बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

माँ

तोतली बोली से चेहरे पर 
उग आयी हल्की मूंछों तक
मैंने हर रोज संवारना चाहा
खुशी से तुममें अपना जीवन
स्तनपान हो या स्नान, औलाद देती है
सिर्फ और सिर्फ खुशी एक माँ को
हाँ, जो तड़प और भय माँ 
सहेजे है कलेजे में, वह भी कारक हैं
बस प्रेम और हर्ष का। 
बावजूद इसके माँ कई बार
नहीं बन पाती, संतान के लिए कवच
जिस गोद में वह सुकून से सोता है
वहाँ नहीं होती दवा हर मर्ज की
कई दफा योद्धा माताएं भी
बेबस होती हैं नियति के समझ
नजरें उतारते और मिर्च जलाते
कभी कभी उसकी खांसी बन जाती है दमा
भगवान के नाम का जाप करती माताएं
कुछ नहीं भूलतीं ना जीतिया ना  छठ
गुहार, लड़ाई, सिफारिश कुछ भी नहीं छोड़ती
फिर भी ना जाने हो जाती है क्या चूक... 

रजनीश आनंद

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

चांद रात

चांद रात को मैं अकेली
खिड़की से देख रही थी
बाहर का नजारा, सर्द थी रात
कई सवाल अतीत से सामने आकर
बढ़ा रहे थे कमरे की उष्णता
चांद का चुंबन, कभी उत्तेजना से सराबोर था
लेकिन आज, निरर्थक, निष्क्रिय
समय की गति अनोखी है
यह सोने को राख और 
राख को सोना बना सकती है
किंतु जबतक यह रहस्य उजागर होता है
सफेद हो जाते हैं केश
और नजर हो जाती है कमजोर
काश कि जिंदगी, पहली पाली में ही
समझा देती यह गूढ़ रहस्य
तो अनगिनत रिश्ते टूटने से बच जाते,,, काश

रजनीश आनंद


बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मर्तबान

इंसान अंदर से खाली होता है
चीनी मिट्टी के मर्तबान की तरह
हाँ, कांच के मर्तबान कम ही होते हैं
जिससे होकर हर नजर गुजर जाये
तभी तो जाहिर नहीं होती लोगों की शख्सीयत
इंसान का खालीपन उसकी पूंजी है
जिसके भरोसे वह खेलता है दांव
वह पूंजी के साथ लौटा लाना चाहता है
कारोबार का मुनाफा भी, किंतु
इंसान यह नहीं जानता कि
जिस चीज़ को वह अपनी पूंजी मानता है
दरअसल वह  जीवन का सबसे बड़ा दांव है
वो भ्रम है, जिसके होने की गलतफहमी में
इंसान पूरी जिंदगी मिटा देता है
लेकिन जब भी वो  होता है अकेला
चीनी मिट्टी का मर्तबान उसे दिखाता है
अपने अंदर की रिक्तता, वह सिसकता है
आंसू से भर जाता है मर्तबान, 
लेकिन कायम है सिसकती रिक्तता... 

रजनीश आनंद