शनिवार, 30 अप्रैल 2016

क्या सच में नाराज हो प्रिये?

क्या सच में नाराज हो प्रिये?
मैं तो यूं ही कर थी ठिठोली तुमसे
ऐसे जो तुम रूठोगे, कैसे जी पाऊंगी मैं
माना मुझसे गलती हुई,  बाधा बनी मैं तुम्हारे कर्तव्यपथ में
लेकिन मंशा कहीं से भी नहीं थी तुम्हारा जी जलाने की
जो अग्रसर होगे तुम कर्तव्यपथ पर
हर्षित होगा मेरा तन-मन
नाराज हो गर तुम मुझसे, तो भी ये मेरा सौभाग्य
क्योंकि अपनों पर ही तो कोई हो ता है नाराज
कम से कम इतना तो हक तो है मुझे
कि तुम्हारी नाराजगी को ही समेट सकूं अपने आंचल में
लेकिन प्रिये ऐसा ना हो कि तुम बोलना ही बंद कर देना मुझसे
यह सह नहीं पाऊंगी मैं, चाहो, तो बोल लो कुछ भी मुझको
नहीं देना ऐसी सजा कि जीकर भी जी ना पाऊं मैं
बस इतना ही कह सकती हूं प्रिये
जो कुछ कहा वह मेरी नादानी थी
चाहती सिर्फ तुम्हारा प्रेम थी, कुछ भी करो
लेकिन मेरे प्रेम पर ना करना कभी संदेह
मर जाऊंगी मैं... मैं जाऊंगी मैं.
रजनीश आनंद
30-04-16

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

तुम इतने अच्छे क्यों हो प्रिये?

तुम इतने अच्छे क्यों हो प्रिये?
यह सवाल मेरे मन में हमेशा उठता है
ज्यों-ज्यों मैं तुम्हारी ओर खिंचती जाती हूं
और मनोहर होता जाता है तुम्हारा स्वरूप
जो तुम कहते हो, सच लगता है मुझे
जिसे देखो वो अनुपम
जिसे छू दो वह अमृततुल्य
तसवीर गूगल से साभार
लोग कहते हैं प्रेम इंसान की समझ को छोटा कर देता है
इसलिए मुझे नहीं दिखते तुम्हारे अवगुण
कोई यह भी कहता है, निर्मोही हो तुम
छोड़ जाओगे एक दिन रोता मुझे
लेकिन मैं इन सब से कहना चाहती हूं
तुम्हें दिखती होंगी लाख बुराइयां मेरे प्रिये में
लेकिन मुझे तो एक भी नहीं दिखतीं
आओ मेरी नजरों से देखो उसे
वह तुम्हें भी सोने जैसा खरा दिखेगा
मेरे मन में उसकी जो छवि है, वह मेरा भ्रम नहीं
मेरा विश्वास है, मैं जानती हूं मेरा प्रिये है अनमोल
उसके प्रेम में इतना रस है
जो उसे बनाता है मेरे लिए खास, सबसे खास...
जैसे मीरा को नहीं देखी अपने गिरिधर में कोई खामी
वैसे मुझे भी नहीं दिखता अपने सांवरे में कोई अवगुण
मेरे लिए तो वो है सर्वोत्तम, चाहे किसी के लिए हो ना हो.
रजनीश आनंद
29-04-16

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

आज प्रिये ने पूछा एक सवाल?

तसवीर गूगल से साभार
आज प्रिये ने पूछा एक सवाल
क्या बारिश पसंद है तुम्हें?
एक पल सकुचाई, समझ नहीं पायी,क्या दूं उत्तर
फिर मैंने कह दिया
किसे ना होगी बारिश पसंद
जिस बारिश के आने पर
नाच उठता है जंगल में मोर
अपने सुंदर पंख फैला मोर करता है मोरनी से प्रेम निवेदन
जो बारिश तपती धरती को तृप्त करती है
काले मेघ बन धरती के प्रियतम
देते हैं उसे सच्चा सुख
जिससे उर्वर हो धरा खिल उठती है
और अनुपम हो जाता है उसका सौंदर्य
चारों ओर हरियाली ही हरियाली
ऐसी बारिश किसे होगी नापसंद
मैं भी तो धरती की तरह
अपने प्रिये के लिए विरह आग में जलती हूं
कब मिलेगा मुझे प्रिये का प्रेम
ताकि धरती की तरह हो जाये मेरा भी सौंदर्य अनुपम
आज प्रिये तुमसे है मेरा एक सवाल
कब बन काले मेघ तुम बरसोगे, कब बरसोगे?
रजनीश आनंद
28-04-16

रविवार, 24 अप्रैल 2016

प्रिये क्या आज नहीं बोलोगे?

