सोमवार, 31 अगस्त 2020

बीज

माली सहेजता है, धरती की कोख में
पल रहे उस बीज को जिसे बनना है वृक्ष
अंकुरण से प्रस्फुटन तक वह झेलता है
प्रसव वेदना, मौन चीख के साथ
वह कभी बाड़ लगता है तो 
कभी जंगली घास को उखाड़ता है
शिशु पौध की चिंता में वह कभी कभी
मुखर भी हो जाता है, क्योंकि पौधे की सुरक्षा जरूरी है
वह कभी पानी से सींचता है, 
तो कभी कीटनाशक का छिड़काव करता है
तंदुरुस्त होता पौधा उसकी हिम्मत बढ़ाता है
उसकी सलामती के लिए करता है पूजा पाठ
व्रत, उपवास की श्रद्धा और तलवार का जोश भी है उसके पास
आज जबकि लोग उस वृक्ष के समक्ष आम्रबौर मांगने आये हैं
चर्चा सिर्फ उच्च कोटि के बीज की है, माली के समर्पण और त्याग की नहीं... 

रजनीश आनंद

शनिवार, 29 अगस्त 2020

टिकुली-सिंदूर पर नहीं, इन मुद्दों पर लड़े जंग

पिछले कुछ दिनों से स्त्री कैसी हो इसपर चर्चा आम है। सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव नहीं रही पर देखा जरूर। तीज के समय से शुरू हुआ यह द्वंद्व अब भयावह होता दिख रहा है। रिया चक्रवर्ती के मामले ने इस बहस को और बढ़ाया और कड़वाहट ला दिया है। सबसे पहले तो हम औरतों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब आप अपने हक और अधिकारों की जंग लड़ रही हैं तो एकजुट रहें अकेले कोई सेनापति युद्ध नहीं जीत सका है, सेना की जरूरत होती ही है। तो बात मुद्दों की करते हैं रिया चक्रवर्ती तमाम स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं कि उनके लिए हम आपस में लड़ मर जाये ं। सुशांत सिंह के मामले में अगर रिया दोषी है तो उसे सजा मिलेगी, और जरूर मिलेगी। लेकिन उस एक लड़की को लेकर तमाम माडर्न लड़कियों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। ऐसी कई घटनाएं हमारे सामने होती हैं लेकिन हम उसकी चर्चा भी नहीं करते, यह हाईप्रोफाइल केस है इसलिए मीडिया लहालोट हो रहा है। बेशक जिस परिवार ने बेटा खोया है हमें उसके साथ खड़े होना चाहिए। सुशांत हमारे इलाके के थे इसलिए यह हमारा फर्ज बनता है कि हम उस परिवार के दुख में शामिल हों। अबतक जो जानकारी सामने आयी है वह चौंकाने वाली है। 
लेकिन कुछ बात मुझे पच नहीं रही मसलन रिया सुशांत के पैसों पर ऐश करती थी। अरे भाई वे लिव इन में रहते थे, और जब दो लोग प्रेम में होते हैं साथ होते हैं तो एक दूसरे पर खर्च करते हैं।लेकिन रिया ने अगर प्रेम का फायदा उठाया है तो यही कहूंगी कि सबको अपने कर्म का फल इसी दुनिया में भुगतना पड़ता है। हमारे देश का कानून उसे सजा देगा। रिया जिस प्रेम का दावा कर रही हैं वह व्यक्ति गत तौर पर मुझे इसलिए झूठा लग रहा है कि अगर प्रेम था तो उसे मरने के लिए क्यों छोड़ दिया। लड़ाई क्या प्रेम से ऊपर है, वह भी तब जब आपका साथी बीमार हो, जैसा कि रिया कह रही हैं। 
खैर मेरा यह कहना है कि रिया को गरिया कर महिलाएं आपस में क्यों भिड़ रही हैं। रिया ऐसे सोसाइटी से है जहाँ कोई महिला पीड़ित या अधिकारों से वंचित नहीं है। अधिकारों की जंग वंचित महिलाओं को लड़नी पड़ती है। रिया या आलिया को नहीं। 
तीज, जीतिया और छठ व्रत हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। अगर कोई  व्रत रखकर अपना प्रेम और केयर प्रदर्शित करता है तो करने दें, इसमें क्या बुरा है। श्रृंगार करके स्त्री मन प्रसन्न होता है होने दीजिए। इसमें आरोप प्रत्यारोप क्या। बंगाल की सारी कम्युनिस्ट महिलाएं दुर्गा पूजा के समय मार्क्स वाद भूलकर वही करती हैं जो उनकी परंपरा है, तो बिहारी औरतें तीज, छठ पर नाक से सिंदूर क्यों ना लगायें। किसी की भावना आहत ना करें। वैसे भी आजकल के पति पत्नियों का खास ख्याल रखते हैं। खैर मेरा कहना यह था कि जिस चीज से आप सहमत नहीं वह गलत है ऐसा नहीं है। वैसे भी हमें बात लैंगिक समानता की करनी चाहिए। स्त्री शिक्षा, स्वास्थ्य, काम के अवसर और निर्णय के अधिकार पर बात करनी चाहिए। स्त्री को देह से इतर एक इंसान के रूप में स्थापित करने की जंग करनी चाहिए तो हम टिकुली-सिंदूर पर भिड़े हुए हैं, अरे समझिए यही हमारी हार है। 

