रविवार, 25 सितंबर 2016

प्यार का इंद्रधनुष

अकेली बैठ जब करती हूं
मैं तुम्हारा इंतजार,
तो मन क्या कहता है
मालूम है तुम्हें प्रिये ?
चाह होती है ,
हाथ में हो तुम्हारा हाथ
और क्षितिज तक चले जायें हम
तुम्हारे प्यार के इंद्रधनुष पर बैठ
चांद को छू लूं मैं
तुम सजा दो मेरी मांग
पलाश के फूलों से
आवृत हों हम-तुम
प्रेम के लिहाफ में
लेकिन तभी अनिश्चितता की दस्तक
तोड़ देती है सपनों को
और नजर आता है
इंतजार का लंबा सफर
तो, थोड़ा अधीर होता है मन
कैसे कटेगा यह सफर?
लेकिन फिर गूंजती है
तुम्हारी कंठरागिनी
जो कहती है मुझसे
मैं तुम्हारा और तुम मेरी हो
और टूट जाता है अधीरता का मर्तबान
दिखता है खुला आकाश,तुम्हारे प्रेम का
जिसमें डैनों को फैलाकर
मैं गोते लगाना चाहती हूं
और इस तरह खत्म होता है
इंतजार का एक और दिन...

रजनीश आनंद
26-09-16

शनिवार, 24 सितंबर 2016

मुझे तुमसे जो हो गया है प्रेम...

मुझे तुमसे जो हो गया है प्रेम
लगता है बावली हो गयी हूं मैं
सोचती हूं अहा!
कितना हसीन होगा वो पल
जब होगे तुम मेरे सम्मुख और खुशी से
भर आयीं होगी मेरी आंखें
समझ नहीं पाऊंगी कि क्या करूं मैं
निहारूंगी तुम्हारा मुखमंडल
या बाहों में समा जाऊंगी
या छू लूंगी तुम्हें हौले से
या खो जाऊंगी तुम्हारी आंखों में
जिसमें सजे हैं सपने कई
जिसे सजाया है हमने मिलकर
लेकिन जानते हो तुम बड़ी दुष्ट हैं
तुम्हारी आंखें, जितना मैं झांकती हूं इनमें
खुद से दूर होती जाती हूं
काबू नहीं रहता तनमन पर
लेकिन क्या करूं मैं
भाता है मुझे यह सब
क्योंकि मुझे खुद से ज्यादा
तुमसे जो हो गया है प्रेम...
रजनीश आनंद
24-09-16

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

...ताकि मैं भी खिल सकूं

तुम्हें एक बात बताऊं प्रिये
आज जब मैं घर के बागीचे में गयी
तो हतप्रभ थी, वर्षों से फूल के लिए तरसते
गुलाब के पौधे में खिला था एक लाल फूल
मैं भागकर उसे निहारने गयी
अद्‌भुत मनोहारी था उसका सौंदर्य
पूछा मैंने पौधे से इतने दिन क्यों तरसाया
अब जाकर  मस्तक पर तेरे खिला है लाल फूल
मेरी बात पर वह गुर्राया, तू कौन सा
खिली थी अबतक, जैसा माली वैसा बाग
तू खिल गयी तो मैं भी खिल गया
मेरे फूल पर अलि मंडराता है प्रेम की चाह में
मैं रोज खिलता रहूंगा, जानता हूं मैं
तुझे है किसके प्रेम की चाह
तो खुल कर प्रेम निवेदन कर और मुस्कुरा
ताकि मैं भी खिल सकूं जीवंतता के साथ
रजनीश आनंद
22-09-16





रविवार, 18 सितंबर 2016

...क्योंकि मुझे चाह है तुम्हारी

सोचती हूं कहूं, ना कहूं
स्त्री हूं, लाज आड़े आती है
लेकिन मन मानता नहीं
वो तो कहने को बेचैन है
मुख को तो नियंत्रित कर लेती हूं
किंतु इन नयनों का क्या करूं मैं
ये चुप नहीं रहतीं, ज्यादा लगाम कसती हूं
तो, बरस पड़ती हैं
उस अश्रुधार में बह जाती है, लाज
और मुख से निकल पड़ते हैं ये शब्द
हां, मुझे चाह है तुम्हारी
मेरे तनमन के हर कतरे पर
लिखा है तुम्हारा नाम
जबतक सांस चलेगी
संजोए रखूंगी उस नाम को
संभव नहीं किसी के लिए
मिटाना उस नाम को
अमर है हमारा प्रेम का रिश्ता
क्योंकि हर पल-हर दिन
मुझे चाह है तुम्हारी
रजनीश आनंद
19-09-16

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

...वो हरी घास की चादर

रेलवे प्लेटफॉर्म पर खड़े -खड़े निहारिका लगातार बोल रही थी. तुम्हें मेरी सारी बात याद है ना... अच्छे से रहना. सेहत का ख्याल रखना. मैं जानती हूं तुम्हारे सपने क्या हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए तुम्हें अपनी सेहत का ध्यान रखना होगा. लेकिन वह एक बार भी रुद्र की ओर नहीं देख रही थी. वह लगातार उसे देख रहा था. रुद्र जानता था, निहारिका की उस वक्त क्या स्थिति थी.

