शनिवार, 6 जून 2020

स्त्री और स्मृति

तीक्ष्ण स्मृति की होती हैं स्त्रियाँ
वह कभी कुछ भूलती नहीं
नफरत, प्रेम सब सहेजती हैं
अपने केशों में छुपाती हैं प्रेम 
तो अश्रु में अपमान-दुत्कार
 केशों को सहलाना उसका शगल है
दरअसल वह दुलारती है हर प्रेम निवेदन को
वो याद करती है पहले प्रेमी का वो पहला चुंबन
जिससे दो गज की दूरी पर भी नहीं हुई कभी भेंट
किंतु उसकी गरमाहट मौजूद होती है 
उसके सबसे खास रिश्तों में
उसके हाथों की रोटियों की कोमलता में
स्त्री का प्रेम उसके जीवन की बाधा नहीं
उसके जीवन की सीख है, इसलिए स्त्री 
हमेशा करती है अपने प्रेम पर मान
और अपमान से सींचती है घर आंगन
ताकि लहलहाती रहे खुशियाँ... 

-रजनीश आनंद-