्रेमी होते हैं, आज से महज 10-15 साल पहले तक एक टाइम में एक लड़के की तो कई प्रेमिकाएं होती थीं, लेकिन लड़कियां इस ट्रेंड में शामिल नहीं थीं. मैं ट्रेंड का विरोध भी नहीं कर रही, क्योंकि किसी के निजी फैसले पर बोलने का मैं हक नहीं रखती. वैसे भी जब लड़के एक साथ पांच लड़कियों से प्रेम करके पाक-साफ रह सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? यहां सवाल यह है कि क्या आप जिनके साथ प्रेम में हैं, उन पांचों के साथ आप प्रेम कर रहे हैं या फिर इंटरटेनमेंट? आज के लड़कों का लड़कियों पर यह आरोप है कि वे मतलब के लिए प्रेम करती हैं और मतलब निकल जाने पर ऐसे बिहेव करती हैं जैसे उनके बीच कभी प्रेम जैसा कुछ था ही नहीं, लड़के ने गलत समझा. अपने इस आरोप के पक्ष में वे तर्क देते हैं कि लड़कियों को अपना काम करवाने के लिए, मसलन फीस जमा करने, नोट्‌स लाने, फॉर्म जमा करने, मोबाइल रिचार्ज कराने, बाइक पर घूमाने के लिए लड़कों की जरूरत होती है और वे इसके लिए एक लड़के से दोस्ती करती हैं. मैंने इस आरोप की सच्चाई को परखने की कोशिश की और पाया कि यह आरोप सौ प्रतिशत भले ही सच ना हो, लेकिन सच है.

ब्रेकअप होने पर लड़कों को भी होता है दुख
अक्सर यह माना जाता है कि लड़के दिलफेंक होते हैं और वे ‘तू नहीं कोई और सही’ के सिद्धांत पर चलते हुए हर लड़की को ‘ट्राई’ करते हैं. तो क्या लड़के सही मायनों में किसी से प्रेम नहीं करते? नहीं यह बात मुझे तो सही नहीं लगती. अगर ऐसा होता तो इतनी प्रेम कहानियां हमारे सामने नहीं होतीं. हां यह बात जरूर है कि लड़के संबंध टूटने पर उतने उदास नहीं होते, जितनी लड़कियां होती हैं. वे दर्द को इस तर्ज पर झेल लेते हैं कि -मर्द को दर्द नहीं होता. लेकिन सच्चाई यह है कि दर्द उन्हें भी होता है और जब उनका प्यार उनसे दूर होता है तो रोना उन्हें भी आता है. आंसू उनके भी टपकते हैं.

रजनीश आनंद
08-07-16


बुधवार, 6 जुलाई 2016

मेरा कुछ भी नहीं प्रिये, जो है सब तुम्हारा है

मेरा कुछ भी नहीं प्रिये,
जो है सब तुम्हारा है.
होंठों  पर थिरकती है हंसी तब,
जब पास तुम आते  हो.
कजरारे नयन भी मतवाले होते हैं तब,
जब झलक तुम्हारी पाते हैं.
खनकती कलाइयों में हैं चूड़ियां तब,
जब तुम संग होते हो.
मेरा कुछ भी नहीं प्रिये...
छनक जाती है पैरों में पायल तब,
जब बाहुपाश में तुम कसते हो.
केश बन बादल बिखरते हैं तब,
जब लबों पर तुम्हारे अधरों के निशान बनते हैं.
बरस उठती हैं मेरे नैना तब,
जब निर्मोही तुम हो जाते हो.
फिर भी पहाड़ों सा स्थिर रहता मन,
कहता तुम प्रियतम मेरे मैं प्रेयसी तुम्हारी हूं.
मेरा कुछ ही नहीं प्रिये,
जो है सब तुम्हारा है...
रजनीश आनंद
07-07-16

इस स्याह रात में...

इस स्याह रात में अकेली बैठ
मैं करती हूं किसका इंतजार
जबकि घर के दरवाजे की कुंड़ी को
मैंने खुद ही किया है बंद
जानती हूं कोई नहीं है आनेवाला
फिर क्यों रह-रह कर होती है
 किसी के आने की आहट
कोई और ना सुन पाये शायद
लेकिन मैंने तो सुनी है
तुम्हारी खनकती हंसी
वो तुम्हारा मादक स्पर्श
इस स्याह रात को बनाता है
और भी मादक
करती हूं कोशिश तुम्हें ढूंढने की
फिर खुद पर ही हंस पड़ती हूं मैं
कितनी नासमझ हूं
किसे तलाश रही हूं, जो मुझमें है समाया
जरूरत है तो बस उसे महसूस करने की
इस स्याह रात में ....

रजनीश आनंद
06-07-16

सोमवार, 4 जुलाई 2016

मेरे चेहरे पर लिखा है तेरा नाम

मेरे चेहरे पर लिखा है तेरा नाम
जो चाहे वह पढ़ सकता है
मैंने तो कोशिश नहीं की कुछ भी छिपाने की
कहा है, गर्व से मैं तुम्हारी हूं
जब से तुम आये जीवन में
बिन काजल कजरारे हो गये नयन
उन नयनों में जागी जीवन के प्रति आस
जीवनपथ पर रुआंसे हो गये थे नयन
लेकिन, फिर दिल के दरवाजे पर दस्तक दी तुमने
कहा, जीवन तो अभी शुरू हुआ है प्रिये
आओ थामो मेरा हाथ, देखो दुनिया बहुत हसीन है
पता नहीं क्यों  जब थामा तुम्हारा हाथ
लगा शब्द-शब्द सच है तुम्हारा
प्रारब्ध हो तुम मेरे और मैं हो गयी तुम्हारी
भले ही सपनों में हो
लेकिन अद्‌भुत, अनोखे हो तुम
काश की साकार स्वरूप में दिख जाओ तुम
संपूर्ण हो जाये प्रेम हमारा...
रजनीश आनंद
04-07-16