बुधवार, 29 मार्च 2017

हमारा प्रेम...

बिस्तर पर पड़े-पड़े कुछ
बेरौनक सी होती जा रही थी जिंदगी
कि अचानक गर्मजोशी से पूछा तुमने कैसी हो प्रिये
लगा जैसे कड़वी दवाई के बाद किसी ने चुपके से
मुंह मे डाल दी हो मिश्री की डली
चाहा पा लूं थोड़ा तुम्हारी बांहों का घेरा
लेकिन तुम तो अदेह स्वरूप में थे मेरे पास
तो क्या बेमानी है प्रेम हमारा?
नहीं-नहीं हमारा प्रेम तो बहती नदिया है
हम-तुम इसके दो किनारे
जिन्हें बेमानी लगता है प्रेम
दरअसल उन्होंने इसे जीया ही नहीं
सूरज को देख पौधे जी उठते हैंं
सोचो तो क्या उन्होंने की होगी शिकायत
तू इतना दूर क्यों हमसे?
सूरज की गरमी तो उन्हें रोज मिलती है
यह बात दीगर है की कभी कम तो कभी ज्यादा
तुम्हारी बांहों में इतना फैलाव है कि
मैं खुद को हमेशा इसके घेरे मेंं पाती हूं
लेकिन जब यह कसता है
तो दरम्यान होता है सिर्फ और सिर्फ हमारा प्रेम...

रजनीश आनंद
29-03-17

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

मेरी सुबह...

मेरी सुबह सूरज के आने से नहीं होती
उस वक्त होती है जब तुम हौले से
मेरी कानों में गुड मार्निंग कहते हो
मेरी अलसाई अंगडाई को जब तुम
नजरों से चूम लेते हो, तो ऐसा सुकून
महसूस होता है, मानो शिवालय हो आयी मैं
इतना सुकून, इतनी खुशी,
पूरे दिन सराबोर रहती हूं मैं
रात तब होती है जब मैं समा जाती हूं
तुम्हारी बांहों में, मानों लहरें सागर में
नरम होंठों से छूकर तुम्हारी पेशानी को
अपनी पलकों में छुपा लेती हूं
तुम्हारी शरारती आंखो को
और दो होंठ कहते हैं एक दूसरे को गुड नाइट
और तब तुम समेट लेते हो मुझे खुद में
जैसे मैं कोई सपना हूं हसीन...
रजनीश आनंद
24-03-17

कुछ बातें...

               1
जिंदगी की जद्दोजहद भी अजीब है
थोड़े से फायदे के लिए,रिश्ते बदलते रोज हैं
जो कल तक गलबहियां, डाले घूमते थे
वो आज कहते हैं, मतलब खत्म तो रिश्ता खत्म.
              2
मैंने देखा था उस लड़की को
प्रेम के लिए तड़पते हुए
लेकिन उसके दुपट्टे में कभी समाया नहीं वो
फिसलता गया रेत की तरह.
             3
रो तो मैं रोज लेती हूं, इसलिए नहीं कि
रोना औरतों का शगल है
बल्कि इसलिए कि कहीं आंसू सूख गये
तो समाज की बदहाली पर कौन रोयेगा.

रजनीश आनंद
24-03-17

बुधवार, 22 मार्च 2017

कविता

हर रात जब
मैं अकेली होती हूं
लाख मना करती हूं
फिर भी दबे पांव
चली आती है तुम्हारी याद
मैं कहती हूं उससे
जाओ ना सताओ
जब प्रिये नहीं आते
तो तू क्यों चली आती है
मुझे मजबूर करने
आंखों में रात बिताने को
क्यों मुझे बेबस करती हो
लिखने के लिए एक कविता
दिल से मजबूर मैं
लिखना चाहती हूं मन की हर बात
हर तड़प, हर सिहरन
लेकिन जैसी ही मैं
कलम पकड़कर बैठती हूं
यादें, लिखकर बैठ जाती हैं नाम तुम्हारा
और मैं कागज पर अंकित उस
नाम को निहारती रह जाती हूं
दिल कहता है
इससे अच्छी कविता क्या होगी...
रजनीश आनंद
22-03-17