तसवीर गूगल से साभार
प्रिये क्या आज तुमने
ना बोलने की कसम खाई है
कब से मैं तुम्हारे सामने प्रेम निवेदन कर रही हूं
मीठी बातें कर रही  हूं लेकिन तुम चुप हो
आज तो सोचा था तुम्हारा सिर अपनी गोद में
रखकर तुम्हारे बालों को सहलाते हुए तुम संग बातें करूंगी
जब बढ़ेगी प्रेम की अधीरता तो समा जाऊंगी बाहों में तुम्हारे
ताकि एक हो जायें हम
लेकिन ना जाने क्यों आज तुमने ना बोलने की कसम खाई है
शायद तड़पाना चाहते हो मुझे
लेना चाहते हो मेरे धैर्य की परीक्षा
लेकिन जानते हो प्रिये
अधीर नहीं है मेरा प्रेम
तुम जीवन भर ना भी बोलो
तो भी कम ना होगा मेरा प्रेम
जब मीरा ने आजीवन किया एक बुत से प्रेम
तो क्या मैं नहीं कर सकती एक जीते जागते इंसान से प्रेम
बोलो ना प्रिये, एक बार तो बोल दो.
रजनीश आनंद
24-04-16

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

किताब, मैं और प्रिये

हे भगवान, आज मुझे अपने सजीव होने पर दुख होता है
तुम तो कहते हो, मनुष्य योनि उत्कृष्ट है,फिर ऐसा कैसे हुआ?
मैं तुमसे जानना चाहती हूं, मुझसे अच्छी तो उस किताब की किस्मत कैसे?
जो हमेशा प्रिये के हाथों में होती है, उसके पन्नों को उलटते-पलटते
हमेशा उसे मेरे प्रिये का स्पर्श सुख नसीब होता है
वह हर वक्त उसे निहारता है
उसे सीने से लगाकर सो भी जाता है वो
उसपर भी उसका जी नहीं भरता, तो
जब वह साथ नहीं होती, तो उसकी चर्चाएं करता है
और मुझे देखो तुम, हमेशा प्रिये के साथ के लिए तरसती हूं
जब मैं कहती हूं ...क्या सुंदर नहीं मैं?
तो वो कहता है, तुम मुझे पसंद हो, अच्छी लगती हो
समझदार हो, इसलिए सुंदर भी लगती हो
फिर क्यों जब मैं पास जाना चाहती हूं, तो
वो कहता है अभी किताब है मेरे पास
हे भगवान, इंसान से अच्छी तो मैं किताब होती
हे प्रभु तुम्हारी माया क्या मुझे किताब बना सकती है?
लेकिन, भगवान इसमें उस बेचारी किताब का क्या दोष
मैं तो बेमतलब ही उसे भला-बुरा सुना रही हूं
ए किताब आ लग जा गले से मेरे
तू पहला प्यार है मेरे प्रियतम की
जब मिलेंगे तेरे मेरे अंग, तो शायद
तेरी खुशबू कुछ समा जाये, मेरे शरीर में
और इसी बहाने शायद मुझे मिल जाये मेरे प्रिये का साथ
और कुछ पल उसके वक्ष में मुंह छुपाकर, प्रेमरस में डूबकर बेसुध हो जाऊं मैं.

रजनीश आनंद
21-04-16

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

ए सुनो ना प्रिये, जानते हो जब तुम्हारी आंखों में ...

