बुधवार, 30 नवंबर 2016

एक बात बताओ तो प्रिये...

एक बात बताओ तो प्रिये
ऐसा क्यों होता है?
काले मेघ छाते हैं तो
वर्षा क्यों होती है?
मुझे तो ऐसा प्रतीत
होता है जब तुम
बांहों मे लेते हो
नयना मेरे खुशी से
बरबस बरस पड़ते हैं
अच्छा ये बताओ तो
बिजली जब चमक उठती है
तो बादल क्यों गरज उठते हैंं?
मुझे तो ऐसा भान होता है
जब तुम नजर भर देख लेते हो
तन मेरा चमक उठता है
और वो बादल नहींं गरजते
मेरी धड़कन है ,जो
सहसा तीव्र गति से धड़क उठती है
अच्छा ये बताओ तो तुम...
रजनीश आनंद
30-11-16

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

तुम्हारे नाम एक पाती

प्रिये,
कैसे हो? हर सुबह जब गुड मार्निंंग के साथ यह सवाल मैं तुमसे करती हूं,तो भान होता है,जो सांसें रूकी थीं अबतक वो चल पड़ी हैं. और हां , जब तुम कहते हो एकदम ठीक, तो एक मुस्कान खिल जाती है मेरे चेहरे पर. जानते हो, तुम्हारे ये तीन लब्ज प्राणवायु बन गये हैं मेरे-तुम मेरी हो.
जब तुम इन्हें कहते हो ना,तो खुद पर गुरूर सा होता है, प्रतीत होता है मैं दुनिया की सबसे भाग्यशाली औरत हूं.
देखो ना तुम्हारे हर शब्द को अपने हाथों में समेट कर मैंने सीने से लगा रखा है. अजीब सी खुशी मिलती है. खुद में खोई रहती हूं खुशी नहीं, आनंद से सराबोर,एकदम तुम्हारे रंग मे रंगी.
मेरे जीवन की हर रात जो स्याह थी कभी, बेनूर थी, वो नये उत्साह से भरी है. सपने हैंं, तुम्हारा आलिंगन है, इंतजार है और सबसे बड़ी बात तुम्हारा प्यार है, जो हर दिन गुड नाइट कहकर मुझे ले जाता है तुम्हारे आगोश में जहां तुम्हारा स्नेहिल स्पर्श है और वो सब जो एक औरत को चाहिए....
तुम्हारी...

सोमवार, 28 नवंबर 2016

वो निर्मल जल है...

चांद सुनो
किसी को दिखते होंगे
पर मुझे तो अपने प्रिये में
कोई अवगुण नहीं दिखते
यह महज किताबी बात नहीं
अहसास है जिसे समझने के लिए
प्रेम में पगा हृदय चाहिए
बेशक हर इंसान में कमियां होती हैं
उसमें भी होंगी, लेकिन वो मुझे
उन कमियों के साथ प्यारा है
मन उसका निर्मल जल
बोली गन्ने के रस जैसी
मुख दीवाली के दीये सा प्रकाशमान
हृदय केशव सा विशाल
नयनों में अपार सपने
मन में अद्भुत इच्छाशक्ति
और सबसे बड़ी बात
उसे प्रेम है मुझसे
तो तुम ही कहो
क्योंकर दिखेगा मुझे
उसमें कोई अवगुण
रजनीश आनंद
28-11-16

सपने तो मैं देखूंगी...

ये क्या है जो मेरे सीने में
धंस सा गया है
तिल-तिल रिसता है दर्द
मेरे आंखों से अश्रु बनकर
जब भी देखती हूं
नर-मादा जोड़ियों को
घोंसले के लिए बिनते तिनका
होता है अहसास एक अधूरेपन का
बिन घोंसले के होने का
कोशिश तो मैंने भी की थी
तिनका -तिनका बीनकर
नीड़ के निर्माण की
लेकिन बिखर गया सबकुछ
और कहा गया मुझसे नहीं है मुझे
सपने देखने की आजादी
नहीं मिली रोने की भी इजाजत
तो ठहाकों में बदल दिया
मैंने अपने आंसुओं को
और किया निर्णय सपने
तो मैं देखूंगी, सच भी करूंगी.
रजनीश आनंद
28-11-16