उसने उसका हाथ जोर से पकड़ा और उसे अपनी ओर खींचकर सीने से लगा लिया. रुद्र के सीने से लगते ही निहारिका के सब्र का बांध टूट गया, वह फफक पड़ी. रुद्र ने उसे अपनी बांहों के घेरे में समेट लिया. वह जानता था, रोकर ही निहारिका का मन कुछ हल्का हो सकता है.

उसने रोती निहारिका को दिलासा दिया, मैं जा रहा हूं, यह सच है लेकिन तुम्हें छोड़कर नहीं. अपने भविष्य को संवारने जा रहा हूं. तुम चाहती हो ना मेरे सपने सच हो जायें. मैं एक जाना-माना साइंटिस्ट बन जाऊं, तो अब मत रोना. तुम अच्छे से रहना, अपनी पढ़ाई करना और मेरा इंतजार करना. और हमारी बात तो फोन और फेसबुक पर होती रहेगी, हम अलग-अलग नहीं साथ हैं. तुम क्या कहती हो? रुद्र की इस बात पर निहारिका मुस्कुराई. वह उसकी इसी बात की तो दीवानी थी. वह निहायत ही समझदार और बातों का जादूगर था.

रुद्र से अलग होते हुए निहारिका ने उससे कहा, वहां जाकर मुझे भूल मत जाना. रुद्र ने उसका हाथ थाम कर कहा, मैं ऐसा क्यों करूंगा. मुझे जीवन में अकेला नहीं होना है. बस तुम अच्छे से रहना. रुद्र के यह कहते ही ट्रेन ने एकबार फिर सीटी बजाई. ट्रेन के खुलने का समय हो गया था. रुद्र ने निहारिका के माथे पर अपने होंठों के निशान छोड़े और ट्रेन की ओर भागा. उसने बोगी के दरवाजे पर खड़े होकर निहारिका को देखा, दोनों की आंखें नम थी, लेकिन दोनों आंखों में अपने-अपने सपने थे, जिन्हें उन्हें पूरा करना था. रुद्र चला गया, निहारिका उसकी छवि और बातों को सीने में समेटे हॉस्टल के लिए चल दी. उसने अपने भगवान से कहा, रुद्र की रक्षा करना, उसके सपने पूरे करना और यह जानती थी कि उसने अपने भगवान को जो ड्‌यूटी दी है उसे वह जरूर पूरा करेगा.

निहारिका उदास थी, उसे कुछ करने का मन नहीं कर रहा था, इसलिए वह डिनर के लिए जाना नहीं चाहती थी. लेकिन पूजा उसे जबरदस्ती लेकर जाना चाहती थी. उसने एक बार मना किया, लेकिन तभी उसे लगा जैसे रुद्र ने कहा हो, तुम्हें यूं ही कमजोरी रहती है. मेरे जाने के बाद खाना मत छोड़ देना, खाती रहना. वह हमेशा उसे छेड़ा करता था, खाना खाती रहना, वरना शादी के बाद दिक्कत तुम्हें ही होगी. उसकी आवाज गूंजते ही निहारिका के होंठों पर मुस्कान आ गयी और वह खाने के लिए पूजा के साथ चली गयी.

रात को उसे नींद नहीं आ रही थी. उसे वह दिन बार-बार याद आ रहा था, जब उसने पहली बार रुद्र को देखा था. उसने मास कम्यूनिकेशन की मास्टर्स डिग्री के लिए रांची के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था. क्लास शुरू होने से एक दिन पहले वह हॉस्टल आयी थी. उसे रैगिंग का भय था, लेकिन इंट्रोडक्शन से ज्यादा कुछ हुआ नहीं. वह आम लड़कियों की तरह ज्यादा स्टाइलिश भी नहीं थी, इसलिए लड़के उसके आगे-पीछे नहीं हुए. वह आसानी से अपने कमरे तक आ गयी. कमरा उसे अच्छा मिला था. सेकेंड फ्लोर पर था.एक बेड, आलमारी और एक टेबल कुर्सी. एक खिड़की भी थी.

उसका मन हुआ खिड़की से बाहर देखने का. उसने खिड़की खोल दी. सामने कॉलेज का लॉन था. लॉंन काफी सुंदर था हरी घास की चादर सी बिछी थी और करीने से फूल लगे थे. लाल, गुलाबी, नीले,पीले हर रंग के फूल.  निहारिका का मन उस दृश्य को देखने में रम गया. लड़के-लड़कियां आ जा रहे थे. कोई घास पर बैठा था, कोई मस्ती कर रहा था. अचानक उसकी नजर एक लड़के पर गयी. वह हरी घास पर लेटा कुछ पढ़ रहा था. निहारिका को उसकी शक्ल दिखायी नहीं पड़ी, लेकिन उसकी यह अदा उसे भा गयी. उसने मन में सोचा सब मस्ती में व्यस्त है और यह पढ़ रहा है. चूंकि उसे खुद भी पढ़ने का शौक था, इसलिए उस लड़के के प्रति उसे आकर्षण सा हो गया.

