गुरुवार, 31 मार्च 2016

चुपके से आया ऋतुराज वसंत


गूगल से साभार
चुपके से आया ऋतुराज वसंत
कर  मन के तारों को झंकृत
गूंजा एक मधुर स्वर
आओ प्रिय, मोहे अंग लगा लो
ताकि निर्जीव हो चले
शरीर को मिल जाये सजीवता
बांहों का घेरा हो इतना मजबूत
जो जीवन के प्रति बढ़ा जाये
मेरी जिजीविषा
प्रेम को पाने की आतुरता
अमृत बन बरसो प्रिय
रोम-रोम पुलकित हो
अनगिनत नहीं मेरी चाहत
बस अंग लगा कह दो तुम
मैं तुम्हारी, तुम मेरे हो
बस बन मीरा सांवरे की
धन्य कर लूं अपना जीवन
आओ प्रिय, मोहे अंग लगा लो...
रजनीश आनंद
01-04-16

अद्‌भुत है मीरा का प्रेम

गूगल से साभार
मैंने इतिहास की जितनी महिला कैरेक्टर को पढ़ा है उनमें ‘द्रौपदी’ और ‘मीरा’ मुझे सर्वप्रिय हैं. आमतौर पर भारतीय महिलाओं को सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता है, उस लिहाज से द्रौपदी ने सीमा लांघी और अपने अपमान के लिए अपने पतियों को लताड़ा. उसकी यह पहल छोटी ही सही लेकिन प्रशंसनीय है, द्रौपदी से भी ज्यादा मैं मीरा से प्रभावित हूं. उनका जीवन, उनका प्रेम उनका समर्पण. बस जी वाह-वाह करने को चाहता है. मीरा को ना तो राधा का डर था ना रुक्मणी से ईर्ष्या. उसके गिरिधर तो बस उसके थे. जिसे आजीवन उन्होंने अपने सीने से लगाकर रखा.
प्रेम देखिए उनका, वो थी तो क्षत्राणी लेकिन प्रेम यदुवंशी कृष्ण से. मीरा का साहस देखिए, उन्होंने कृष्ण को पति रूप में स्वीकारा और इसके लिए उन्होंने उस विवाह को कभी नहीं स्वीकारा जो उनके वास्तविक जीवन में हुआ था. उन्होंने उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज से शादी तो की, लेकिन कृष्ण के प्रति उनके समर्पण में कोई कमी नहीं आयी. सबसे अद्‌भुत तो यह है कि मीरा को उनके प्रेम के बदले कुछ मिलने की गुंजाइश भी नहीं थी . यह बात दीगर है कि जिस कृष्ण से उसने नेह लगाया था वह किसी और का हो ही नहीं सकता था. मीरा का कृष्ण तो उसी तरह ढल्रा जैसा उसने चाहा. ऐसा अद्‌भुत था मीरा का प्रेम.
लेकिन इन दिनों हमारे समाज में प्रेम का जो वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है, क्या उसे प्रेम की संज्ञा देना उचित है. मैं तो इसे प्रेम नहीं कह सकती. यह कुछ भी हो सकता है, लेकिन प्रेम तो नहीं हो सकता. वर्ष 2011 में रांची के संत जेवियर कॉलेज में घुसकर एक युवक ने एक लड़की की हत्या कर दी, वह भी गला काटकर. लड़की का सिर उसके धड़ के पास पड़ा था. कुछ इसी तरह से कोलकाता के निकट बारासात में एक राष्ट्रीय स्तर की बॉलीवॉल खिलाड़ी को उसके तथाकथित प्रेमी ने हाल में सरेआम धारदार हथियार से गला रेतकर मार डाला. ऐसी कई खबरें सामने आती हैं, जहां लड़की ने अपने प्रेमी की हत्या करवा दी, क्योंकि वह शादी से इनकार कर रहा था, तो कहीं ऐसा थी सुना गया है कि लड़की ने शादी से इनकार किया, तो उसपर एसिड अटैक कर दिया गया.
यह प्रेम की आड़ में किया गया ऐसा अपराध है जिसकी माफी नहीं होनी चाहिए. ऐसे लोग क्या मीरा के प्रेम को समझकर उससे कुछ सीख पायेंगे? यह सवाल आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक है.

शनिवार, 26 मार्च 2016

प्रिय, जो तुम रूठ गये...