रविवार, 27 नवंबर 2016

प्रेमवृक्ष

प्रेम में जायज है इंतजार
तबतक,जबतक प्रिये आकर
ना भर ले बांहों में
निसंदेह अधीर होता है मन
अश्रु भी बहते हैं,लेकिन
एकत्र कर आंसुओं को
मैंने सींचा है अपना प्रेमवृक्ष
देखो ना प्रिये ह लहलहा रहा है
कुछ दिन में फूल और फिर फल आयेंगे
फिर कोई चिड़िया आकर
अपना नीड़ बना जायेगी
इसे बूढ़ा बरगद होते देखना है हमें
और हां जब तुम आओगे ना
तो अपने प्रेम की वर्षा कर
भींगा जाना इसे ताकि
अमर हो जाये यह प्रेमवृक्ष
रजनीश आनंद
27-11-16

शनिवार, 26 नवंबर 2016

हर्षित है तन, पुलकित मन

तुम मेरे जीवन में
नयी शुरुआत
नहीं , तुम तो
मेरे तमाम सत्कर्मों का फल हो
तभी तो पाकर तुम्हें
सार्थक हुआ जीवन है
ओ प्रिये सुनो
हर्षित है मन
पुलकित तन
हृदय में मधुर पीड़ा
जी चाहता है
पंछी बन उड़ चलूं
जहां है देश तुम्हारा
नदी, पहाड़,पठार लांघ
पंख तब तक ना थकें
जब तक देख ना लूं तुम्हें
और फिर तुम्हारे बांहों की
गरमाहट हो मेरा ईनाम
और कुछ चाह तो शेष नहीं अब...
रजनीश आनंद
26-11-16

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

सपने...

जानते हो प्रिये
जब रसोई में मैं
रोटियों को गोलाई
में विस्तार देती हूं
तो भान होता है
जैसे अपने सपनों को
मूर्त रूप दे रही हूं
और तुम,मुझे
उस तवे की भांति लगते हो
जो मेरे सपनों को साकार करने
के लिए खुद आग की तपिश में
जल रहा है, मेरे सपनों को
स्वादिष्ट रोटी बनाने के लिए
यूं दिन-रात ना जलो प्रिय
कुछ मुझे भी मौका दो जलने का
क्योंकि प्रेम तो हमदोनों ने किया है
और यह सपना हमदोनों का है,है ना?
रजनीश आनंद
25-11-16

बुधवार, 23 नवंबर 2016

मैं तुम्हारी और तुम मेरे हो...

बहुत खराब हो तुम
मैं तुमसे तबतक ना बोलूंगी
जबतक तुम ना बोलो मुझसे
यह ठान मैं कर आयी तुमसे किनारा
सोचा, कुछ देर ले लेती हूं मीठी नींद
लेकिन पलकों को चूम जगा गये तुम
जागती आंखों में जो ख्वाब तैरे
उसमें तुम ही तुम थे
सोचा बाहर टहल लेती हूं
दरवाजे को खोला, तो सर्द हवा
टकराई मुझसे, जिसमें गरमाहट थी तुम्हारी
उस गरमाहट को ठुकरा मैं बैठ गयी
कागज काले करने, लेकिन ना जानें क्यों
तुम्हारे नाम के सिवा कुछ लिख ना पायी
खुद से हार कर जो मैंने बंद की आंखें
तो ढलक गये अश्रु, कहा दिल ने
तू किससे ना बोलने की जिद कर बैठी है
जिसके सांस लेने से आती है सांस तुझे
जिसकी उपस्थिति से होता है,
तुझे अपने अस्तित्व का एहसास
जिससे बोलकर है तेरे नयन वाचाल
अन्यथा हो जायेंगे मूक
सुनकर अपने दिल की बात
मैं भागकर समा गयी, तुम्हारी बांहों में
इस मिलन मेंं नयन जो बरसे, तो
मिट गये सारे शिकवे, एक ही बात शेष रही
कि मैं तुम्हारी और तुम मेरे हो...
रजनीश आनंद
23-11-16

