शनिवार, 23 नवंबर 2019

#MaharashtraGovtFormation क्या शरद पवार सच में इतने मासूम हैं?


23 नवंबर को महाराष्ट्र सूबे में हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ और इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता अजित पवार के समर्थन से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. अजित पवार उपमुख्यमंत्री बने हैं. इसके साथ ही शुरू हुआ लोकतंत्र की हत्या और धोखेबाजी और फूट को लेकर बयानबाजी.वैसे यह देश में कोई नयी घटना नहीं है और कई ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं, जब देश में मौकापरस्ती की राजनीति हुई.


मासूम बन रहे हैं शरद और सुप्रिया
अजित पवार द्वारा देवेंद्र फडणवीस को समर्थन दिये जाने के बाद शरद पवार ने ट्‌वीट किया कि उनका अजित पवार के निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही उनका समर्थन इस निर्णय को नहीं है. लेकिन क्या यह बात सही प्रतीत होती है? कोई भी यह समझ सकता है कि शरद पवार जैसे घाघ नेता को इस घटनाक्रम की जानकारी ना हो और पूरा तख्त पलट हो जाये यह संभव ही नहीं है. उधर सुप्रिया सुले आखों में आंसू और व्हाट्‌सएप स्टेट्‌स अपडेट करके कह रही हैं कि किस पर विश्वास किया जाये. आखिर शरद पवार इतने ही मासूम हैं तो आखिर पीएम मोदी ने संसद में उनकी तारीफ क्यों की और शरद पवार उनसे मिलने क्यों पहुंचे. जबकि वे महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर सोनिया गांधी से मिलने गये थे. खबरें तो ऐसी भी आ रही हैं कि सुप्रिया सुले को केंद्र में मंत्री पद मिल सकता है औ अजित पवार तो खैर सेट हो ही गये. आगे का सफर तय करने में वे खुद भी समर्थ हैं.

शरद पवार के लिए यह राजनीति नयी नहीं है
शरद पवार के लिए यह राजनीति कोई नयी नहीं है. इससे पहले भी 1978 में शरद पवार जिस तरह कांग्रेस के दो खेमों की सरकार को गिराकर खुद मुख्यमंत्री बने थे अजित पवार ने उसी राजनीति की पुनरावृत्ति की है. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि शरद पवार ने एक बार फिर भाजपा के साथ गेम कर दिया है और शिवसेना और कांग्रेस ठगी रह गयी है.

घटनाक्रम
राज्यपाल ने सुबह-सुबह 5:47 बजे प्रदेश से राष्ट्रपति शासन हटा दिया और आठ बजकर पांच मिनट पर देवेंद्र फडणवीस का शपथ ग्रहण हो गया. एकदम त्वरित कार्रवाई, जबकि पूरे 29 दिन से वहां सरकार गठन की प्रक्रिया थमी हुई थी. विधानसभा चुनाव के बाद 24 अक्तूबर को परिणाम घोषित हो गया था.  जिसके बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने रंग बदल लिये और मुख्यमंत्री पर अपनी दावेदारी ठोंक दी. इसके बाद शुरू हुई नौटंकी या यूं कहें कि सौदेबाजी. राजनीति में यह आम चीज है और राजतंत्र से लोकतंत्र तक इसमें कोई विशेष अंतर नहीं दिखता. पद के लिए खूब सौदेबाजी होती है, जिसे बातचीत के रूप में सामने आता देखते हैं. मन मिला(सौदा पटा) तो ठीक अन्यथा गठबंधन की सरकार नहीं बनती. कांग्रेस शुरुआत में शिवसेना के साथ आना नहीं चाह रही थी क्योंकि दोनों की विचारधारा बिलकुल अलग है और यह उसके लिए परेशानी का कारण हो सकती थी. अंतत: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गठबंधन वाली सरकार को अनुमति दे दी. लेकिन राज्यपाल के पास उनके दावा पेश करने से पहले ही महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार बन गयी. अभी और ड्रामेबाजी होगी मामला कोर्ट तक जायेगा और अभी विधानसभा में विश्वासमत भी प्राप्त करना है. लेकिन अभी भी मेरे मन में यही सवाल है कि क्या शरद पवार सचमुच इतने मासूम हैं?