प्रिये, जो तुम रूठ गये
एक पल को लगा,पेड़ से टूट कर
 सूखे पत्ते की तरह, बिखर गयी मैं
गूगल से साभार
दिल चाहा, बिलख कर पूछूं
क्या अपराध है मेरा
क्यों तुम रूठ गये
जो तुम करोगे गैरों से व्यवहार
क्या जी पाऊंगी मैं
तभी मन के एक कोने से
आयी आवाज, कहा था तुमने
तुम मेरे, मैं तुम्हारी हूं
रूठना- मनाना, तो है
हमारे प्रेम का एक रंग
सो झट मैंंने स्वीकारा
बनना अपने कान्हा की बांसुरी
जो बनूंगी मैं बांसुरी, मिलता रहेगा
कान्हा के अधरों का स्पर्शसुख
और रंग भरेंगे हमारे रिश्तों में
ज्योंही मैं बनी तुम्हारी बांसुरी
खिल गयी मेरे कनु के होंठों पर खुशी
कहा, जान हो तुम मेरी
भला हो सकता हूं
नाराज तुमसे कभी
यूं ही छेड़ कर तुम्हें
देखना चाहता था
अपने प्रेम की गहराई
प्रिय, जो तुम रूठ गये...
रजनीश आनंद
26-03-16



मंगलवार, 22 मार्च 2016

आओ प्रिये मैं तुम्हें रंग ला दूं

गूगल से साभार
आओ प्रिये मैं तुम्हें रंग ला दूं
अबकि होली को यादगार बना दूं
लाल, हरा, पीला या नीला
किस रंग से रंग दूं मैं तुम्हें
चाहत है मेरी रंग ऐसा हो
जिसे देख भान हो मुझे
तुम मेरे कनु,
मैं तुम्हारी प्रिया
अरमान तो है कि
रंग दूं तुम्हें मैं अपने रंग में
लेकिन डरती भी हूं कि
कहीं मैं खुद ही न
रंग जाऊं तुम्हारे रंग में.
जानती हूं, मैं अबकि होली
जब आओगे पास तुम मेरे
सारे रंग हो जायेंगे फीके
बस दिखेगा एक रंग
जिसके पीछे होकर दीवानी
मैं बन गयी तुम्हारी मीरा
और लब खुद ही बोल पड़े
मैं उस कनु की
जिसकी है सांवली सलोनी सूरत.
आओ प्रिये मैं तुम्हें रंग ला दूं
अबकि होली को यादगार बना दूं
रजनीश आनंद
22-03-16

शनिवार, 19 मार्च 2016

ना जानें क्यों आज...

गूगल से साभार
ना जानें क्यों आज
मुझ से मेरा मन
पूछ रहा है, यह सवाल
कौन हो तुम मेरे?
क्यों तुम्हारा नाम सुन
खिल जाती हूं मैं
भर जाते हैं रंग जीवन में
महसूस होता है
खुशनसीब हूं मैं,
चाह होती है थामकर
हाथ तुम्हारा चलूं मैं
जीवनपथ पर
ताकि
कभी जो हो सामना
दुखों से तुम
चूम कर मस्तक मेरा
कहो,
प्रिये मैं हूं
जब आये जीवन में कोई तूफान
तुम थामकर मुझे
निकाल लाओ उस बवंडर से
जीवनपथ पर सांध्यबेला में
तुम थकान मिटाओ
मेरी, मैं तुम्हारी
कोई शिकायत ना हो
जीवन से बस हो
इतनी सी गुजारिश
जब बंद हो
धड़कना दिल मेरा
तुम थामे रहना
हाथ मेरा
चूम कर मुझे
बस इतना कहना
अलविदा प्रिये, अलविदा प्रिये
रजनीश आनंद
19-03-16

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

कैसा होगा वह पल प्रिये...


गूगल से साभार
कैसा होगा वह पल प्रिये
जब मिलेंगे हम तुम
सांसें थम जायेंगी
या बढ़ जायेंगी धड़कनें
अनिमेष मेरी नजरें
निहारेंगी तुम्हें
समय ठहर जायेगा
और खिल उठेंगे फूल
चांदनी मदमस्त होगी
और ऋतुराज मेहरबान
ना रहेगी सुध-बुध
ना कोई ख्वाहिश
बस थाम लो हाथ
मेरा यही है प्रेम निवेदन
आरजू बस इतनी सी है
जब करूं जग को विदा
तुम आना प्रिये बन
हवा का मधुर झोंका
कैसा होगा वह पल प्रिये
जब मिलेंगे हम-तुम, जब मिलेंगे हम-तुम..
रजनीश आनंद
11-03-16

शनिवार, 5 मार्च 2016

सच कहती हूं प्रिये...