लेकिन उसका चेहरा वह देख नहीं पा रही थी, क्योंकि सामने किताब थी.  हालांकि उसने देखा कि वह स्टीफंस हॉकिंग की  किताब ‘ब्रीफ हिस्ट्री अॅाफ टाइम’ पढ़ रहा है. निहारिका ने मन में सोचा-‘बाप रे फिजिक्स’. निहारिका ने इतिहास और राजनीतिशास्त्र के साथ बीए किया था. उसका विज्ञान से कोई नाता नहीं था. अचानक उसका फोन बजा और वह खिड़की से हटकर फोन उठाने आ गयी.

 फोन पर मां थी. निहारिका ने मां से पांच मिनट बात की और उन्हें हॉस्टल की सारी जानकारी दी. फोन रख वह एकबार फिर खिड़की पर आ गयी. वो लड़का अबतक पढ़ रहा था. लॉन का नजारा उसे साफ दिख रहा था. अस्त होते सूर्य की रोशनी लड़के पर पड़ रही थी, सूरज की रोशनी में लड़का अद्‌भुत दिख रहा था. निहारिका उसे खड़ी-खड़ी देख रही थी. उसकी इच्छा हो रही थी कि वह उसका चेहरा देखे, लेकिन वह दिखा नहीं. तभी अचानक वह उठा. मध्यम कद. गठीला शरीर. आकर्षक लग रहा था. अचानक निहारिका को लगा वह क्यों उस लड़के को घूर रही है, वह खिड़की से हट गयी.

उसने अपने कपड़े और किताबों को अपने कमरे में करीने से लगा दिया. वह हाथ मुंह धुलकर आराम से बेड पर बैठी ही थी कि किसी ने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी. निहारिका ने दरवाजा खोला-सामने एक लड़की थी. उसने हाथ बढ़ाकर कहा, ‘माय सेल्फ पूजा’. बगल वाले रूम में हूं. दो दिन पहले आयी हूं और तुम? निहारिका ने उसका हाथ पकड़कर कहा-मैं निहारिका हूं आज ही आयी हूं.

पूजा - चलो डिनर का समय हो गया है. पूजा की यह आत्मीयता निहारिका को अच्छी लगी. उसे भूख लग रही थी, उसने दरवाजे को बंद किया और अपना फोन उठाकर उसके साथ चल दी. पूजा काफी स्टाइलिश थी. कैटीन के रास्ते में जितने लड़के मिले सब उसे घूर रहे थे. कइयों ने तो उसे हाय-हलो भी कहा. पूजा भी अपनी इस खूबी से वाकिफ नजर आ रही थी. इसलिए वह अपनी अदाओं में और पैनापन लाती थी और लड़के आहें भरते नजर आते.

कैंटीन पहुंचकर दोनों एक टेबल पर बैठ गयीं. निहारिका को पूजा ने ऊपर से नीचे तक घूरा फिर कहा, डार्लिंग सूट पहनना छोड़ दो. निहारिका-क्यों? मैं तो यही पहनती हूं. पूजा-हां वो तो ठीक है, लेकिन अब मत पहनो. कुछ सेक्सी कपड़े डालो बदन में ऐसे कोई घास नहीं डालेगा यहां. मुझे देखो. फिर उसकी लंबी चोटी को पकड़कर बोली, अरे इसे खोलकर रखो शायद कोई उलझ जाये, इन जुल्फों में. जरूरत नहीं मुझे, निहारिका ने कहा. जिसे मुझे पसंद करना होगा, ऐसे ही करेगा, वरना नहीं करेगा. इस बार पूजा खिसिया गयी-तो पड़ी रहो ऐसे ही कोई नहीं आने वाला तुम्हारा श्रवण कुमार. उसकी इस बात पर निहारिका हंसी.....श्रवण कुमार. अरे यहां श्रवण कुमार कहां से आया...

पूजा-अरे मेरा मतलब सीधा-साधा लड़का है मैं उसे श्रवण कुमार ही बोलती हूं. अब चलो प्लेट लेने वरना भूखी रह जाओगी कोई श्रवण कुमार नहीं आयेगा प्लेट लेकर. निहारिका और पूजा ठहाके लगाती हुईं खाना लेने चलीं गयी. खाना खाते वक्त दोनों ने काफी बातें की और जल्दी ही दोनों में अच्छी ट्‌यूनिंग हो गयी.
पूजा ने कहा, जल्दी करो. कल इंट्रोडक्शन है जल्दी उठना होगा. दोनों वहां से उठ गयीं. कमरे में आकर निहारिका जल्दी सो गयी, वह थक गयी थी.