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

प्रेम का गुल्लक

ए सुनो ना प्रिये,तुम्हें कुछ बताना है
मैं कुछ दिन पहले बाजार गयी थी
वहां एक मिट्टी के छोटे गुल्लक
पर टिक गयी मेरी नजरें
बिलकुल गोल, ना ओर ना छोर
हमारे प्रेम की भांति.
उसे देखते ही अजीब से आकर्षण हुआ
मैंने लपक लिया उसे ताकि
कोई और ना उठा ले उसे
बड़ा सुकून मिला उसे स्पर्श करके
मैं हर दिन उस गुल्लक में
अपने इंतजार का, तुम्हारे लिए अपने तड़प का
एक-एक सिक्का गिराती हूं
जब वो सिक्का गुल्लक की दीवारों से टकराता है
और फूटती है एक ध्वनि, तो प्रतीत होता है
मानो तुमने सुन ली मेरी बात
कल जब मैंने उसे हाथों में उठाया
तो गुल्लक के अंदर से आयी आवाज
सुनो प्रिये तुम अकेली नहीं तड़प रही
मैं भी तो तुम्हारे लिए तड़पता हूं
यकीन है मुझे जिस दिन यह गुल्लक पूरा भर जायेगा
उस दिन तुम आ जाओगे मेरे सामने और
कहोगे मुझसे आओ इंतजार को अभिसार में बदल दें.

रजनीश आनंद
22-11-16

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

क्योंकि एक उम्मीद काफी है जिंदगी के लिए...

क्या तुम्हारे होने का एहसास मात्र
मुझे जिंदगी को जी लेने के लिए प्रेरित करता है?
यह सवाल मेरे मन में कुलबुला रहा है
बेनूर ना सही, लेकिन नाउम्मीद सी
जरूर हो गयी थी जिंदगी
सुबह भी होती थी, शाम भी और रात भी
लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता
जैसी हो गयी थी मैं
होली भी आयी और दीवाली भी
पकवान भी बने बने और गुलाल भी उड़े
मैं मुस्कुराई भी और नये कपड़े भी पहने
लेकिन मुस्कान के पीछे छिपी
मेरी भींगी पलकों को किसी ने देखा नहीं
ना किसी ने मेरी मुस्कान देख कहा
यूं ही बनाये रखना इसे
ना किसी ने यह कहा
कि नीला रंग तुम पर बहुत फबता है
लेकिन अचानक जीवन के एक मोड़ पर मिले तुम
पता नहीं क्यों और कैसे मैं जुड़ती गयी तुमसे
मेरी जिंदगी में एक उम्मीद बनकर आये तुम
और मैंने ये जाना कि
एक उम्मीद काफी है जिंदगी जीने के लिए
रजनीश आनंद
18-11-16

बुधवार, 16 नवंबर 2016

मैं बन जाना चाहती हूं ...

प्रिये मन में है एक बात
बेसब्र हूं, तुमसे कहने को
ज्ञात है मुझे, सीमित है
हमदोनों के प्रारब्ध में मिलन
लेकिन कोई दुख नहीं
मैं हर दिन, हर पल
तुम्हारे लिए जीना चाहती हूं
इसलिए तो मैं बन जाना चाहती हूं,
सूर्योदय की लालिमा
ताकि अहले सुबह, जब जागो तुम
बसा लो उसके अनुपम सौंदर्य को अपनी आंखों में
मैं बन जाना चाहती हूं,
सरदी की धूप
जिसका ताप तुम्हें सुकून दे
तुमको कर दे ऊर्जा से ओतप्रोत
मैं बन जाना चाहती हूं
शीतल मंद वसंती हवा
ताकि जब बहाव हो मेरा, तो चूम लूं
तुम्हारे तन को और
तुम्हें हो मेरे आसपास होने का एहसास
मैं बन जाना चाहती हूं
तुम्हारे बागीचे की फूल
जिसे तुम प्रेमवश कभी-कभी दे दो अपना स्पर्शसुख
मैं बन जाना चाहती हूं
तुम्हारे आंगन की तुलसी
जिसे तुम मान दो और
मैं बनाया जाऊं तुम्हारे लिए शुभकारी
मैं बन जाता चाहती हूं
तुम्हारे आंगन की प्यारी गोरैया
जिसका आंगन में फुदकना, तुम्हें प्रिय हो
और जिसके घोंसले और अंडे को
तुम सहेजकर रखते हो
मैं बन जाना चाहती हूं,
चांद की नहीं, तुम्हारी चांदनी
जिसकी दूधिया रौशनी तुम्हारे मार्ग के हर तिमिर को दूर करे
और तुम सच कर सको अपने हर सपने को