बुधवार, 26 अगस्त 2020

सोने की चेन

वो सोने की चेन मैंने बेच दी थी सुनार के पास
तुम्हें याद है ना, तुम इतना ही कह पाये थे, इसे क्यों? 
लेकिन मैंने तुम्हारे क्यों का उत्तर दिये बिना थमा दिया था
उस चेन को सुनार की हाथों में, मेरे जितने जेवर थे
उनमें से सबसे खरा सोना साबित हुआ था, वह चेन
20 हजार में बेच, मैंने पैसे भी पकड़ा दिये थे तुमको
ताकि तुम दावा ना कर सको मेरी तथाकथित स्वंतत्रता पर
मैंने देखा है तुम्हारी नजरें दबोचना  चाहती है मुझे आज भी
दर असल जिसे मैंने प्रेम का आलिंगन समझा था
वह तो जकड़न थी उस तकिये की जो गला घोंटना चाहता था 
एक स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व का, मिटाना चाहता था उसकी आत्मा को
शरीर तो स्त्री का अपना होता ही नहीं, उसपर तो स्टांप लगा होता है समाज का
हाँ उसकी आत्मा जीवित होती है, जिसका गला घोंटने के लिए
तुमने पहनाई थी मुझे सोने की चेन, लेकिन उसकी गिरफ्त से निकल गयी थी मैं, शरीर लहूलुहान हो तो क्या, आत्मा जीवित थी
इसलिए मैं बेच आयी थी तुम्हारे साथ ही वो सोने की चेन... 

रजनीश आनंद

रविवार, 23 अगस्त 2020

धीरज और सृजन

धीरज और सृजन औरतों के ऐसे शस्त्र हैं
जिनका मुकाबला करना ब्रह्मास्त्र के लिए भी संभव ना था
तभी तो अश्वत्थामा का प्रहार खाली गया था
जानते थे कृष्ण औरतों के इस शस्त्र को
तभी तो बदल दिया था उन्होंने परीक्षित का भाग्य
स्त्री धीरज रखती है, अश्रु का सहारा लेकर
वह जानती है शस्त्र घातक हैं मानव समाज के लिए
जो उपहास करते हैं अश्रु का
उन्हें रोकर देखना चाहिए, यह मात्र कुटिलता नहीं 
सहजता है सबकुछ संवारकर, सहेजकर रखने की
स्त्री सबकी चिंता करती है, इसलिए वो रोती है
धीरज धरती औरत तो बिकती आयी है बाजारों में
समाज उस सृजन को दरकिनार कर रहा है
जो औरतों के पेट में नहीं, समाज की कोख में पल रहा
लिंगभेद ने छीना है बच्चियों और उसकी मुस्कान को
फिर भी औरत धैर्य से सृजन कर रही है अनगिनत अश्वत्थामा का... 

रजनीश आनंद