सुबह नींद खुली तो छह बज गये थे. वह जल्दी से फ्रेश हो गयी और रेडी होने लगी. निहारिका ने अपना पसंदीदा ब्लू सूर्ट पहना. व्हाइट दुपट्टे के साथ. तभी पूजा ने दरवाजा खटखटाया और उसे बालों को संवारने का मौका भी नहीं दिया. कहा सुंदर लग रही हो जल्दी करो. निहारिका के बाल खुले थे बस एक क्लिप लगा था. जल्दी-जल्दी दोनों ने नाश्ता ठूंसा और कॉलेज आडिटोरियम में पहुंच गयीं. सीट लगभग भर चुके थे. पूजा को एक लड़के ने अपने बगल में बैठा लिया. निहारिका खड़ी थी, तभी उसे किसी ने आवाज दी, यहां बैठ जाइए. निहारिका ने पीछे देखा. एक लड़का था, वह थोड़ा सहम गयी. लड़कों से बात करने में निहारिका थोड़ी संकोची थी, इसलिए उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. तभी उस युवक ने फिर से कहा-बैठ जाइए. उसने अपनी बगल वाली सीट उसे अॅाफर की. निहारिका सहमते हुए बैठ गयी.

इंट्रोडक्शन में सभी अपना नाम और पूर्व शिक्षा के बारे में बता रहे थे. जैसे-जैसे निहारिका का नंबर आ रहा था, वह अंदर से डर रही थी. लेकिन आखिरकार उसका नंबर आ गया. वह बोलने के लिए खड़ी हुई, तो नर्वस सी हो गयी. तभी बगल वाले लड़के ने कहा-बोलिए घबरा क्यों रहीं हैं. आप तो कॉंन्फिडेंट दिख रहीं हैं. उसने इतने अपनेपन से यह बात कही कि निहारिका को लगा जैसे इस जगह को उसका कोई अपना हो, उसने अपना इंट्रो दिया और बैठ गयी. उसके बाद उस लड़के का ही नंबर था. वह उठा और उसने बहुत ही सहज तरीके से अपना अपना इंट्रोडक्शन दिया. मैं रुद्रप्रताप. संतजेवियर्स कॉलेज रांची से हूं. मैंने फिजिक्स अॅानर्स किया है.

जिस वक्त वो बोल रहा था निहारिका उसे देख रही थी. वह बहुत ही कॉन्फिडेंट था. बैठने के बाद उसने निहारिका से कहा, तो आप इतिहास की छात्रा हैं. मेरी रुचि है इतिहास में लेकिन मैं विज्ञान पढ़ना पसंद करता हूं, मुझे कुछ नया करने में रुचि है और आपकी? निहारिका-मैं पढ़ना चाहती हूं. मुझे प्रोफेसर बनना है साथ ही मैं साहित्य में रुचि रखती हूं. मैं लिखना पसंद करती हूं. इस बार रुद्र ने कहा-वाह. साहित्य. अच्छी बात है.

इंट्रोडक्शन खत्म होने के बाद सभी एक-दूसरे से बात करने में व्यस्त थे. निहारिका को समझ नहीं आया कि वह क्या करे. तभी उसे ध्यान आया, क्यों ना मैं लॉन में घूम आऊं, वह उस ओर चल पड़ी. उसकी इच्छा थी कि वह भी उस हरी घास पर  जाकर लेट जाये, जहां कल वह लड़का लेटा हुआ था. वह घूमती हुई उसी जगह पर पहुंची. वह हैरान थी, क्योंकि उस हरी घास पर अब भी कोई बैठा पढ़ रहा था. निहारिका के मन में सवाल उठे, क्या यह वही लड़का है? लेकिन कल तो यह लेटा हुआ था आज तो बैठा है. कैसे पता चलेगा यह वही है या नहीं? यह सोचते हुए वह आगे बढ़ रही थी. तभी किसी ने पीछे से आवाज दी-रुद्र तू फिर यहां आकर बैठ गया. अबे चल ना थोड़ा खाते हैं. निहारिका ने सुना रुद्र... क्या यह वही है जो इंट्रोडक्शन के वक्त मेरे साथ था. जिज्ञासावश निहारिका ने उसकी ओर गौर से देखा, वह पलटा, बोला तुम चलो मैं आता हूं. उसके दोस्त ने कहा, हां तो जल्दी करना.

