सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

एक चम्मच मुस्कान...

रात नींद जैसे पराई हुई
लाख मिन्नतें की लेकिन
आगोश में नहीं लिया उसने
जैसे मुझे तड़पाने की हो ठानी
थक कर मैंने भी उसे
परास्त करने का निर्णय किया
भर लिया चाय की केतली में
एक चम्मच तुम्हारी मधुर मुस्कान,
एक चम्मच शरारती आंखों की जुबिश
और ढेर सारी तुम्हारी अनोखी बातें
सोफे पर बैठ मैंंने जहां शुरू किया
चाय पीना, पाया, इस चाय की हर चुस्की में था
एक अपनापन,प्यार और सुकून
वो सुकून जो नींद के खजाने में भी नहीं है मयस्सर
तुम्हारी बातों का असर दिख रहा
नींद आंखों से गायब थी, और मैं
पूरी ऊर्जा से आसमान के कैनवास
पर उतारना चाहती थी ,तुम्हारी बातें
अनोखी बातें जो प्राणवायु थे मेरे लिए....
रजनीश आनंद
31-10-2017

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

खुल गयी दुपट्टे की गांठ...


ओह!! यह क्या हुआ?
कैसी खुल गयी यह गांठ
मन ने पूछा मुझसे, यह सवाल
जवाब तो सच में नहीं जानती
क्योंंकि कसकर बांधा था
मैंने अपनी स्वाभाविक मुस्कान को
अपने प्रिय दुपट्टे में और
जब बांध रही थी गांठ
तो बहुत रोई थी मैं, तो
क्या आंसुओं ने सींच दी
मुस्कान की खेती को
तभी तो अंकुरित हो यह
फूट पड़ी है मेरे दुपट्टे से
बिना मुखौटे वाली हंसी
बेपरवाह, उन्मुक्त, जोशीली
इतने दिनों बाद जब देखा इसे
तो आइने के सामने खड़े हो
मैंने चस्पां किया इसे होंठों पर
और खुद से किया एक वादा
अब कोई गांठ नहीं बाधूंगी...

रजनीश आनंद
29-10-17

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

शब्द भेदते हैं मुझे...

शब्द चुभते हैं मुझे
घाव कर जाते हैं
कोशिश करती हूं
बच निकलने की
लेकिन पीछा करते हैं
मधुमक्खी की तरह
डंक मारते हैं
चीखती हूं मैं
बस करो अब और नहीं
लेकिन वर्णमाला के सारे
अक्षर जैसे दुश्मन बने
कान बंद करूं तब भी
शब्दों का स्वर तीक्ष्ण
भेदते हैं तनमन
तमाम उपमाओं से विभूषित
क्योंकि मैं एक औरत
हाड़ मांस की जिंदा इंसान
लेकिन स्व निर्णयसे वंचित
शब्दों के जाल में उलझी
मर्यादा की टोकरी ढोती
फिर भी शब्द भेदते हैं मुझे...

रजनीश आनंद
28-10-17

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

मैं रोती हूं तुम्हारे लिये...

मैं रोती हूं तुम्हारे लिये
पूरे तड़प के साथ
जब तुम नहींं आते
क्योंकि इंतजार में तुम्हारे
बिखेर कर रखा था
जुल्फों को,ताकि तुम
संवार दो इन्हें और
मेरे हाथों को थाम
कह दो, मैं हमेशा
संग तुम्हारे, लेकिन
जब बिखरे केश मैं
खुद से संवारती हूं
तब आंसू बरसते हैं
कानों में गूंजती है
तुम्हारी आवाज
समय पर बस नहीं तुम्हारा
वह तुम्हें भगा रहा
पर तुम आओगे जरूर
तब आंखें मींचकर
मैं खुद को भरोसा दिलाती हूं
हम साथ होंगे, तब हाथों में हाथ होगा
बस मौन और प्रेम संग होगा
तब आंंखों से लगातार बरसते हैं
आंसू, विरह के नहीं ,मिलन के रोमांच के
तभी तो तुम्हारे लिए
रोना भी खुशी से भरपूर होता है...

रजनीश आनंद
26-10-17

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

मैं तुम्हें याद नहीं करती

मैं तुम्हें याद नहीं करती
जीती हूं हर पल हर क्षण
जैसे नदी के किनारे नीर को
अंधियारा रात को
चांदनी चांद को.
तो यह सोच गमगीन
ना होना की तू
यादों में शामिल है मेरे
क्योंकि मैं याद नहीं करती तुम्हें
जीती हूं हर पल....
ए सुनो तुम्हें मैं बताऊं एक बात
अलसाई सुबह में कड़क चाय तुम
मुरझाये चेहरे पर गहरा चुंबन तुम
उदासी के पलों में मुस्कान तुम
बेबसी में एकमात्र सहारा तुम
क्योंंकि मैं याद नहीं करती तुम्हें
जीती हूं हर पल हर क्षण...

