मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

ना जाने कौन था वो...

ना जानें कौन था वो...

ना जानें कौन था वो...
मेरी बेख्वाब आंखों 
को ख्वाब दे गया,
पहचान तो दूर
नाम भी ना जान सकी थी मैं,
कहा था, उसने
जीवन भर का होगा हमारा साथ,
फिर क्यों मुझे बिलखता छोड़ गया,
ना जानें कौन था वो...
कहा था, उसने
अनुपम है मेरा सौंदर्य,
उसकी बातों पर ठीक से
गुमान भी नहीं कर पायी थी
कि, वो मुझे अकेला छोड़ गया
ना जानें कौन था वो...
उसकी बातों से मुझे
हुआ था एहसास अपनी पूर्णता का
फिर , क्यों वो मुझे अधूरा छोड़ गया
ना जाने कौन था वो...

रजनीश आनंद
29-12-2015


शनिवार, 26 दिसंबर 2015

सेकेंड हैंड हसबैंड का फर्स्ट हैंड प्यार

गूगल से साभार : प्रतीकात्मक तसवीर
टीवी पर आजकल एक विज्ञापन बहुत दिखाया जा रहा है, जिसमें यह बताया जाता है कि सेकेंड हैंड चीजों से भी प्यार करना चाहिए. विज्ञापन में एक युवक अपनी खुशी लोगों से इसलिए शेयर नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसकी गाड़ी पुरानी है और वह हमेशा नयी चीजों से प्यार करता है.

आखिर क्यों यह मानसिकता इंसान के अंदर है. वह क्योें उन्हीं चीजों से प्यार करता है, जो पहली बार होता है, दूसरी बार होने से या तो उसका प्यार कम हो जाता है या फिर उस चीज में वह उत्साह और रोमांच नहीं होता. कुछ ऐसा ही हुआ है मेरी कहानी की नायिका रितिका के साथ. रितिका का पति उससे प्यार तो करता है, लेकिन बदले में उससे वैसा ही प्यार चाहता है, जैसा की उसकी पहली पत्नी उसे दिया करती थी. वह उसके पहनावे, बोलचाल अौर यहां तक की सेक्स के दौरान भी अपनी पहली पत्नी की छवि ढूंढ़ता है.
रितिका को यह बात पसंद नहीं. आखिर वह एक अलग इंसान है, उसका अपना अस्तित्व है, वह किसी की परछाई क्यों बने.
अब तक आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों मैं आपको रितिका की कहानी सुना रही हूं. सच है. आपका रितिका से क्या लेना -देना. सही है. लेकिन मैं आपसे यह सब इसलिए कह रही हूं, क्योंकि हो सकता है कि आपके अंदर भी कोई रितिका हो. हो सकता है, आपके अंदर भी कुछ उसी तरह टूट रहा हो, जैसे रितिका के अंदर हर क्षण टूटता है. जो लोग कहानी लिखने में माहिर हैं, वह रितिका के जीवन पर एक अच्छी कहानी लिख सकते हैं.

तो सुनिए कुछ फैक्ट्‌स जिससे आप रितिका का दुख समझ सकेंगे. रितिका एक 25 साल की गेंहुएं रंग की लड़की है. चुनौतियों का सामना करना उसे पसंद है. प्रगतिशील सोच के साथ जीने वाली लड़की. उसके जीवन में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था. तभी उसके जीवन में अमन आया. अमन अॅाफिस में उसका सीनियर था, उसकी उम्र 35-36 साल के आसपास होगी.
 उनका परिचय रितिका के बॉस ने करवाया था. वह काफी बड़ी-बड़ी बातें करता. आधुनिक सोच, समाज की कुरीतियों के खिलाफ बोलता. रितिका को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता. सो रितिका उसे पसंद करती थी. एक दिन रितिका के साथ कुछ ऐसा हुआ कि वह अमन के बिना अपनी जिंदगी की कल्पना करना ही भूल गयी. रितिका और अमन अॅाफिस के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद घर जा रहे थे. तब तक उनदोनों के बीच दोस्ती ही थी. लेकिन उस दिन....