निहारिका ने देखा, यह तो वही है रुद्रप्रताप. अच्छा तो यही है वह. निहारिका कुछ समझ पाती इससे पहले उसने कहा-अरे आप? यहां मैं समझा आप ग्रुप में बिजी होंगी. निहारिका मुस्कुराई नहीं मेरे कमरे से यह जगह दिखायी देती है. बहुत सुंदर है, तो सोचा एकबार देख आती हूं. रुद्र-हां जगह तो सुंदर है. सुकून भी देती है. मैं तो एक सप्ताह से यहां हूं. निहारिका ने पूछा-कहां के रहने वाले हैं आप? रुद्र- मैं बोकारो जिले से हूं, जारंगडीह मेरे गांव का नाम है. आप तो रांची से ही हैं ना? निहारिका-जी.  रुद्र-बैठिए. निहारिका उसकी बगल में बैठ गयी. फिर दोनों ने बहुत सारी बातें की. निहारिका ने महसूस किया वह बहुत समझदार था. अपनी बातों को प्रभावशाली तरीके से रखता था. एक अच्छे वक्ता के गुण थे उसमें. दोनों काफी देर तक बात करते रहे. अचानक निहारिका को ध्यान आया शाम हो गयी है घर फोन करना है. उसने रुद्र से कहा-मैं कमरे में जाऊंगी. रुद्र- हां जाइए. कल आयेंगी क्या? आपसे बात करके सुकून महसूस हुआ. हम बात करते हुए दूर तक जायेंगे. निहारिका मुस्कुराई. हां आऊंगी. लेकिन सहसा उसके मुंह से निकल गया. इरादा क्या है? रुद्र- क्या होगा. आप साथ होंगी, तो थोड़ी बात होगी? दोस्ती का इरादा है और क्या?

निहारिका ने हां में सिर हिलाया और वहां से चली गयी. उसे ऐसा महसूस हुआ, जैसे रुद्र की निगाहें उसे घूर रहीं हों. लेकिन उसने पलटकर नहीं देखा. कमरे में आकर निहारिका ने अपने घर फोन किया. सारी बातें बतायीं. पता नहीं क्यों वह बहुत खुश थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई मन की चाह पूरी हो गयी हो. अगले दिन क्लास खत्म करके जैसे ही वह निकली उसे रुद्र का ध्यान आया. क्या करूं जाऊं या ना जाऊं? क्या सोचेगा वो? मेरे प्रति कैसी धारणा बनायेगा? यह सोचते-सोचते वह लॉन की तरह चल दी. काफी भीड़ थी  वहां. उसे रुद्र दिखा नहीं. उसे कुछ निराशा हुई. उसने सोचा क्या करूं, वापस चली जाऊं? फिर उसका जी चाहा थोड़ा बैठती हूं, शायद वो आ जाये. ऐसा सोचकर वह हरी घास पर बैठ गयी और एक किताब पढ़ने लगी. कुछ देर में रुद्र की आवाज आयी, आ गयीं आप? निहारिका का जी धक से कर गया. वह घबरा गयी. और खड़ी हो गयी.  अरे बैठिए... आप उठ क्यों गयीं. निहारिका-नहीं वो मैं...

रुद्र -क्या वो. हम दोस्त हैं इतनी हिचक क्यों? रुद्र ने माहौल को काफी हल्का और अपनेपन से परिपूर्ण बना दिया और निहारिका कब उस अपनेपन में समाती गयी उसे पता नहीं चला. अबतो यह रोज की बात थी. दोनों क्लास के बात मिलते. खूब बातें करते. रुद्र अपने सपनों के बारे में कहता और निहारिका अपने. दोनों एक दूसरे को सुझाव भी देते. रुद्र को विज्ञान के क्षेत्र में अपना नाम स्थापित करना था, तो निहारिका को प्रोफेसर बनकर घर की जिम्मेदारी उठानी थी. दोनों के स्वभाव में काफी समानता थी और जहां नहीं थी, कोई विवाद भी नहीं था. क्योंकि दोनों परिपक्व थे. एक दूसरे को समझते थे. पता नहीं कब दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ गये. एक दिन बात करते हुए दोनों काफी देर तक वहां बैठे रह गये. निहारिका ने कहा- मैं अब जाऊंगी रुद्र बहुत देर हो गयी है. रुद्र ने कहा-अच्छा जायेंगी, लेकिन मैं अभी कुछ सोच रहा था. निहारिका ने हंसकर पूछा क्या? मैं यह सोच रहा था कि तुम साड़ी पहनकर मेरे सामने आयी हो और मैंने तुम्हें बांहों में भरकर एक जोरदार चुंबन तुम्हारे होंठों पर जड़ दिया है.

निहारिका- रुद्र क्या कह रहे हैं आप? वह बिलकुल घबरा गयी. रुद्र ने आगे कहा-हम दोनों एक दूसरे में बिलकुल खो गये हैं और.... निहारिका -रुद्र जान लोगे क्या तुम मेरी. रुद्र उसके करीब आया और कहा अब हम इतने पास आ गये हैं कि आप का संबोधन जरूरी नहीं. क्या मैं यह दीवार हमदोनों के बीच से गिरा दूं. निहारिका को लगा जैसे उसके पूरे शरीर में सिहरन सी हो गयी है. उसकी सांसें तेज चल रही थी. उसने रुद्र की ओर देखा. रुद्र की नजरें उससे टकराई तो उसे लगा मानों कोई तीर छूटा उसकी नजरों से और धक से आकर उसे सीने में लगा हो. एक पल को लगा जैसे सांस रूक गयी.