योगी के कारण हुआ मेरा मोहभंग

मोहभंग होना दुखद स्थिति है,लेकिन मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मेरा मोहभंग हुआ है. हां भाजपा से मेरा मोहभंग हुआ है. मुझे यह कहने में न कोई शर्म है संकोच कि मैंने  भाजपा का अबतक सही नीतियों पर समर्थन किया है अटल बिहारी वाजपेयी मेरे प्रिय नेता थे , हैं और हमेशा रहेंगे. जितने दिन भी वे सत्ता में रहे देश को विकास को ओर ले जाने का प्रयास किया. बात चाहे अर्थव्यवस्था की हो या विदेश नीति की उन्होंने शानदार काम किया. जबकि वे गठबंधन की सरकार चला रहे थे. लेकिन आज भाजपा का जो चेहरा उभरकर सामने आया है, मैं उसके समर्थन में ना पहले थी, ना भविष्य में कभी रहूंगी.
हां मैं बात कर रही हूं उत्तरप्रदेश की, जहां योगी आदित्यनाथ सीएम बने हैं उनका चयन कहीं से भी शुभ नहीं है.और यह साबित करता है कि मोदी जी विकास का जो दावा करते वो खोखला है. प्रचंंड बहुमत के बाद योगी आदित्यनाथ का चयन किस मजबूरी के कारण मोदी जी ने किया है. कहा जा रहा है कि योगी मोदी की पसंद नहीं, तो क्या यह माना जाये कि संघ पीएम से अधिक शक्तिशाली है?
एक ऐसा व्यक्ति जो नफरत फैलाता हो, जिसके पास कोई विजन ना हो ,वो प्रदेश को किस ओर ले जायेगा? कानून व्यवस्था का प्रदेश में क्या होगा भगवा जाने, जिस मठ के लोग बंदूक तान रहते हैं अब उनकी सरकार है. महिलाओं पर कितनी बंदिश लगेगी, पता नहीं.  मजनू स्क्वायड और गुटखा पर प्रतिबंध से कुछ नहीं होगा.प्रदेश का विकास होता है शिक्षा, स्वास्थ्य,रोजगार और बुनियादी जरूरतों की उपलब्धता से. राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि योगी जी भविष्य के नेता हैं, जो मोदी जी को रिप्लेस करेंगे. तो ऐसे में क्या होगा देश का , देश की छवि का. विदेशनीति का. मोदी जी तो दावा करते हैं कि भारत अगले कुछ वर्षों में विश्व की महानशक्ति बनेगा, लेकिन योगी जी के आने के बाद तो यह कैसे होगा समझ नहीं आ रहा है.

रजनीश आनंद
22-03-17

मंगलवार, 21 मार्च 2017

शुभ संकेत

एक जुगनू आज
मेरे बिस्तर पर
कुछ यूं मंडराया
मानों दे रहा हो
कोई शुभ संकेत
मैंने भी आस का
दामन थाम लिया
सुना था कहीं
शुभ होता है यूं
जुगनुओं का मंडराना
जीवन के संघर्षपथ पर
संकल्पशक्ति के साथ
जब मिलाप होता है
ऐसे शुभसंकेतों का
तो इससे जन्मी ऊष्मा
इंसान को प्रेरित करती है
जूझने के लिए
जुगनू की रोशनी
कब बन गयी सूरज की
मुझे पता भी ना चला
लेकिन मैंने देखा सूरज को
मेरे लिए जलते हुए...
रजनीश आनंद
21-03-17

गुरुवार, 16 मार्च 2017

आज की रात...