रितिका के घर पहुंचने से पहले अमन ने एक जगह पर कार रोकी और कार की लाइट बंद कर दी. रितिका ने पूछा क्या हुआ. अमन ने रितिका का हाथ जोर से पकड़ा और उसे अपनी ओर खींचा. इससे पहले रितिका कुछ समझ पाती अमन ने उससे पूछा, मुझसे शादी करोगी. अमन के सवाल पर रितिका हैरान थी. उसके जवाब देने से पहले ही अमन ने उसके होंठों को अपने होंठों से सिल दिया, जिसके कारण रितिका कुछ बोल नहीं पायी.

 कुछ देर वैसे ही रहने के बाद अमन रितिका से अलग हो गया और उसने तेजी से कार को आगे बढ़ाया. कार सीधा रितिका के घर आकर रूकी. अमन के इस बर्ताव से रितिका परेशान थी. वह कुछ बोल नहीं पायी. अगले दिन अमन उसके घर तक आ गया और अंतत: तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दोनों की शादी हो गयी.

रितिका भले ही चुनौतियों से खेलने वाली लड़की थी, लेकिन उसके अंदर भी एक नारी सुलभ गुण थे. वह यह चाहती थी कि उसका पति या फिर जिससे वह प्यार करे, वह उसे दिलो-जान से चाहे. जब भी वह उसके पास हो, उसे कम से कम एक बार तो आई लव यू कह दे. वह उसके पास आये, तो वह सिर्फ उसका होगा.

बस इन्हीं अरमानों के साथ रितिका अमन की हो गयी. उसे उम्मीद थी कि उसका अमन उसे घर वो खुशी देगा, जिसकी उसे चाहत थी.

ससुराल की दहलीज में पांव रखते ही रितिका को कुछ अनोखे अहसास हुए, जिनसे उसका सामना कभी नहीं हुआ था. मसलन उसके ससुराल का कोई शादी में शामिल नहीं हुआ. अमन ने उस वक्त बहुत हिम्मत दिखाई. रितिका के घर वालों को भरोसा दिलाया. हर परिस्थिति में उसका साथ निभाने की कसमें खाईं. लेकिन ससुराल में जब पहले ही दिन उसकी मां ने रितिका पर गालियों की बौछार की, तो वह शांत रहा.

रितिका के लिए यह अलग से अनुभव था. इसके लिए वह तैयार नहीं थी. खैर उसके घर जाते ही उसकी सासुमां बोरिया-बिस्तर बांधकर गांव चली गयीं. रितिका और अमन के मिलन की पहली रात करीब थी. रितिका के अरमान फूल की तरह खिल रहे थे. वह समझ नहीं पा रही थी कि जब वह दोनों बिना किसी दीवार के आमने-सामने होंगे, तो क्या और कैसे होगा.

रात को अमन ने उसे बाहर खाना खिलाया और कुछ फूल खरीद वे वापस घर आ गये. अमन ने उसे गिफ्ट पैक पकड़ाया. उसमें एक मैरून कलर का गाउन और एक सोने का चेन था. अमन के कहे अनुसार रितिका ने उसे पहना और वापस बेडरूम में आयी.

अमन ने उसे बांहों में लिया. रितिका का दिल जोर से धड़क रहा था. रितिका को लगा, अभी अमन उससे यह कहेगा कि वह उसके लिए खास है. वह उसके लिए कुछ भी कर सकता है. लेकिन रितिका के सपनों जैसा कोई व्यवहार अमन ने नहीं किया. वह तो बस उसके शरीर को भोग लेना चाहता था. अमन के व्यवहार से रितिका खुश नहीं थी. लेकिन उसने सोचा शायद प्यार ऐसे ही होता होगा. दो-चार दिन ऐसे ही चला.

लेकिन एक दिन रितिका ने अमन से कह ही दिया, क्या तुम आते ही शुरू हो जाते हो, कभी तो मेरी बातें भी सुन लिया करो. कभी तो कहो, कि तुम मुझे कितना चाहते हो. अमन मुस्कुराया, कहा, यह सब फिल्मों में होता है. रितिका ने कहा, क्या प्यार में शरीर ज्यादा जरूरी है. मेरे लिए तो प्यार दो आत्माओं का मिलन है. अमन ने कहा, हां और तो आत्मा ऐसे ही मिलते हैं. यह कहते हुए वह फिर उसके करीब आ गया.