पूरे शरीर में कंपकंपी सी हो गयी. उसके होंठ सूख रहे थे. तभी रुद्र ने उसे बांहों में ले लिया. अब तो निहारिका बेसुध सी हो गयी. उसने रुद्र से कहा, चुप हो जाओ. मर जाऊंगी मैं. रुद्र की पकड़ और मजबूत हुई और उसने निहारिका को चूम लिया. अब निहारिका खुद को रोक ना सकी और रुद्र की बांहों में सिमटती चली गयी. कब दोनों एक दूसरे के इतने पास आये कि कोई दूरी नहीं बची वे समझ नहीं पाये. अंधेरा घिर रहा था. तभी निहारिका के फोन की घंटी बजी. निहारिका घबराकर रुद्र के बांहों से निकली. मां का फोन था. उसने मां से बात की . तब तक रुद्र वहीं खड़ा था. फोन रखकर निहारिका ने कहा-बहुत देर हो गयी है, मैं जाती हूं. रुद्र ने कहा- जाओगी? निहारिका-हां जाना ही पड़ेगा. रुद्र-कल जल्दी आना देर मत करना. निहारिका को पता नहीं क्या हुआ, वह रुद्र के करीब आयी और उसके माथे पर एक चुंबन देकर बोली. आती हूं... रुद्र ने मुस्कुरा कर कहा जल्दी आना....

रुद्र के अहसास को याद करते ही निहारिका सिहर उठी. उसकी तंद्रा भंग हुई. फिर उसने खुद से वादा किया. मैं अपने सपनों को पूरा करूंगी अपने रुद्र के लिए. वह दिन कितना हसीन होगा, जब वे दोनों मिलेंगे अपने-अपने सपनों को पूरा करके. वो यूनिर्वसिटी प्रोफेसर और रुद्र उसे तो साइंटिस्ट बनना है.

आज पूरे पांच साल हो गये हैं. निहारिका और रुद्र को मिल हुए. दोनों ने अपने सपने पूरे और आज आया है मिलन का दिन. रुद्र ने निहारिका के लिए प्लेन का टिकट भेजा है. उसे बैंगलोर जाना है. दोनों ने यह तय किया था कि जब तक सपना पूरा नहीं होगा दोनों नहीं मिलेंगे. ऐसा कोई दिन नहीं गया जब दोनों ने बात नहीं की. दोनों ने प्रेम की बातें भी कीं, तड़पे भी, लेकिन वादा निभाया. रुद्र ने पूरे पांच साल बाद उसे मिलने बुलाया है और यह भी कहा है कि बहुत जरूरी बात करनी है, तो निहारिका को लगा जैसे मिलन की घड़ी आ गयी है.

छुट्टी लेकर निहारिका ने घर में यह कहा कि लेक्चर के लिए बाहर जाना है और बंगलौर के लिए चल पड़ी. बंगलौर ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा था उसकी धड़कन बढ़ रही थी. सांसें तेज और चेहरे पर खुशी की दमक. चूंकि रुद्र को ब्राइट कलर पसंद था इसलिए निहारिका ने खुद को वैसे ही संवारा था. उसके दुपट्टे का हरा रंग चारों ओर खुशियाली का प्रतीक मालूम हो रहा था. एयरपोर्ट पर जब रुद्र ने उसे बांहों में यह कहते हुए लिया कि आ गयी तुम मेरी जान-तो एक पल को उसे लगा जैसे उसकी सांस थम गयी. फिर लगा जो जुदाई उसे रेलवे प्लेटफॉर्म पर मिली थी, आज उसका अंत हो गया और उसकी आंखें भर गयी. रुद्र ने कहा- अब ये क्या है? आंसू पोंछते हुए निहारिका ने कहा-कुछ नहीं यूं ही.

रुद्र उसे लेकर अपने फ्लैट आया. उसका फ्लैट पांचवीं मंजिल पर था. वे दोनों लिफ्ट से ऊपर गये. रुद्र ने फ्लैट का दरवाजा खोला. बहुत ही सुंदर था फ्लैट. निहारिका ने खुश होकर कहा, बहुत सुंदर सजाया तुमने कमरा, यह बोलते हुए वह उसके बेडरूम तक चली गयी. एक आकर्षक कमरा बड़ा सा बेड उसने खुश होकर कहा-वाह. मैं तो खुश हो गयी. रुद्र ने उसे पकड़कर अपनी ओर खींच. एक पल को निहारिका का पूरा शरीर कांप गया, लेकिन उसने रुद्र को मना नहीं किया.