रजनीश आनंद
17-11-16

रविवार, 13 नवंबर 2016

..ओ चांद सुनो

..ओ चांद सुनो,
मेरी एक बात
आज मेरे प्रिये ने
वो सबक कह दिया
जिसे सुनने को मेरे कर्ण
कब से तरस गये थे
उसने आज बताया
अपने प्रेम का रहस्य
उस क्षण लगा जैसे
जड़ हो गयी हूं मैं
परम सुख से हुआ साक्षात्कार
और नम हो गयीं पलकें
अश्रु सिर्फ दुख के नहीं
सुख के भी होते हैं साथी
मैंने कहा उससे थाम लो मुझे
ताकि इस सुख को महसूस कर लूं
जब उसने लिया मुझे
अपनी बांहों के घेरे में
तब मैं, मैं नहीं रही
सिर्फ वो रहा और हमारा प्रेम
उसके प्रेम की वर्षा से अभिभूत
मैं प्रेमलता बन कस गयी उससे
इस कसावट में मेरी आंखें,
अधमुंदी सी हो गयीं और
मैंने कहा, तुम्हारे प्रेम में
टीसता है तनमन
आजीवन बनी रहे यह टीस, यह कसावट
प्रेम इतना दो मुझे कि बेसुध हो जाऊं मैं
और तुम्हारी बांहों में तोड़ दूं
तनमन की हर लाज, हर दीवार
रजनीश आनंद
14-11-16

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

...तुम पलाश के फूल

मैं हरी घास की चादर
और तुम पलाश के फूल
जब बिछते हो तुम मुझपर
अनुपम होता है सौंदर्य
हरा और सुर्ख लाल
ऐसे खपते हैं दोनों
एक दूसरे में जैसे चुंबक के दोनों ध्रुव
सोचती हूं किस मोड़ पर आ गयी जिंदगी
कुछ समय पहले तक
अनजान थे बिलकुल हम
लेकिन अब आती है हर
सांस लेकर तुम्हारा नाम
तुम बिन कैसे होंगे दिन-रात
इसकी कल्पना मुझसे नहीं संभव
सुनो तुम प्रिये, ये चाह है मेरी
जब आओ तुम बनकर प्रेममेघ
मैं बन जाऊं तपती धरती
समेट लूं हर बूंद
तुम्हारे प्रेम का
क्योंकि हर बूंद है अनमोल मोती
रजनीश आनंद
10-11-16

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

तुम मृत्यु नहीं सृजन हो...

डूबती किश्ती नहीं मैं
ना तुम तिनके का सहारा
मेरे लिए बहुत खास हैं
तुम्हारे होने के मायने
बिलकुल वैसे जैसे किसी
मूर्तिकार के लिए गीली मिट्टी
और चित्रकार के लिए रंग
तुम मृत्यु नहीं सृजन हो मेरे जीवन के
नकारात्मकता का तिमिर छंटा तब,
जब आये तुम जीवन में
बने रहना सदा यूं ही
तुम जीवन प्राण बनके
मृत्यु शैय्या पर जाऊं जब मैं
तुम थाम लेना बांह मेरी
कह देना बस एक बात
तुम प्राणप्रिया मेरी
चैन से तब मैं जा पाऊंगी
इस नश्वर जगत से
तुम ही तुम हो चारों ओर
जब निकले अंतिम यात्रा मेरी
रजनीश आनंद
08-11-16

वो बंधन...

जीवन के सफर में मैं और तुम
चले तो थे प्रेमी -हमसफर बनकर
लेकिन, कुछ ही समय में
प्रेम कहीं खो गया और
हावी हुआ स्वार्थ, रिश्तों पर
अहसास हुआ मुझे
खोखला है हमारा रिश्ता
जहां प्रेम तुम्हारे लिए
महज किताबी बातें थीं
कोई मोल नहीं था तुम्हारे लिए
मेरी भावनाओं का
तुम यह बात कभी नहीं समझ पाये
प्रेम सबकुछ सहता है
किंतु उपेक्षा नहीं
आखिर मैं कबतक उपेक्षित रहती
कबतक अपने स्वाभिमान को अपमानित करती
यह सोच मैं ज्यों गयी तोड़ने उस बंधन को
जिसने बांध रखा था मुझे तुमसे
मैंने देखा तुम तो कब के तोड़ गये थे
वो बंधन!!!
मैं तो महज लाश ढो रही थी रिश्तों की...