लेकिन आज रितिका तैयार नहीं थी. उसने कहा, नहीं, ऐसे नहीं होता है. तुम हमेशा शारीरिक सुख ही क्यों चाहते हो. क्या हमदोनों का संबंध बस इतना ही है. रितिका के मना करने पर अमन नाखुश हो गया. उसने कहा, तुमसे अच्छी तो मेरी पहली बीवी ही थी, जिसने कभी मुझे मना नहीं किया. उसके जाने के बाद मुझे लगा कि शायद तुम मुझे वो प्यार दे पाओगी. लेकिन नहीं तुम्हारे तो नखरे ही हजार हैं. ना तुम उसकी तरह सलीके की लड़की हो और ना उसकी तरह सुंदर. मुझसे ही गलती हो गयी, जो मैंने तुम्हें उसकी जगह देने की कोशिश की.

यह कहकर अमन पलटकर सो गया. लेकिन यह सच रितिका के लिए वैसा ही था, जैसे किसी ने उसकी जिंदगी छीन ली हो. वह अमन की दूसरी पत्नी है और अमन अपने पहले प्यार की तलाश में उसतक पहुंचा था. वह तो उसे चाहता ही नहीं. किसी और की परछाई उसमें ढूंढ़ रहा था. वह उसके लिए कोई मायने नहीं रखती. यह तमाम बातें रितिका के जीवन का टर्निंग प्वाइंट थे, जिसमें उसके सेकैंड हैंड हसबैंड ने उससे फर्स्ट हैंड प्यार की चाहत की थी. लेकिन इन सब में जो सबसे बुरा हुआ वह यह था कि रितिका का
पूरा वजूद उससे छीन गया था.

तो यह थी मेरी रितिका की कहानी. जिसकी शुरुआत मैंने यहां पर की है. उसके जीवन के अन्य पक्षों से मैं आपको रूबरू कराती रहूंगी. यह एक प्लॉट है, जिसका उपयोग कथाकार कर सकते हैं. अगर यह सब्जेक्ट उन्हें पसंद आये. तो आज के लिए प्रणाम.
रजनीश आनंद
26-12-2015

बुधवार, 23 दिसंबर 2015


...क्योंकि यह टेस्ट का मामला है!
आज ब्लॉग की दुनिया में यह मेरा पहला कदम है. कदम तो पहले ही रखना चाहती थी, लेकिन कुछ ‘एक्सक्लूसिव’ करने की चाह में हिम्मत नहीं कर पायी थी. पत्रकारों को ‘एक्सक्लूसिव’ करने की चाहत बहुत होती है और चाहत साली इतनी कुत्ती चीज होती है कि आपको हर तरह से बाध्य करके रख दे. खैर अब बाध्यता नहीं रही, मैंने अपनी चाहत पर लगाम कस ली है और आपके सामने हूं. भारतीय मिट्टी की उपज हूं, सो श्रीगणेशाय नम:, बिसमिल्लाह या फिर ‘इन द नेम अॅाफ गॉड’ कहकर शुरुआत करना चाहती हूं.
असहिष्णुता के इस दौर में मैं आपको बताना चाहती हूं कि मुझे हमेशा अपने घर के तौर-तरीकों से ज्यादा दूसरों की तहजीब भायी.
जन्म से हिंदू हूं इसलिए प्रणाम, नमस्ते कहकर अभिवादन करती आयी हूं. पैर छूना भी हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है. लेकिन कहीं से ‘वालेकुम सलाम’ की आवाज सुनायी दे, तो मैं रोमांचित सी हो जाती हैं. यह मेरी निजी पसंद है. मेरी इस बात से हर कोई इत्तेफाक रखे, यह जरूरी नहीं है. लेकिन मैं यहां अपनी कहने आयी हूं, सो अपनी बात कह रही हूं.
हां एक बात और, यह एक औरत का ब्लॉग है इसलिए उसकी बातें तो यहां होंगी ही. उसकी पसंद, नापसंद, महत्वाकांक्षा, इच्छा, पीड़ा और सेक्स सबकी बातें मैं यहां करूंगी. अब देखना यह है कि मैं अपनी बातों को आपके सामने उस तरह रख पाती हूं या नहीं, जैसे की मैंने रखने का सोचा है. अगर मैं अपनी बातों को उस तरीके से नहीं रख पायी, तो जल्दी ही मैं आपको अलविदा भी कह दूंगी.

सधन्यवाद
रजनीश आनंद
23-12-2015