गूगल से साभार
सच कहती हूं प्रिये
जो मैं जानती
प्रेम इतना तड़पायेगा
कभी प्रेम ना करती
जब जागा था, प्रेम मन में
सिहरन सी हुई थी तन में
बिना स्पर्श के ही
तन-मन भींगा गये थे तुम
भान हुआ था
तुम गिरिधर मेरे और मैं राधा
लेकिन
गिरिधर ने तो
सदा राधा का मान रखा
कभी अपमानित ना होने दिया
फिर क्यों मेरा गिरिधर
मुख मोड़ गया
आंखों में अब आंसू शेष नहीं
ना शेष है प्रेम
ना प्रेम की सिहरन
ना स्पर्श का रोमांच
शेष है तो बस
प्रेम का भ्रम
जो कहता है
अगर जानती मैं प्रिये
प्रेम इतना तड़पायेगा
कभी प्रेम ना करती
कभी प्रेम ना करती...
रजनीश आनंद
05-03-16

गुरुवार, 3 मार्च 2016

रितिका की खुशी

गूगल से साभार
आज पूरे एक महीने हो गये जैक को गये हुए. ऐसा एक दिन भी नहीं गया, जब उसने रितिका से बात ना की हो और उसका हाल ना जाना हो. ख्याल तो वह रितिका का इस कदर रखता था कि कभी-कभी रितिका को खुद पर गुमान भी हो जाता. उसे लगता क्या वो इतनी खास है, कई बार उसने खुद को आइने में निहार कर भी देखा, अपने इस कृत्य पर वह शरमा भी जाती.

जैक के अपनेपन ने उसके रोम-रोम को आनंदित कर दिया था. अमन ने उसके जीवन में जो रिक्तता उत्पन्न कर दी थी, उसे जैक ने ना सिर्फ भर दिया, बल्कि उसे यह भी महसूस कराया कि प्यार क्या होता है. जीवनसाथी किसे कहते हैं, कोई किस हद तक जाकर किसी को चाह सकता है. जैक ने रितिका को प्यार से इस कदर सराबोर कर दिया था कि उसे महसूस ही नहीं होता था कि वह उससे इतनी दूर है. रितिका ने क्या खाया और वह कब सोई से लेकर उसके बेटे को किस चीज की जरूरत है, हर बात का ध्यान वह रखता. जब जैक रितिका से उसके बेटे की जरूरतों के बारे में पूछता, तो उसे ऐसा लगता जैसे उसके बेटे में जैक का ही अंश हो, तभी तो वह उसकी इस कदर चिंता करता था.

इतनी चिंता तो कभी अमन ने उसके लिए नहीं दिखाई, जबकि वह उसका पिता था. जैक के प्यार में खोई रितिका अपने कमरे में आंखें बंद किये बैठी थी, तभी उसे किसी ने अपने आगोश में ले लिया. एक क्षण को तो उसे लगा, जैसे जैक आ गया, लेकिन अगले ही पल वह घबरा गयी. उसने आंखें खोली. सामने अमन खड़ा था. रितिका ने खुद को उससे अलग किया और कहा, तुम यहां कैसे? अमन ने रोमांटिक अंदाज में कहा, बस तुमसे मिलने की इच्छा हुई, तो चला आया. रितिका-क्यों इतने दिनों तक तुम्हें मुझसे मिलने की इच्छा नहीं हुई थी. अब बहुत याद आयी है मेरी. अमन-अरे क्या बताऊं, इच्छा तो बहुत हुई थी, लेकिन मजबूरी थी. मैं आज भी तुमसे बहुत प्यार करता हूं. यह कहकर अमन ने रितिका को अपनी बांहों में लेने की कोशिश की.

