मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

Coronavirus outbreak: अजीब सा दौर ये...

एक अजीब सा दौर है, 40प्लस की हो चुकी हूं पर ऐसा समय नहीं देखा था। खौफ, अविश्वास और नफरत के बीच आप पिसे हुए हैं। मेरे जैसे मध्यमार्गी लोगों पर आफत है। इसलिए चुप रहती हूं, ज्यादा लिखती नहीं। पत्रकार हूं तो सूचना देने की कोशिश करती हूं पर उस दो पंक्ति की सूचना को भी लोग नफरत के कमेंट से भर देते हैं। पर कई लोगों को मेरी सूचना का इंतजार रहता है, इसलिए मैं जानकारी देती हूं। एक्सक्लूसिव नहीं पर जनसरोकार की सूचनाएं। 
घर पर राजनीतिक चर्चाएं खूब सुनी जिनमें देश विभाजन और इमरजेंसी की कहानियों की प्रमुखता थी। लेकिन आज का दौर अलग है। कोरोना काल में दिनचर्या पूरी तरह से बदल गयी है ऐसा तो नहीं है पर लोगों की नजरें बदल गयी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। बेशक हम वैज्ञानिक युग में हैं लेकिन फिल वक्त विज्ञान लाचार है। वह परीक्षण कर रहा है। इंसान की इच्छा शक्ति और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ही उसे बचा सकती है। हम रोज सकारात्मक खबरें ढ़ूंढ़ ते हैं ताकि पढ़कर लोगों की ऊर्जा में वृद्धि हो। अपने कुछ साथी जब निगेटिव हेडिंग लगाकर मुझसे चर्चा करते हैं तो मैं उनसे कहती हूं कि नहीं ऐसे नहीं लिखे। 
बावजूद इसके समाज में सकारात्मकता नहीं जाग्रत हो रही या यूं कहें  कि लोग उसे जगाना नहीं चाहते तो बेहतर होगा। भारत में कोरोना विदेश से आया। अपने ही कुछ नागरिक जो विदेश में थे वे संक्रमण लेकर आये। मामला धीरे -धीरे बढ़ने लगा। चीन के वुहान से शुरू हुई ये बीमारी यूरोप अमेरिका तक पहुँच गयी। चीन हमसे सीमाएं साझा करता है, तो बचना नामुमकिन था। कोरोना संक्रमण के बाद पता चला कि अपने इतने लोग चीन में रहते हैं। वायरस का इलाज अभी मौजूद नहीं इसलिए सावधानी ही बचाव है। शुरुआत में तो हम भारतीयों ने कोरोना को खूब ठेंगा दिखाया लेकिन जब करीब आकर उसने अपने शरीर के कांटे दिखाये तो ठेंगा कहीं गुम गया। अब सिर्फ दहशत है और नफरत भी।
नफरत क्यों? यह सवाल बहुत अहम है। दरअसल भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न धर्म के लोग रंजिश और मोहब्बत के साथ रहते है। प्रेम करते हैं साथ जीते हैं क्योंकि अकेले इनका जीवन संभव नहीं। यह हमारे समाज की खूबी और कमी दोनों है। तो मसला यह है कि कोरोना मामले तब देश में विस्फोटक हो गये जब दिल्ली में तब्दील जमात के हजारों लोगों को एक मरकज़ में शामिल होने के दौरान पकड़ा गया। इनमें क ई विदेशी भी थे। संक्रमण लेकर बाहर से आये थे और मरकज़ में शामिल हुए भारतीय मुसलमान इसके शिकार हो चुके थे। यहाँ से जब वे अपने राज्य गये तो वहाँ और लोगों को संक्रमित किया और इस तरह कोरोना का चेन फैलने लगा। कोरोना के फैलने से फैला दहशत और इस खौफ में छिपी थी नफरत। कुछ लोगों को लगा कि यह साजिश के तहत किया गया, जिसके लिए मुसलमान जिम्मेदार हैं, वही ं कुछ लोगों को लगा कि हमारे खिलाफ साजिश हो रही है। अगर यह सच है कि जमातियों ने साजिश के तहत कोरोना नहीं फैलाई, तो यह भी उतना ही सच है कि हिन्दू मुसलमानों का दुश्मन नहीं। डर है तो मौत का। इसमें तो कोई दो राय नहीं कि जमातियों ने मसले को छुपाया। और यह भी उतना ही सच है कि सरकार ने उनको समुचित इलाज उपलब्ध कराया। लेकिन इन सबके बीच जैसे जैसे वीडियो दोनों पक्ष की ओर से आये वह मन कसैला करते हैं और आप किसी को समझाने की स्थिति में नहीं रह जाते। 
हिंद पीढ़ी के एक मित्र का हाल जानने के लिए फोन किया था तो वे मुझ पर बरस गये। उनका गुस्सा जायज रहा होगा पर मेरी चिंता उकसाने वाली नहीं थी। उस मुहल्ले से 17 जमाती जिनमें विदेशी भी थे पकड़े गये हैं और कोरोना की दस्तक भी रांची में यही से शुरू हुई। आज झारखंड में 105 केस हैं जिनमें से 54 या 55 हिंद पीढ़ी से है। कारण है लापरवाही। लोगों ने समझदारी दिखायी होती तो ये नहीं होता। 
अरे भाई बीमारी है, धर्म को लेकर क्यों लड़ रहे। समझिए जिस दिन ये बीमारी नहीं होगी और खुदा ना खास्ता हम बच गये तो चर्चा कैसे करेंगे, किससे करेंगे। इसलिए नफरत कम करें। सांप्रदायिक और उकसाने वाले लोग दोनों तरफ हैं कोई दूध का धुला नहीं। शराब की खरीद में जो एकता दिखती है वो बीमारी से लड़ने में क्यों नहीं है भाइयों जागो। अब बहुत हुआ। यह देश हम सबका है, समझिए इसे हम ही संवार सकते हैं क्योंकि हम सब इसी धरती की संतान हैं जिनका डीएनए एक है भले ही जाति-धर्म अलग हो।