सोमवार, 30 मार्च 2020

Covid19 कुछ अहम सवाल, जिनपर मंथन जरूरी है...

मैंने अपने जीवन में ऐसा दौर नहीं देखा था। ऐसा सन्नाटा ऐसी खाली सड़कें। लोगों के चेहरे पर एक अनजाना खौफ और एक दूसरे पर अविश्वास भी भरपूर। । हालांकि मैंने नेशनल इमरजेंसी और भारत-पाकिस्तान बंटवारे की खूब कहानियाँ सुनी लेकिन ऐसे किसी डिजास्टर को करीब से झेलने की यह पहली घटना है। कभी -कभी तो ऐसा महसूस होता है जैसे सबकुछ ठीक है हम झूठमूठ ही है पैनिक क्रियेट कर रहे हैं लेकिन अगले ही  पल मरने वालों का डाटा और संक्रमित मरीजों की संख्या हमें निगेटिव होने पर मजबूर कर देती है। 
चीन के दुकान प्रांत में सबसे पहले कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज मिला और मात्र साढ़े तीन महीने में इस महामारी ने 30 हजार से ज्यादा लोगों को मौत की गोद में सुला दिया। सात लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित है। 
अमेरिका जैसा शक्ति शाली और विकसित देश भी खुद को इस संक्रमण से बचा नहीं पाया। हमारे देश में अबतक लगभग 11 सौ लोग इंफेक्टेड है और 29 की मौत सरकारी डाटा के अनुसार हुई है। 
यह क्यों और कैसे फैला यह आज के समय में सब लोग जान रहे हैं। कोरोना वायरस को लेकर चीन का रवैया सवालों के घेरे में है और वह खुद को बचाने के लिए अमेरिका को जिम्मेदार बता रहा है। बहरहाल सच क्या है यह कुछ समय में सामने आ ही जायेगा। मैं अभी कुछ सवाल उठाना चाहती हूं जिनपर विचार और काम करने की जरूरत मुझे प्रतीत होती है। 
1. Coronavirus के मरीज छुप क्यों रहे हैं: कोरोना के त्रासदी रीज क्वारेंटाइन होने मे ंडर रहे हैं। यहाँ तक कि वे अपने करीबियों को भी संक्रमित करने में गुरेज नहीं कर लिया। अस्पताल से भागकर वे अपना और देश का नुकसान कर रहे हैं। इसलिए सामने आइए कौरोना संक्रमण से 80 प्रतिशत लोग ठीक हो जाते हैं ऐसा स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है। तो डरें नहीं आत्मबल को मजबूत करें। 
2. देश में लगातार विदेशी नागरिक मस्जिदों से पकड़े गये हैं, वे आखिर किस उद्देश्य से यहाँ आये हैं और छुपकर क्यों हैं और उन्हें छिपाने के पीछे राज क्या है। आज दिल्ली में निजामुद्दीन से कुछ ऐसी ही खबर आयी जिसके कारण वहाँ दो सौ से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने का खतरा है। आज रांची में भी मलयऐशिया, पोलैंड और वेतन इंडीज के 24 लोग पकड़े गये हैं। इससे पहले तमाड़ से 11 लोग पकड़े गये थे। 
3. पीएम मोदी का विरोध बाद में कर लें क्योंकि अभी वे अपु नागरिकों का सोच रहे उनकी सुरक्षा की बात कर रहे। जान है तो जहान है, इसलिए मोदी जी को नीचा दिखाने में खुद इतने नीचे ना गिरें की उठना मुश्किल हो जाये। बेशक अचानक आयी इस आपदा से गरीबों को बहुत दिक्कत हो रही है और सरकार जो कर रही है वह सभी को सहज उपलब्ध नहीं हैं और ही पर्याप्त भी। लेकिन घर में विपत्ति आने पर तो चना फांक कर रहने की परंपरा भी हमारे यहाँ है, तो निंदा बाद में करिएगा अभी तो साथ खड़े होने का वक्त है। देखिए सोनिया गांधी ने साथ खड़े होने का लेटर भी भिजवा दिया है। 
4. अपनी परंपरा और खान-पान को बचाने की जरूरत आज हर भारतीय महसूस कर रहा है। हाथ धोने और पैर धोने की सीख हम कुछ भूल रहे थे और शौच के बाद भी टिश्यू के आदी हो रहे थे लेकिन कोरोना ने स्पष्ट कर दिया कि ई रोकने कोरोना। तो अपनी परंपरा को अपनाएं तुलसी, हल्दी, गिलोय, लहसुन आपको एक सदी पीछे लेकर जाती है तो जायें लेकिन अपनी परंपरा का संरक्षण करें। इम्यून बिल्डर फूड खायें। 
5. चीन ने कोरोना वायरस और इसके  प्रभाव को जिस प्रकार पूरे विश्व से छुपाया उसमें चीन का हित क्या है? क्या यह सच में जैविक हथियार है जिसके दम पर चीन पूरे विश्व पर राज करेगा। यह विचार करने के योगय है। 
कोरोना पर हम पत्रकार आपको हर पल की खबर दे रहे हैं भले ही हमें अपना लुक चेंज करना पड़ा है। तो कृपया कोरोना लुक पर भी गौर करें आप सब, क्योंकि हम सब बड़ी मेहनत कर रहे। आखिर आपकी प्रशंसा ही हमारी पूंजी और ऊर्जा है। 

शनिवार, 21 मार्च 2020

बंटवारा

बंटवारा दर्द देता है
फिर चाहे वो देश का हो या रिश्तों का
बंटवारे में नहीं हो सकती समान भागेदारी
तब ही तो कई बार माँ के प्रेम में भी
बच्चे महसूस करते हैं अपनी उपेक्षा। 
बंटवारे के दर्द से उपजी हैं 
अनगिनत कहानियाँ-कविताएं
मैंने नहीं देखा देश विभाजन का दर्द
लेकिन रिश्तों के बंटवारे को महसूसा है। 
हम भूगोल नहीं बदल सकते, 
इसी तर्ज पर जीते रिश्तों को और 
छलकते आंसुओं को छूकर कई रात मैं भी जागी
यह समझने की कोशिश करती कि बंटवारा क्यों है जरूरी? 

रजनीश आनंद

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

हम मुस्कुराने वाले...

जिंदगी प्रेमिका की उलझी लटें नहीं
जिसे आप सुलझाना चाहें मुस्कुरा कर
यह तो किसी वृद्धा के उलझे केश के गुच्छे हैं
जिसे सुलझाते हुए कई बार काटना भी पड़ता है
एक पीड़ा और भावुकता के साथ
जिंदगी वह काली स्लेट है, जिसपर नाम और ख्वाहिशें
आंसुओं के डस्टर से पोंछे जाने के बाद ही
स्पष्ट लिखी जा सकती हैं, ऐसा क्यों? 
यह पूछने का अधिकार नहीं हमें
सिर्फ हर घटित पर प्रतिक्रिया के अधिकारी हम
आंसुओं को पीकर, हम मुस्कुराने वाले... 

रजनीश आनंद