अमन की यह कोशिश रितिका को भायी नहीं, उसने खुद को उसकी पकड़ से दूर करने की कोशिश की. रितिका-हटो मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. लेकिन मुझे तो लगता है, अमन ने उसके करीब आकर कहा. रितिका -बेटा सामने खड़ा है, उसका ही लिहाज कर लो. अब बहुत छोटा नहीं रहा वो, सब समझता है. रितिका की इस बात पर अमन नाराज हो गया. उसने कहा, जब भी मैं पास आने की कोशिश करता हूं, तुम दूर जाना चाहती हूं. पहले हमेशा यही शिकायत रहती थी कि मैं तुम्हें समय नहीं देता, अब बताओ. तुम क्या कर रही हो.

अमन की यह बात रितिका को चुभ गयी. उसने पलटकर जवाब दिया. अच्छा, जब तुम्हारी इच्छा हो, पास आ जाओ और जब इच्छा ना हो, कोई मतलब नहीं. मैं इतने साल तुम्हारे आगे मिन्नतें करतीं रही, तब कहां थे तुम. अब इन चीजों में मेरी कोई रुचि नहीं. मैंने अपनी सारी इच्छाएं मार ली.

रितिका की बात सुन अमन उसके करीब आया, उसने प्यार से उसका हाथ थामा और कहा, देखो समय है. मैं मजबूर था. आज अगर हमारे पास एक-दूसरे के लिए समय है, तो क्यों ना उन पलों को जी लिया जाये. समय खराब करने से क्या फायदा.

अमन की यह बात रितिका को चुभ गयी, उसने बिफर कर कहा, आज तुम्हें समय की बहुत चिंता हो रही है. उस वक्त नहीं हुई थी, जब मैं तुम्हारे लिए तड़पती रहती थी, तब कहां थे तुम. आज जिस आग को शांत करने के लिए तुम मेरे पास आये हो, क्या उस आग में कभी मैं नहीं चली. क्या मेरी कुछ इच्छाएं नहीं थीं. लेकिन तुमने मेरी कोई चिंता नहीं की. आज क्यों तुम्हें मेरी इतनी फिक्र हो रही है? रितिका से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी, अमन को , उसने तेवर में पूछा, क्या तुम्हें मेरी जरूरत नहीं या कोई और आ गया है, तुम्हारे जीवन में. रितिका-हां कोई और ही आ गया है, जो मुझसे प्यार करता है, तुम्हारी तरह नहीं है.

रितिका के जवाब पर अमन ने खींचकर उसे एक तमाचा रसीद दिया. अपने मां-बाप को इस तरह लड़ता देख रितिका का बेटा भागकर दूसरे कमरे में गया और घर के लोगों को बुला लाया. कमरे में आकर रितिका की मां ने दोनों से कहा, कुछ और नहीं कर सकते, तो कम से कम बच्चे का ही ख्याल करो. तुम दोनों ने अपनी मरजी से शादी की थी, हमने नहीं रोका. अमन तुम हमारी बेटी को छोड़ गये तब भी इसने कुछ करने नहीं दिया. तो अब क्यों झगड़ रहे हो, यह जिंदगी तुम्हारी चुनी हुई है. कुछ तो अपने अंश का ख्याल करो. इतना कहकर रितिका की मां कमरे से चली गयी.

बेटे को खेलने के लिए बाहर भेजकर अमन ने रितिका से सुलह करने की कोशिश की. वह रितिका के करीब आया और प्यार से समझाने की कोशिश की. लेकिन रितिका उसके इरादों को जानती थी, वह जानती थी कि वह क्यों उसके पास आना चाहता है. इसलिए उसने उससे साफ कहा, मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता, तुम मुझे परेशान मत करो. जब रितिका ने अमन को अपने करीब नहीं आने दिया, तो वह नाराज होकर यह कहते हुए चला गया कि तुम्हारे नखरे बहुत बढ़ गये हैं.

आज अमन के जाने पर रितिका रोई तो जरूर, लेकिन इसलिए नहीं कि अमन चला गया, बल्कि वह खुश होकर रोई. उसे इस बात का डर था कि अमन उसके साथ जबरदस्ती कर सकता है. लेकिन उसने अमन को ऐसा करने नहीं दिया. वह इस बात से खुश थी. उसने जैक के प्यार को बचा लिया था. उसके स्पर्श को मिटने नहीं दिया था. यह उसके लिए बहुत बड़ी खुशी थी....

रजनीश आनंद
03-03-2016