तसवीर गूगल से साभार
ए सुनो ना प्रिये, जानते हो जब तुम्हारी आंखों में देखती हूं ना मैं
तो लजा कर कई बार ढंक लेती हूं अपना चेहरा हथेलियों के बीच
लगता है जैसे बस अभी तुम बाहों में भरकर चूम लोगे मुझे
और मैं घबरा कर भाग जाती हूं, लेकिन जब तुमसे दूर जाती हूं ना
तो तुम्हारा प्रेम बन कान्हा की बंसी मुझे अपनी ओर खिंचता है
कहता है क्यों चली आयी थी मैं तुम्हारी बांहों से निकल कर
क्यों नहीं मैंने जी लिया उन पलों को, जब तुम थे मेरे साथ
लाज तो बस विघ्न बन गया है मेरे और तुम्हारे मिलन के बीच
सोचती हूं क्यों मैंने चाहा था, स्याह अंधेरों के बीच तुमसे मिलना
क्यों तुम्हारी आंखों से घबरा गयी मैं, जबकि वही तो मुझे दिलाता है
तुम्हारे और मेरे प्रेम की पूर्णता का अहसास
काश कि मैं तुम्हारी आंखों में खो जाती और
जी लेती उन पलों को, जब तुम मुझे कराते मेरी संपूर्णता का अहसास
और थक कर सो जाती मैं तुम्हारी मजबूत बांहों के बीच बेसुध
और जब तुम मुझे जगाते और करते मुझसे प्रेम निवेदन
तो तुम्हारी आंखें मुझे बहुत भाती
सच कहती हूं तब मुझे मेरी दुनिया मिल जाती
ए सुनो ना प्रिये, जानते हो जब तुम्हारी ...
रजनीश आनंद
18-04-16

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

जानते हो प्रिये...


तसवीर गूगल से साभार
जानते हो प्रिये, आजकल
अकेलापन नहीं सालता मुझे
सुबह से शाम तक उलझी रहती हूं
तुम्हारी यादों की लताओं में
कभी खुद से बोलती हूं
तो कभी हंस पड़ती हूं
कभी महसूस होता है
जैसे कस लिया है तुमने
बांहों के मजबूत घेरे में
तो कभी तुम्हारी नजरें
भेद जाती हैं तन-मन
जानती हूं, मैं कि तुम
नहीं हो पास मेरे,फिर भी
 ना जानें क्यों तुम्हारे होने का
एहसास हर पल है साथ मेरे
तुम्हारे होने की अनुभूति ही
जब दे जाती है, इतना सुख
तो कैसा होगा मिलन का मंजर
जानते हो प्रिये,
अब दुख नहीं है, गर ना हो
हमारा मिलन, क्योंकि मैं
बन चुकी हूं तुम्हारी मीरा
जिसे जीवनपर्यंत रहेगा
अपने कान्हा का इंतजार
जानते हो प्रिये....

रजनीश आनंद
11-04-16

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

...कौन हूं मैं ?

तसवीर गूगल से साभार
अपने डेढ़ साल के बच्चे को सीने से चिपकाए रितिका थर-थर कांप रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. उसके सामने अमन बेसुध पड़ा था. जब बेहोशी की हालत में रितिका और उसके घर वाले अमन को लेकर पास के अस्पताल आये थे, तो डॉक्टर ने बताया था कि जॉडिंस काफी बढ़ गया है, लेकिन कुछ ही देर में अमन बेहोश हो गया, फिर तो डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिये थे. उसे शहर के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल के लिए रेफर कर दिया था. जल्दी में स्ट्रेचर पर अमन को लिटाने के लिए जब चादर नहीं मिला तो रितिका से उसका दुपट्टा मांगा गया, दुपट्टे को देते वक्त रितिका कांप उठी थी, उसे लगा जैसे सबकुछ खत्म हो रहा है. रात के 12 बजे उसने अपने बेटे को मां के हाथ में सौंपा और अमन के साथ एंबुलेंस में बैठ गयी. साथ में उसकी बहन भी थी. डॉक्टर ने कहा था, पेसेंट कोमा में जा रहा है, स्थिति के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है. अॅाक्सीजन मास्क अमन के चेहरे पर लगा था. वह बार-बार जम्हाई ले रहा था. लेकिन बेसुध. 