काश, आज की रात
तुम आ जाते सपनों में मेरे
तो मैं जी लेती मनमाफिक जिंदगी
कभी वसंती हवा बन इठलाती
तो कभी बरखा बन बरस जाती
सीने पर तुम्हारे
छोटे से उस पल को ऐसे जीती
मानों जी ली पूरी जिंदगी
गीत सुनाती तुम्हें प्रेम के
और कहानी मधुर मिलन के
करती सोलह श्रृंगार और
तुम्हें रिझाती बन कर रति
कभी सीने से लगकर तुम्हें
सुनाती पीड़ा अकेली रातों की
आखों से जो अश्रु बहता
वो साक्ष्य बनता मेरी तड़प का
सांसें मेरी कहती तुमसे
बांधकर रखना मेरा लक्ष्य नहीं
हां, मैं देना चाहती हूं तुम्हें
अधरों से अपने प्रेम निशानी
आज की रात जो तुम आ जाते...
रजनीश आनंद
16-03-17

सोमवार, 13 मार्च 2017

जिंदगी है तू...

सोचती हूं कौन है तू?
ईश्वर का वरदान
हां बिलकुल
लेकिन इससे कुछ ज्यादा है तू
मेरी खुशी
हां बिलकुल,
लेकिन इससे भी ज्यादा है तू
परिभाषित नहीं कर सकती
मेरे जीवन में क्या है तू
हां इतना कह सकती हूं
शायद जीवन ही है तू...

कल मेरे मिकी का जन्मदिन है. तो सोच रही हूं कि उसे जन्मदिन की बधाई और आशीर्वाद देकर ही सोऊं.

रजनीश आनंद
13-03-17

रविवार, 12 मार्च 2017

प्रेम गुलाल

तुम बिन सीने में हूक सी उठी
तो खुद को खुद को समझाने
मैं चली आयी झरोखे पर
पूनम के चांद ने दूधिया रोशनी में
नहला दिया था पूरे संसार को
मनमोहक था नजारा
मानों प्रिये की बांहों में सिमटी हो प्रेयसी
इस नजारे ने मेरी तड़प को दुगुना किया
और मैं देने लगी चांद को उलाहना
एक तो मेरा प्रिये पास नहीं मेरे
और तू प्रेममय है?
मैं क्या करूं तेरा जब वो पास नहीं मेरे
शिकायती अंदाज में मैंने देखा जो उसे
लगा तुमने दी हो आवाज,
अधीर न हो प्रिये, इस होली मैं भले ना लगा पाऊं
अपने हाथों से तुम्हें गुलाल
लेकिन खुद को जरा आइने में तो देखो
मेरे प्रेम के लाल गुलाल में सराबोर हो तुम
इस रंग में ऐसे दमकता है तुम्हारा चेहरा
जैसे वसंत में खिला गुलाब हो
तुम दूर ही सही लेकिन महसूस करो मुझे
जैसे तुम सिमटी हो बांहों में मेरे
और मेरे प्रेम ने कर लिया है तुम्हारा स्पर्श
तभी तो हर रंग से सुंदर दिख रहा है हमारा प्रेम रंग...

रजनीश आनंद
12-07-17

शनिवार, 11 मार्च 2017

फिशपॉट

मेरे कमरे के कोने में
पड़ा है एक फिशपॉट
चार-पांच मछलियां
हमेशा तैरती दिखतीं हैं
कमरे होने वाली हर
हलचल से दूर पानी में गोते खातीं हुईं
बिलकुल वैसे ही जैसे
मेरी दुनिया सिमटी है तुम्हारी बांहों मेंं
जब तुम अपनी बांहों को खोलकर
कहते हो आओ प्रिये
और समेट लेते हो मुझे
तो मैं कहना चाहती हूं
बहुत कुछ अपने मन की
लेकिन जुबान साथ नहीं देते
हलक तक आकर रह जातीं हैं बातें
हां, तुम चाहो तो पढ़ लो मेरी आंखें
इनमें अंकित हैं मेरे मन की बातें
तुम बिन कितनी रातें मैंने
आंखों में बिताई, कितने सपने संजोए
इसपर साफ लिखा है
तुम्हारे स्पर्श की नरमाई,सिहरन और
जादुई बातें हैं मेरे जीवन का फिशपॉट
जिनमें डूबकर जीना चाहती हूं मैं...
रजनीश आनंद
11-03-17

मंगलवार, 7 मार्च 2017

तुम्हारे नाम की गूंज...