रजनीश आनंद
24-10-17

सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

मैं लिखती हूं एक खत तुम्हें

हां मैं लिखती हूं
रोज एक खत तुम्हें
आंसुओं से नहीं सजाती
कभी शब्दों को, हां
उम्मीद बनते हैं शब्द
और वाक्यों में प्रेम का उपहार
जब खत पहुंचता है तुमतक
और हौले से मुस्कुरा कर
तुम खोलते हो उन्हें
तो लगता है जैसे
मैंने तुम्हें छूने का
सुख पा लिया
और इस सुख की चाह में
मैं हर रोज रात को
लिखती हूं एक

रजनीश आनंद
23-10-17

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

एहसासों की वो शाम...

तुम साथ नहीं आज
पर एहसासों की वो
शाम साथ है मेरे
जब मेरा सूखा मन
गीला हुआ था तुमसे
याद है वो रूमाल?
जिसमें पोंछा था हाथ
उसे यूं ही रखा है अबतक
तुम्हारी खुशबू के साथ
वो साड़ी भी सहेजा है
जिसके आंचल पर
जीवंत हैं अंगुलियां तुम्हारी
अपनी आंंखों में कैद किया
मुखड़ा तुम्हारा, ताकि
आंखों ही आंखों में दे दूं
बनावटी,प्रेमजड़ित उलाहना
तुम्हारी मुस्कान को होंठों से
सटाकर जज्ब किया है
अपने होंठों पर ताकि
वही, हां बिल्कुल वैसे ही
मुस्कान थिरके मेरे होठों पर
जानते हो तुम,यह तमाम
पूंजी हैं मेरी, और मैं सबसे
धनवान इस धरती पर...

रजनीश आनंद
21-10-17

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

इतराकर चलने को जी चाहता है...

ना आज चांदनी रात
ना मैं चौदहवीं का चांद
ना हाथों में हाथ किसी का
ना पैरों में सोने की पाजेब
फिर भी ना जानें क्यों
आज इतराकर चलने को
जी मचल रहा है ...
ना पीने की लत, ना पी रखी है
ना लगा सोलहवां साल
ना कसीदे पढ़ें किसी ने
ना छुटपन की सखी मिली
फिर भी ना जानें क्यों
आज इतराकर चलने को जी...
हां, एक बात हुई अनहोनी सी
असर उसका तो नहीं है?
हां, मेरी रूह तक पहुंचे तुम
कानों में घुली तुम्हारी हंसी
आंखों में बसा साथ तुम्हारा
तनमन में अपनापन तुम्हारा
तभी तो आज इतराकर
चलने को जी मचल रहा
और मैं बेफ्रिक तुम्हारी ऊर्जा से भरपूर
अमावस की रात को पूनम बनाती
बिना तुम्हारे, फिर भी साथ तुम्हारे
तुम से लिपटती तुममें सिमटती
तब तो आज इतराकर चलने को
जी मचल रहा मेरा हर पल हर दिन...

रजनीश आनंद
18-10-17

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

वो जो कतरा -कतरा सा...

वो जो छोड़ गये
तुम मेरे पास कुछ
दाना-दाना सा
भरपूर मीठा है
तुम्हारे प्रेम से
जानते हो तुम
हर रात बैठ अकेली मैं
चुगती हूं कतरा-कतरा
और हर दाना
करता है शरारत मुझसे
मेरे वक्ष से लिपट
खो जाता है मुझमें
जैसे कभी तुम ,
और मैं भर जाती हूं
तुम्हारी ऊष्मा से...

रजनीश आनंद
16-10-17

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

लड़कियों की नियति 'छोड़ना'

छोड़ना तो जैसे
लड़कियों की नियति
बचपन में खिलौने
लड़कपन में सखियां
और जवानी में
सीने से कलेजे को
निकाल अपनी गलियां
आंसुओं को भी छोड़ देती है
लड़कियां दूसरों की मुस्कान पर
अपनी मुस्कान तो कहां
छोड़ आती है, स्मरण नहीं
तब कोई नहीं
करता सवाल हमसे?
सवाल तो तब
दागे जाते हैं
जब छोड़ आती हैं लड़कियां
अपनी मुस्कान के लिए
कुछ पल ही सही
जिम्मेदारियों का थैला
सवाल छोड़ते नहीं
पीछे भागते हैंं
डराते , धमकाते हैं
मु्ट्ठी में कैद
ख्वाबों को छुड़ाना
चाहते हैं, जिसे
कसकर पकड़ा है मैंने
लेकिन इस बार
सवालों के डर से
मैं पिंड छुड़ाकर
भागूंगी नहीं, क्योंकि
भागने की कला
तो सिर्फ मैं जानती हूंं...