डाक्टर कहते हैं जब शरीर में आक्सीजन घटता है,तो बार-बार जम्हाई आती है. अस्पताल शहर से दूर था, सड़कें सूनी और भयावह लग रही थी. केवल एंबुलेस के सायरन की आवाज और अमन की आती-जाती सांस. रितिका एकटक अमन को देख रही थी. जिंदगी के हाथ से छूटने का अहसास उसे हो रहा था. अस्पताल की गेट देख रितिका को आस बंधी, एंबुलेंस देख अस्पताल के कर्मचारी दौड़े अफरा-तफरी में इमरजेंसी वार्ड में अमन को ले जाया गया. रितिका अपने घरवालों के साथ बाहर बैठी थी. अमन को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था. उसका भाई अस्पताल के काम निपटा रहा था. रात कब बीती किसी को पता नहीं चला. सुबह जब डॉक्टर आये, तो उन्होंने बताया स्थिति बहुत खराब है अभी कुछ भी बताना मुश्किल है.

इंसान के वश में जब कुछ नहीं होता, तो वह भगवान के भरोसे हो जाता है. रितिका की स्थिति कुछ ऐसी ही थी. अमन के घरवालों में से कोई भी अस्पताल नहीं आया था. रितिका को डॉक्टर ने कहा कि खून की जरूरत होगी, इसलिए कोई आकर खून दे दें. वह खून देने के लिए चली गयी, उसके शरीर से एक यूनिट ब्लड निकाला गया. वह खून देकर अपने एक हाथ से दूसरे हाथ के नस को रूई से दबाते निकली तो उसने देखा एक आदमी और औरत उसके भाई को कुछ समझाने का प्रयास कर रहे हैं. अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त रितिका भागते हुए वहां पहुंची और जानने का प्रयास किया कि मामला क्या है. कौन हैं वे दोनों? उनकी बातों से रितिका को यह महसूस हुआ कि वे दोनों अमन की पहली पत्नी के रिश्तेदार हैं. भाई को ज्यादा कुछ पता न चले यह सोच रितिका ने उन दोनों लोगों को अपने साथ कर लिया और भाई से कहा, तुम देखो कुछ अस्पताल के बिल के बारे में.   

भाई के वहां से जाने के बाद रितिका ने उन दोनों पर ध्यान दिया. ग्रामीण परिवेश के थे दोनों. स्थूलकाय आदमी और दुबली-पतली सी महिला. रितिका ने पूछा आपलोग कौन हैं. आदमी ने कहा मैं साला हूं इसका. रितिका ने कहा, अच्छा. लेकिन रितिका अमन की पहली पत्नी के भाई को जानती थी, इसलिए उनके बारे में विस्तार से जानने के लिए उसने पूछा आपलोग कहां से आये हैं? उसे लगा कि वह अमन की पहली पत्नी के घर का जिक्र करेंगे, लेकिन उस स्थूलकाय आदमी ने कहीं और का जिक्र किया. रितिका की जिज्ञासा कुछ और बढ़ी, उसने पूछा मैं समझ नहीं पायी आप लोग कौन हैं और कहां से आये हैं. रितिका के सवाल पर उस आदमी ने आईसीयू की तरफ इशारा करते हुए कहा, अंदर जो एडमिट है ना वो मेरी बहन का पति है. रितिका भक्‌ रह गयी... उसने कांपती आवाज में पूछा, आपकी बहन का नाम क्या है, उस आदमी ने जवाब दिया-प्रमिला. रितिका के पांव तले जमीन खिसक गयी. वह कुछ कह पाती इससे पहले उस आदमी ने उससे पूछा-आप कौन हैं? रितिका के कानों में यह सवाल गूंज उठा. लेकिन वह क्या जवाब देती... कौन है वह? उन दोनों को वहीं छोड़ इस सवाल के साथ वह अस्पताल की सीढ़ियां उतरने लगी. उसे लगा जैसे किसी ने उसके शरीर का सारा रक्त निचोड़ लिया हो. उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था. कौन हूं मैं? उसने खुद से यह सवाल किया? क्यों रात से यहां पागलों की तरह खड़ी हूं? तभी सामने से उसका भाई आया और कहा, रितिका अस्पताल वाले पैसा जमा करने को कह रहे हैं एटीएम है तुम्हारे पास.