हिज्र की रातों में
आंखें मूंदें मैं लेना चाहती हूं तुम्हारा नाम
एक बार नहीं, कई बार
ताकि महसूस कर सकूं तुम्हें
मैं जितनी बार पुकारती हूं तुम्हारा नाम
तन-बदन में मौजूद सिहरन
और तड़प दे जाती है सुकून
मैं खोना चाहती हूं
तुम्हारे नाम की गूंज में
ताकि फिजाओं में गूंजें
हमारे मिलन की ध्वनि
और तुम आकर मेरे
कानों में फुसफुसा जाओ
तुम मेरी, हां सिर्फ मेरी हो
फिर कुछ और सुनने की
चाह शेष रह जायेगी क्या भला?
रजनीश आनंद
07-03-17



शनिवार, 4 मार्च 2017

मौसम हुआ रूमानी...

अचानक मौसम कुछ यूं हुआ रूमानी
जैसे कभी-कभी तुम हो जाते हो
ऐसे में बादलों को बरसता देख जी किया
मैं सिमट जाऊं आकर तुम्हारी बांहों में
अदेह स्वरूप में ही सही, मैं रहना चाहती हूं
गिरफ्त में तुम्हारी बांहों के हमेशा
तभी तो छतरी को खोल मैं निकल गयी थी सड़क पर
तुम्हारे साथ कुछ पल बिताने, कुछ देर जीने
छतरी के घेरे ने कराया तुम्हारे होने का एहसास
मैंने उसे ऐसे थामा जैसे थामना चाहती हूं तुम्हें
आज तुमसे बात करने की बहुत थी चाह
इसलिए मैंने खूब कही अपने मन की
जानते हो मैंने सवाल खुद किया और
तुम्हारी तरफ से जवाब भी दे दिया
ख्यालों में ही सही तुम सुनते रहे मुझे
यूं तो मैं जानती हूं अपने बारे में
हर छोटी-बड़ी बात लेकिन
जब तुम कहते हो उन्हें
अहसास कराते हो मुझे की मैंं खास हूं
तो सुकून मिलता है. जैसे अभी मिल रहा है
धरती से टकराती इन बारिश की बूंदों को देखकर
एहसास हो रहा है मानो मिल रहे हों हम-तुम...
रजनीश आनंद
04-03-17

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

मुट्ठी में खुशी...

जिंदगी की जद्दोजहद ने
छिन ली थी मेरे होंठों की हंसी,
जो मुस्कान दिखती थी
वो दरअसल झूठ का पुलिंदा थी
खोखली हंसी, जिसकी गूंज में
साफ सुनाई पड़ जाती थीं मेरी सिसकियां
मेरा दिल हमेशा कहता था मुझसे
सुन ले तू कभी मेरी भी, तो
आज उसकी बात का असर
दिख गया मुझपर और
मैंने जिंदगी के दामन से
एक चीज चुराकर
कस कर जकड़ लिया है मुट्ठी में
सोचा है अब कभी नहीं छोड़ूगी उसे
परिस्थिति चाहे लाख विकट हो,
तभी मेरी नजर राह चलते
एक बच्चे पर पड़ी
धूल से सने, उस फटेहाल बच्चे की
नजर मेरी मुट्ठी पर थी
शायद वो जानना चाह रहा था
मेरी मुट्ठी का रहस्य
मैं घबराई, सोचा कहीं इसकी नजर
मेरी उस संपत्ति पर तो नहीं
जिसे चुराया था मैंने जिंदगी के दामन से
शायद उसने पकड़ ली थी मेरी चोरी
सहसा वो मेरे नजदीक आया
मेरी आंखों में झांकर कहा उसने
जो तेरी मुट्ठी में है उसे बांट मेरे संग
तेरी खुशी दोगुनी हो जायेगी
मैं उससे बचना चाह रही थी
लेकिन वो मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था
मैंने सोचा जब इसे पता ही है
मेरी चोरी का, तो बांट लेती हूं
उस खुशी को जिसे चुराकर रखा था
मैंने अपनी मुट्ठी में कैद करके
बच्चे के सामने मैंने ज्योंही खोली मुट्ठी
उसके होंठों पर थिरकी मुस्कान और आंखों में चमक
उसकी खुशी देख मैं खिलखिला उठी
लेकिन उसकी गूंज से सिसकियां गायब थी
बस सुनाई दिया था , तो सिर्फ तुम्हारे आने का संदेश...
रजनीश आनंद
03-03-17