रजनीश आनंद
14-10-17

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

ऊर्जा का स्त्रोत तुम...

तुम वो सूर्य हो
जिससे मिलती
ऊर्जा मुझे.
दूर सही तुम
पर मेेरा घर
आंगन रौशन है
नाम से तुम्हारे
हर सुबह जब धरती पर
बिखरती है सूरज की छटा
तो महसूस होता है तुमने
हौले से चूम लिया हो
और मैं उठकर पूरी
ताकत से जुट जाती
जीवन के संघर्ष में
जहां तुम्हारा साथ
हर कदम पर
महसूस होता है...

रजनीश आनंद
12-10-17

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

मोहब्बत बस मोहब्बत...

हां, मैं एक औरत हूं
जिसे मोहब्बत है
एक ऐसे पुरूष से
जिसकी बांहों में गरमाहट
व्यवहार में अपनापन है
जो धौंस नहीं जमाता
अपने पुरूषत्व का
ना अपमानित करता है
मेरे स्त्रीत्व को
जिसके लिए प्रेम का आशय
मात्र मेरे शरीर को मसलना नहीं
जो तरजीह देता है
मेरी सहमति, असहमति को
जो यह तो नहीं कहता
कि चाय जूठी कर दो मीठी हो जायेगी
पर हर निवाला खाना से पहले
कहता है मुझसे खाओ प्रिये
और हर बार जब
मैं सिमटना चाहती हूं उसमें
उसकी आंखों में होता है
मेरे लिए अथाह प्रेम
हां, मुझे मोहब्बत है ऐसे शख्स से
मोहब्बत बस मोहब्बत...

रजनीश आनंद
11-10-17

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

चुंबन का प्रति उत्तर

आकाश में जितने
तारे टिमटिमाते हैं
सब चुंबन हैं मेरे
जिन्हें उछाल फेंका है
मैंने तुम्हारे लिए
वो तुम तक पहुंचे या नहीं
यह सोच बेचैन होती हूं
रोती भी हूं घंटों
लेकिन सुबह जब
बागीचे की घास पर
बिखरी होती हैं ओस की बूंदें
तो लगता है जैसे
मिल गया हो चुंबन का प्रति उत्तर...

रजनीश आनंद
08-10-17

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

सपनों की किताब

मैंने छुपाकर रखी थी सबसे
अपने सपनों की किताब
जिसके पन्नों पर बिखरे थे
मेरे कई मासूम सपने
चांद को मुट्ठी में भींचने के नहीं
सूरज से आंख लड़ाने के ख्वाब
स्थिति-परिस्थिति ने तोड़ा मुझे
कभी-कभार यह ख्याल भी
चस्पां हुआ कि फेंक दूं यह किताब
आसार नहींं दिख रहे, सपने पूरे होने के
औरत होकर इतने बड़े सपने देखने की जुर्रत!
औकात में रहो का व्यंग्य भी सहा
टूटकर छोड़ दिया था सपने देखना
सोचा था अबकी दीवाली
सिरहाने से निकाल फेंक दूंगी रद्दी संग
इस ख्याल ने पलकें गीली की
तो जी चाहा एकबार सिसक लूं
उस किताब को सीने से लगाकर
खोली जो किताब, दंग थी मैं
जिन सपनों को दफन किया था
सब जीवित थे नन्हें पौधों की तरह
जीवन के प्रति मेरी जिजीविषा ने
खाद पानी दिया था इन्हें
नन्हें पौधों को मारने की नहीं
अब उन्हें पेड़ बनाने का समय था
और मैं समझौते के मूड में
बिल्कुल नहींं थी, बिल्कुल भी नहीं...

रजनीश आनंद
05-10-17

रविवार, 1 अक्तूबर 2017

उम्मीदों का टूटना...

क्या तुम्हें मालूम है
कैसा होता है,
उम्मीदों का टूटना
क्या महज आंसू बहते हैं?
या दरक जाता है
दो दिलों का रिश्ता.
मैंने तो यह पाया
जब टूटती है उम्मीद
तो रिक्त जरूर होता है इंसान
लेकिन बे उम्मीद वह
एक कदम बढ़ जाता है
इंसान होने की तरफ
तो टूटे जब उम्मीद किसी से
तो जश्न मनाओ आंसुओं का
क्योंकि आज के दौर में
आंसू किसी के लिए बह निकले
ऐसे संबंध अब बनते कहां हैं?

रजनीश आनंद
01-10-17