रितिका को समझ नहीं आया कि वह क्या करे. क्या वह अमन को मरणासन्न छोड़ सकती है. नहीं-नहीं. उस आदमी ने चाहे जो भी कहा हो, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती. इंसानियत भी कोई चीज होती है और अमन, उससे तो मैंने प्यार किया है. उसे कैसे ऐसे छोड़ दूं. रितिका के भाई ने उसे जोर से हिलाया, कुछ बोलती क्यों नहीं एटीएम है तुम्हारे पास? हां, रितिका को लगा जैसे किसी ने उसके मुंह पर जोर से पानी मारा हो और वह  होश में आ गयी हो. उसने बैग से एटीएम निकाल कर भाई को दे दिया.

उसे लगा अगर मैं अभी भाई को यह बता दूं कि उस स्थूलकाय आदमी ने मुझसे क्या कहा है , तो वह अभी मुझे यहां से लेकर चला जायेगा. रितिका ने एक बार फिर अपने दुख को दबा लिया. उसे जाहिर नहीं होने दिया. वह सीढ़ी से नीचे उतरकर अस्पताल के खाली पड़े बेंच पर बैठ गयी. तभी उसके भाई ने उससे कैंटीन चलने की जिद की. रितिका ने कुछ खाया पीया नहीं था. कैंटीन में रितिका ने रोटी का पहला निवाला तोड़ा ही था कि उसका फोन बज उठा. उसने फोन उठाया. अस्पताल से फोन था, उधर से कहा गया अविलंब डॉक्टर से मिलें. रितिका ने खाना छोड़ दिया. वह भाई के साथ अस्पताल के अंदर भागी. डॉक्टर के पास पहुंचने पर उसने कहा, पेसेंट की स्थिति बहुत खराब है. दोनों किडनी काम नहीं कर रहा है. अभी तुरंत डायलिसिस शुरू करना होगा, वरना पेसेंट सरवाइव नहीं कर पायेगा. इंफेक्शन काफी बढ़ गया है. रितिका इतनी नासमझ ना थी कि डायलिसिस की स्थिति को ना समझ पाये. उसने डॉक्टर से पूछा, क्या कोई और उम्मीद नहीं है? डॉक्टर ने ना में सिर हिला दिया और एक कागज उसकी तरफ बढ़ा दिया. जल्दी सोचिए और इसपर साइन करके दे दीजिए, डॉक्टर ने कहा. कागज को हाथ में लेकर रितिका डॉक्टर के कमरे से बाहर आ गयी. उसके परिवार वाले इंतजार कर रहे थे, क्या कहा डॉक्टर ने भाई ने पूछा. रितिका ने बताया‘डायलिसिस करने को कह रहे हैं. क्या करूं? भाई ने कहा, उसके घर फोन करो और सब बता दो. रितिका ने अमन की मां को फोन किया. फोन किसी महिला ने उठाया और अपना परिचय उसकी पत्नी के रूप में दिया. लेकिन रितिका ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और कहा, मां को फोन दो. रितिका ने अमन की मां को सारी स्थिति बतायी. लेकिन उसकी मां उससे बात नहीं करना चाह रहीं थी और इतना ही कहा, उतने अस्पताल में क्यों लेकर गयी और उन्होंने फोन काट दिया.

अब रितिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, वह सोच रही थी कितने डायलिसिस होंगे. उसके बाद क्या होगा. तभी उसका बेटा आकर उससे लिपट गया. उसने एक नजर बेटे को देखा. सोचा कैसी है इसकी कीमत बस इतने ही दिन के लिए इसकी किस्मत में पिता था. उसकी आंखें भर आयीं, उसने उसे गोद में उठाकर कलेजे से लगा लिया. उसकी रुलाई फूट पड़ी. फिर अचानक बेटे को गोद से उतरा और डॉक्टर के कमरे में गयी. उसने कागज पर लिख कर दे दिया कि डायलिसिस शुरू किया जाये. डॉक्टर ने उसके हाथ से कागज लिया और आगे की प्रक्रिया में जुट गये. लेकिन अमन जिसे उस वक्त तक थोड़ा होश आ गया था, उसने डायलिसिस कराने से मना कर दिया. वह डॉक्टरों से झगड़ने लगा, जिसके कारण डॉक्टर डायलिसिस की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाये. वह सिर्फ यही कह रहा था कि मैं डायलिसिस नहीं कराऊंगा.