बुधवार, 1 मार्च 2017

ठूंठ बना रिश्ता

क्यों ठूंठ बन गया हमारे रिश्ते का पौधा?
कभी जानने की कोशिश की तुमने?
याद करो वो दिन, जब बड़े उत्साह से
हमदोनों ने रोपा था अपने रिश्ते का बीज
रोज पानी से सींच कर मैंने उसे अंकुरित किया थ
तुम भी तो खुश थे उसके शैशव रूप को देखकर
उसकी हरी-हरी पत्तियां मन को लुभाती थीं
मैं तो अकसर उन पत्तियों को छूकर 
जी लेती थी अपने रिश्ते की गहराई को
वह झाड़ का रूप ले चुका था, लेकिन
चाह थी मेरी कि वह बन जाये बरगद
ताकि भरी दुपहरी में उसकी छांव हमें शीतलता दे
और जब जी चाहे हम-तुम उसकी मजबूती से पा लें सहारा
लेकिन आह!! ये हो ना सका
बरगद का सपना, आंखों से आंसू बन बह गया
समय ने नहीं दिया हमें उस पेड़ को सींचने का मौका 
और तुमने उठा दिया उस पौधे के अस्तित्व पर सवाल
मुझे लगा जैसे जीवन ही शेष नहीं बचा
लेकिन मैंने कसम खाई, नहीं-नही
मैं मरने नहीं दूंगी इस पौधे को
मैं सींचूगी इसे, बरगद बनाऊंगी
इसके फूल और फल को पुष्पित होने का पूरा मौका दूंगी
मैं जुटी रही अपने प्रयासों में
कोई दिन ऐसा नहीं गया जब
मैंने उस पौधे की थाह ना ली हो
जब मैं उसके पास जाती वो
निरीह नजरों से मुझे देखता भी था
उसे तुम्हारी तलाश थी, लेकिन 
उसकी आस नहीं हुई पूरी
पौधा था तो कुछ फल भी आय
लेकिन वो फल भी नहीं बदल सके
इरादा तुम्हारा और विपरीत परिस्थितियों की मार में
अंतत: ठूंठ हो गया हमारे रिश्ते का पौधा
ना तो मेरे आंसू, ना निवेदन बचा सका इस पेड़ क
मैंने कारण बहुत जानने की कोशिश की
आखिर क्यों मृत हुआ यह पेड़
तो ज्ञात हुआ उसकी जड़ हो चुकी थी खोखल
फिर पौधा, पेड़ कैसे बनता?
अब जबकि कुछ भी नहीं है शेष
तुम्हें अचानक क्यों यह सवाल परेशान कर रहा है
कि क्यों मर गया वो पेड़?
अब पेड़ को बचाने के लिए
मेरे पास ना तो ऊर्जा बची ना आस
इसलिए ना पूछो ये सवाल
खुश रहो, क्योंकि मैं ये नहीं भूली कि
हमने साथ बोया था रिश्ते का बीज
भले ही बरगद ना बन पाया वो
लेकिन अफसोस नहीं मुझे इस बात का
जो हुआ वो अच्छे के लिए हुआ होगा
शायद हमारे रास्ते कभी एक ना थे
तभी तो ठूंठ हुए रिश्ते को देख
अब सिहरन भी नहीं होती मुझे...
रजनीश आनंद
01-03_17