रजनीश आनंद
08-11-16

शनिवार, 5 नवंबर 2016

चंद सिलवटें...

ये किसकी महक है फिजाओं में
जो छूकर मदहोश कर जाती है
एहसास करा जाती है कि
उसके बिना अकेली हूं मैं
निष्प्राण हूं , एक बुत के समान!
तभी कानों में फुसफुसा जाता है कोई
एक सनसनी सी दौड़ जाती है तनबदन में
और रोमानी हो जाता है पूरा वातावरण
बिस्तर पर लेट मैं महसूस करना चाहती
देखना चाहती हूं,उस आवाज को
साकार स्वरूप में, उसके चेहरे का स्पर्श
किंतु हाथ नहीं आता वो
सिर्फ मिलती हैं चादर पर
चंद सिलवटें!!!
जो रोमांचित करती हैं
जिन्हें हाथों से छूकर, मैंने अंकित किया है
मन के उस कोने में जहां है बादशाहत
उस महक की, फुसफुसाहट की...
रजनीश आनंद
05-11-16

बुधवार, 2 नवंबर 2016

निर्मल आंसू

एकदम स्वच्छ
निर्मल होते हैं
आंखों से बहते आंसू
दोष से रहित
बिलकुल पारदर्शी
हम-आप
साफ देख सकते हैं
इसके आर-पार
क्यों, कब और कैसे
आंखों में घुमड़े
और फिर बरसे आंसू
मैंने तो कई बार
पढ़ा इन्हें,
अद्‌भुत है
इनकी कहानी
जब हाथों में समेट
आप देखेंगे
इनके आर-पार
बरस सकते हैं
एक बार फिर
ये मोती आंखों से
लेकिन तब भयावह
हो जाती है स्थिति
जब सूख जाते हैं आंसू
और
संवेदना शून्य
आंखें पत्थर की
हो जाती हैं
मुझे नफरत है
पत्थर होती है
आंखों से
इसलिए भाते हैं
निर्मल आंसू...

रजनीश आनंद
03-11-16

मंगलवार, 1 नवंबर 2016

तुम्हारी इच्छा और मैं...

तुम्हें यह झूठ
प्रतीत हो सकता है
पर
सच कहती हूं मैं
मेरी हर इच्छा
तुमसे जुड़ी है
क्या तुम्हें भी कभी
ऐसा महसूस हुआ है?
जानते हो प्रिये जब
स्नान के बाद मैं
कपड़े पहनना चाहती हूं
तो
सहसा उस रंग के कपड़े तक
मेरे हाथ चले जाते हैं
जो तुम्हें प्रिय है
जब खुद को संवारने
आइने के सम्मुख होती हूं
तो वह सब कर बैठती हूं
जो है तुम्हारी पसंद
माथे पर लाल बिंदी
मैं बरबस लगा लेती हूं
क्यों?मुझे पता नहीं
पूरा दिन तुमसे बात करती हूं
समझना चाहती हूं तुम्हें
तुम्हारी पसंद-नापसंद
लेकिन आसान नहीं है
तुम्हें पढ़ पाना
क्योंकि विस्तृत है तुम्हारा व्यक्तित्व
फिर भी मैं इतना कह सकती हूं
बहुत प्रेम है तुमसे
बाकी चीजें मैं नहीं समझ पाती
रात नींद तो आती है
पर जागती रहती हूं मैं
यह सोच कि कब तुम्हें
मेरी चाह हो
और
तुम मुझसे कहो
आओ प्रिय उदात्त प्रेम के
सागर में हम डूब जायें
तब मैं समर्पित कर दूं
खुद को तुम्हारे लिए
गहरे प्रेम के उस क्षण में
मैं गहरी आवाज में
जो तुम्हें प्रिय है
सिर्फ लेना चाहती हूं
मैं तुम्हारा नाम
उस पल जब चंचल हो
तुम्हारा स्पर्श और
मादक हो हर ध्वनि
मैं बन जाना चाहती हूं
तुम्हारी इच्छा
और जी लेना चाहती हूं
तुम्हारे लिए बस
तुम्हारे लिए...

रजनीश आनंद
02-011-16