 उसने निहारिका के होंठों को धीरे से छूआ और कहा, कैसे रही इतने दिन मेरे बिना. निहारिका को लगा जैसे अब उसका प्रेम संपूर्ण हो जायेगा. उसने मुस्कुरा कर कहा, एक बार भी तुम्हें याद नहीं किया. ऐसा कहकर उसने रुद्र के शर्ट के एक बटन को खोल दिया. इसपर रुद्र ने कहा-एक से तो बात नहीं बनेगी और वह उसे बिस्तर तक ले आया. तड़प तो दोनों ही रहे थे, सो एक दूसरे का साथ उन्हें काफी सुकून दे रहा था. रुद्र निहारिका के साथ बहुत खुश था, तो वहीं निहारिका को अपने प्रेम की संपूर्णता पर गर्व था. निहारिका ने उसके सीने पर अपना सिर रख दिया और उसे जकड़ते हुए कहा-अब कहो, क्या जरूरी बात कहनी थी तुम्हें.
रुद्र -मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं. तुम मेरी शारीरिक मानसिक सुकून का स्रोत हो, तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकता. लेकिन मैं तुम्हें अपनी पत्नी नहीं बना सकता. मां-पापा चाहते हैं मैं उनकी पसंद से शादी करूं. मेरी सफलता मेरा पूरा जीवन उनकी देन है अब तुम बताओ मैं क्या करूं.

निहारिका की आंखें भर आयीं, लेकिन उसने अपने आंसुओं को थामा और रुद्र से पूछा-तुम मुझे प्यार करते हो ना? अभी हमारे बीच जो कुछ हुआ, वो क्यों हुआ? रुद्र-क्योंकि मैं तुम्हें अपनी पत्नी मानता हूं, तुम्हें प्यार करता हूं. तो फिर मुझे और किसी चीज की जरूरत नहीं. बस तुम एक वादा कर दो मुझसे. रुद्र- क्या?
तुम साल में एक बार मुझसे मिलने आओगे और तब सिर्फ हम-तुम होंगे और कोई नहीं. और किसी सार्वजनिक पहचान की जरूरत नहीं मुझे मैं तुम्हारे साथ ऐसे ही अपना जीवन बिता सकती हूं. तुम्हें जिससे शादी करनी हो, करो मुझे कोई आपत्ति नहीं. यह कहकर वह रुद्र से लिपट गयी और दोनों की आंखें भर आयीं. यह रुद्र-निहारिका का बेनाम रिश्ता था जो किसी सार्वजनिक पहचान का मोहताज नहीं था.
रजनीश आनंद
16-09-16

बुधवार, 14 सितंबर 2016

मैं ‘तुम’ होना चाहती हूं...

मैं ‘तुम’ होना चाहती हूं प्रिये,
किंतु स्वार्थवश नहीं, प्रेमवश
माना मैंने नादानी की, अब इतना ना रूठो
कभी आकर देख तो लो
कि
किस कदर तुम्हारा प्रेम मेरे
अस्तित्व पर आवृत है
कि
मैं क्यों तुम्हारी बांहों में
बेसुध होकर पड़ी रहना चाहती हूं
क्या करूं कि मेरा तनमन
पर काबू रहा नहीं
मेरे होंठ, नयन, मस्तक
कुछ भी तो मेरे नहीं
सब तुम्हारे हो चुके हैं
रोम-रोम खोया रहता है तुममें
कि
तुम्हारे स्पर्श के सागर में आप्लावित हैं सब
रिक्त हो गया है मेरा तनमन
जैसे उसे मेरा होने में सुख नहीं
वो तो तुममें, तुम्हारी बांहों में चरम सुख पाता है
हां मैंने नादानी की, पर इतना खिन्न ना हो
अच्छा चलो हो जाओ, क्योंकि कुछ देर की खिन्नता के बाद
जब तुम पास आकर मुझे बांहों में कस लेते हो
तो इतना सुख पाकर बरस उठते हैं मेरे नयन
उसकी वर्षा तो सावन की बूंदों से भी ज्यादा सुख देती है
तो मैं नादान करूंगी, क्योंकि यह प्रेमवश है, स्वार्थवश नहीं
रजनीश आनंद
14-09-16

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

हरसिंगार के फूल

अहले सुबह अलसाई सी मैं
ज्यों खोला घर का मुख्यद्वार
हवा के तेज झोंके ने चूमकर मुझे
कर दिया ऊर्जा से स्फूर्त
इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती
देखा आंगन में बिखरे हैं हरसिंगार के फूल
मानों नवब्याहता की सेज हो सजी
चहक कर मैंने उसकी डाल को कुछ और हिलाया
तो सज गयी मेरी मांग हरसिंगार से
ना जाने क्यों खुशी से चमक उठीं मेरी आंखें और
मैं बैठ गयी आंगन में जैसे मेरी ही वो सेज
उठाकर नजरें मैंने पूछा हरसिंगार से
तुम तो शिवशंकर पर ही सजते हो
आज क्यों सजा दिया मुझे?
मुस्कुरा कर कहा, उसने
जाओ देख तो आओ अपना मुखमंडल
जो लिखा है इसपर पढ़ सकता है उसे कोई भी
देख, अब तो काग भी दे रहा है संदेश
तू लाख छिपाये पर सबको पता है
आने वाला तेरा प्रिये...