अमन की जिद के बाद रितिका के भाई ने डॉक्टर से पूछा-आगे क्या किया जा सकता है. डॉक्टर ने कहा कुछ दिन अस्पताल में रहने दीजिए हम दवाई का प्रयोग करते हैं. उसके बाद आप घर ले जा सकते हैं. डॉक्टरों के इस रवैये से रितिका हैरान थी, लेकिन इंसान मजबूर हो जाता है. वह कुछ कर नहीं सकता. कुछ दिनों के इलाज के बाद अमन कुछ ठीक हो गया और घर जाने की जिद करने लगा. रितिका ने उसके डिस्चार्ज तक खूब दौड़-भाग की. पूरे दिन प्रयास करती रही कि उसे कोई कष्ट ना हो. अस्पताल से बाहर जाने के लिए जब अमन अपने पैरों पर खड़ा हुआ, तो खुशी से उसके आंसू निकल गये. व्हील चेयर लेकर आने वाले व्यक्ति ने कहा, याद है बेटी किस हालत में लेकर आयी थी इसे, अब खुश होकर जाओ, रो क्यों रही हो. उस आदमी की बातें रितिका के दिल को छू गयी. 

वह अमन के साथ अस्पताल के बाहर तक तो आयी, लेकिन वह जानती थी कि अमन उसे साथ चलने की अनुमति नहीं देगा. उसने कार में अमन को बिठाया, तभी उसे साथ लेकर जाने के लिए वह दोनों आ गये, जिसने रितिका के दिमाग में हलचल मचा दी थी. रितिका ने देखा वह स्थूलकाय व्यक्ति अमन की एक ओर और उसकी पत्नी उसके दूसरी ओर बैठ गये. रितिका के लिए तो कोई जगह नहीं थी. रितिका ने अमन का हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन उस औरत ने उसका हाथ झटक दिया. अमन ने उससे सिर्फ इतना ही कहा, बाद में बात करता हूं तुमसे और ड्राइवर ने कार चला दी. रितिका बेचैन हो गयी, उसके आंसू थम ही नहीं रहे थे. उसके भाई ने उसे सहारा दिया और वह उससे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी. उसके दिमाग में उस स्थूलकाय व्यक्ति का सवाल गूंज रहा था-आप कौन हैं? और वह और बिलख-बिलख कर रो रही थी.... 