रजनीश आनंद
13-09-16

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

एकांत में हम-तुम

जानते हो तुम क्यों
रात घिरते मैं सबकुछ छोड़
एकांत में आकर बैठ जाती हूं
नहीं ना? तो सुनो प्रिये
जब मैं अकेली होती हूं ना
तो मुझे भान होता है
जैसे साथ हो तुम
मैं अपने लंबे केश खोल
आइने में खुद को निहारती हूं
तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे
मेरे केश नहीं तुम हो
जिसने पास आकर जकड़ लिया हो मुझे
मैं सिमटती जाती हूं तुममें
पृथक अस्तित्व की चाह नहीं बचती
जी करता है खो जाऊं तुममें
सिर्फ मैं और तुम
लेकिन क्षणिक होते हैं ये पल
मैं चाहकर भी तुम्हें रोक नहीं पाती
और आइने से गायब होता जाता है तुम्हारा प्रतिबिंब
शेष रह जाता है तो एकांत और तुम्हारा मादक स्पर्श
रजनीश आनंद
05-09-16

शनिवार, 3 सितंबर 2016

तुम मेरे आराध्य

आज दूज की रात है
कहीं दिख जाये मेरा चांद
इस तसव्वुर में मैंने
आधी रात घर की छत पर बिता दिये
लेकिन जब नहीं दिखे तुम
तो सोचा आज हिज्र नहीं
भले ही सपनों में हो अभिसार
जब प्रेम को मिलेगी संपूर्णता
और मैं-तुम, हम होकर गढ़ेंगे
प्रेम के नये आयाम
जहां प्रेम होगा सर्वोपरि
और तुम मेरे आराध्य
रजनीश आनंद
03-09-16

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

आशुतोष जी संबंधों को पहले समझें फिर टिप्पणी करें

आम आदमी पार्टी के नेता और आईबीएन 7 के संपादक रहे आशुतोष जी ने आज एक ब्लॉग लिखा है, एनडीटीवी के लिए. जिसमें उन्होंने सीडी कांड में फंसे संदीप कुमार का बचाव किया है. आशुतोष ने लिखा है कि सेक्स हमारी दिनचर्या का हिस्सा है. इसपर बवाल नहीं मचना चाहिए. सही बात है.  लेकिन उन्होंने यह कहा है कि नेहरू का एडविना के साथ, गांधी का सरला चौधुरी के साथ, वाजपेयी का अपनी कॉलेज फ्रेंड और जार्ज का जया जेटली के साथ इसी तरह का रिश्ता था.

मुझे उनके इस बयान पर आपत्ति है. जिन संबंधों का उन्होंने जिक्र किया है उनके संबंधों की तुलना संदीप कुमार के संबंध से नहीं करनी चाहिए. यह संबंध प्रेम को परिभाषित करते थे. लेकिन संदीप कुमार के संबंध में सौदा था, टिकट के लिए शारीरिक संबंध बनाओ. यह तो वही बात हो गयी कि कोई आसाराम की तुलना श्रीकृष्ण से कर दे. जो लोग प्रेम को समझ नहीं सकते, उन्हें प्रेम पर बोलने का हक भी नहीं होना चाहिए. प्रेम सौदा नहीं है. मैं यह नहीं दावा करती कि इन संबंधों में शारीरिक संबंध नहीं बने होंगे, बने होंगे लेकिन इन संबंधों में आत्मीयता थी. ब्लॉग लिखने से पहले यह बात आशुतोष जी को समझनी चाहिए थी.

एक बात और कल से मीडिया में संदीप कुमार की खबर छाई हुई है मानो दुनिया में उससे बड़ी कोई खबर नहीं. यहां जनहित के इतने मुद्दे हैं लेकिन उनसे किसी को कोई लेना-देना नहीं . कौन किसके साथ सोता है यह बड़ी खबर है मीडिया के लिए. आज एक गर्भवती महिेला को देश में इलाज नहीं मिला और उसका बच्चा मर गया उसकी किसी को चिंता नहीं. ठीक है वह महिला एड्‌स पीड़ित थी लेकिन इसमें बच्चे का क्या दोष था. अब यह नेता जो सीडी प्रकरण में उलझे हैं उन्होंने अपनी कब्र खुद खोदी है, उन्होंने महिलाओं के साथ सीडी उन्हें ब्लैकमेल करने के लिए बनायी थी. उन्हें आशंका थी महिलाएं उनपर रेप का केस दर्ज कर सकती हैं. इस व्यक्ति ने अपने पद का दुरुपयोग किया इसमें कोई दो राय नहीं है, इस दृष्टकोण से उनकी निंदा की जानी चाहिए.

रजनीश आनंद
02-09-16