रजनीश आनंद
09-04-16


शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

रिश्तों का सच

टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी ने आत्महत्या कर ली. अब इल्जाम उसके ब्वॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह पर आ रहा है कि संभवत: उसने उसकी हत्या कर दी या फिर उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि राहुल राज ने उसे नशे का आदी बना दिया था. जैसी जानकारी है, उसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि दोनों प्रेम में थे और एक साथ एक ही फ्लैट में भी रहते थे. दोनों के प्रेम संबंधों का अतीत था. प्रत्यूषा भी पहले किसी से प्रेम करती थी और राहुल राज भी. राहुल राज तो पहले से शादीशुदा भी था. मेरी व्यक्तिगत जो सोच है, उसके अनुसार निश्चित तौर पर दोनों को एक दूसरे के पुराने संबंधों के बारे में पता होगा. अगर आप किसी इंसान के कितने करीब होते हैं कि वो आपके लिए खास हो जाये, तो इस तरह की बातें स्वत: सामने आ जाती हैं.
फिर अगर आप प्रेम में हैं, तो इतनी जानकारी तो हो ही जाती है. ऐसे मैं अगर दो इंसान सारी सच्चाई जानते हुए संबंध बनाते हैं और उसमें कुछ बुरा होता है, तो मेरी समझ से दोषी एक व्यक्ति कैसे हो सकता है. प्रत्यूषा सारी बातों को जानती ही होगी फिर उसने जो कुछ किया, उसके लिए सिर्फ राहुल राज को दोषी ठहराना सही नहीं है. पहले तो आप अपने विवेक से निर्णय करते हैं कि फलां आदमी के साथ आपको रहना है, हर तरह के संबंध बनाने हैं, फिर उसी पर धोखे का आरोप क्यों? यह बात तो संबंध बनाने से पहले सोचनी चाहिए थी. कानून के दायरे में रहकर जब आप संबंध बनाते नहीं हैं, तो फिर उसे कानूनी रूप देना क्यों चाहते हैं. आपका संबंध स्वत: सुखाय है, तो उसे उसी तरह लीजिए. उसे कानूनी रूप देने की कोशिश करेंगे तो परेशानी तो होगी ही. अकसर अखबार में खबरें छपती हैं कि एक महिला ने किसी पुरुष पर शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया. मेरा यह मानना है कि अगर आप किसी से शादी करना चाहती हैं, तो शादी करें, फिर शारीरिक संबंध बनायें. अगर कोई व्यक्ति आप पर इसके लिए दबाव बना रहा है, तो आपको इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि आप यह समझ सकें कि वह रिश्ते को लेकर कितना गंभीर है.
गलती से संबंध बन गये और भावना में बहकर हमने गलती की इस तरह की बातें समझ से परे हैं. ऐसा एक बार हो सकता है. वर्षों कोई आपको झांसा नहीं दे सकता, वह भी तब जब आप बालिग हैं. 14-15 साल की बच्ची को कोई झांसा दे सकता है, 24 साल और 30 की युवती को नहीं. ऐसा नहीं है कि प्रत्यूषा की मौत का मुझे दुख नहीं है. लेकिन जीवन से हार जाने वाले इंसान मुझे पसंद नहीं हैं. राहुल राज साथ नहीं दे सका, तो उसे यह समझना चाहिए था कि वह उसके लायक नहीं था. दुनिया में उसके जैसे और उससे बेहतर कई लड़के प्रत्यूषा को मिल सकते थे. दूसरी बात यह भी है कि शादी ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य नहीं है. प्रत्यूषा अच्छी अभिनेत्री थी, उसे अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए था. राहुल राज अगर उसके प्रेम के लायक नहीं था, तो यह दोष राहुल का था प्रत्यूषा का नहीं, इसके लिए उसे आत्महत्या करने की जरूरत मेरी समझ से तो नहीं थी. हां अगर इस बात में कोई सच्चाई है कि राहुल ने उसकी हत्या की है, तो नि: संदेह उसे सजा होनी चाहिए क्योंकि प्रेम की आड़ लेकर किया गया गुनाह माफी के लायक नहीं होता.

रजनीश आनंद
09-04-16

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

ऐसा नहीं है प्रिये कि ...

गूगल साभार
ऐसा नहीं है प्रिये कि 
स्वार्थी है मेरा प्रेम
तुम कर्तव्य पथ पर हो अग्रसर
जानती हूं मैं, लेकिन
कैसे रोकूं उस उद्‌वेग को
जो तुम बिन कर देता है
तन-मन व्याकुल, फिर
चाहत होती है मात्र इतनी
तुम आवाज लगा बुला लो मुझे
गूंथ लो अपनी बाहों में
काश कि तुम्हारे कर्तव्य पथ पर
बन साथी मैं चल पाती
तुम्हारा प्रेम ना सही
साथ मुझे तो मिल जाता
चाह तो यही है मेरी कि
चूमो तो सफलता का शिखर
हां, थोड़ा सा स्वार्थी है मेरा प्रेम
जो यह चाहता है, शिखर पर
जब हो थकान तुम्हें
लगाना आवाज मुझे
क्षण भर में भागी चली आऊंगी मैं
तब भींच लेना तुम बांहों में मुझे
और अहसास करा देना कि
खास हूं मैं तुम्हारे लिए
ऐसा नहीं है प्रिये...
रजनीश आनंद
05-04-2016