सोमवार, 30 मई 2016

...किसी और के लिए जगह कहां है?

आज रात जब मैं तुम्हारे इंतजार में व्याकुल थी ना प्रिये
तो मुझ पर तंज कसते हुए चांद ने कहा, क्या आज भी नहीं आया वो?
मैंने कहा, आने की जरूरत क्या है वो तो मेरे तन-मन में बसा है
चांद हंसा, सुन री तू दीवानी है उसके प्रेम में, पर वह है बेपरवाह
मैंने कहा, हां मैं दीवानी हूं अपने सांवरे की, लेकिन नहीं है
 उसका प्रेम बेपरवाह, वो तो हर जगह है मौजूद
इस बार चांद खिलखिलाया, अच्छा तो बता कहां है तेरा प्रिये
मुझे तो नहीं दिखता, मेरी चमकीली चांदनी में तो सब कुछ आता है साफ नजर
इस बार उसकी हंसी जरा भी नहीं भायी मुझे, मैं भी गर्व से बोली
मेरी ओर देखो, ये जो मेरी मांग में सिंदूर है, यह है उसकी उपस्थिति का सबसे बड़ा सबूत
मेरी आंखों में देखो उसका बिंब नजर आयेगा तुम्हें
मेरे अधरों पर हैं उसके निशान और तन-मन में उसकी खुशबू
वो वर्षों ना भी आये, तो मेरे अंदर रहेगा मौजूद
क्योंकि वो मेरा श्याम और मैं उसकी मीरा, बुतपरस्ती है मंजूर मुझे
मेरी बात पर चांद ने तरेरी भौंहे कहा, भगवान ना बना उसे
मैंने कहा, हां वो इंसान ही है, तभी तो मेरे प्रेम में खिंचा चला आयेगा वो
जब हम होंगे एकाकार, क्योंकि मेरे जीवन तो सिर्फ वही है
किसी और के लिए उसने जगह कहां छोड़ी है.
रजनीश आनंद
30-05-16

गुरुवार, 26 मई 2016

जीवन का रिप्ले बटन

मैं आपको पिछले काफी समय से एक कहानी बता रही थी. कहानी थी रितिका की. इसकी अगली किस्त लिखने में काफी विलंब हो गया है. इसलिए आपको स्मरण करा दूं कि रितिका एक ऐसी लड़की जिसे जीवन से बहुत प्रेम था. वह टूटकर अपनी जिंदगी को जीना चाहती थी.उसकी यह चाहत थी उसका जीवनसाथी ऐसा हो, जो उसे इस कदर मोहब्बत करे कि वह उसकी हर सांस में शामिल हो. प्रेम को लेकर उसकी सोच इतर थी. इसी सोच के कारण उसे प्रेम हुआ और उसने अमन से बेपनाह प्रेम भी किया. लेकिन अमन उसका वह साथी न बन सका जिसकी उसे चाहत थी. वह छली गयी. लेकिन उसे जीवन से शिकायत नहीं थी क्योंकि उसके पास उसके जीवन की एकमात्र उपलब्धि उसका बेटा था. अमन को लेकर उसने कोई दुर्भावना इसलिए नहीं पाली क्योंकि वह उसके बेटे का पिता था और कभी ना कभी रितिका ने उससे प्रेम किया था. लेकिन आज उनके रिश्तों में कोई स्पार्क नहीं है. अमन को देखकर ना तो रितिका का दिल धड़कता है ना कुछ महसूस होता है. अमन की जिंदगी में रितिका कभी मायने नहीं रखती थी और आज भी उसकी जिंदगी में रितिका के लिए कोई जगह नहीं थी. इन्हीं परिस्थितियों के बीच रितिका के जीवन में जैक आया. जैक एक ऐसा युवक जिसने रितिका को वह सबकुछ दिया, जिसके सपने कभी रितिका ने देखे थे. लेकिन उनदोनों का साथ इस जन्म में तो संभव नहीं था, इसलिए रितिका ने उसे जाने दिया. लेकिन कुछ दिनों में ही जैक ने रितिका को इतना प्यार दिया, जिसके सहारे वह अपनी पूरी जिंदगी काट सकती थी. वैसे भी उसके जीवन का एक ही लक्ष्य था अपने बेटे को एक अच्छा इंसान बनाना. इसी लक्ष्य को पूरा करते हुए रितिका आज 50 साल की हो गयी है और उसका बेटा एक अधिकारी. अब आगे पढ़िए:-

रितिका आज बहुत खुश है. आज उसका बेटा शशांक अपनी ट्रेनिंग पूरी करके लौट रहा है. उसके बेटे की ट्रेन दोपहर एक बजे आने वाली है. रितिका सुबह से ही उसकी पसंद के व्यंजन बनाने में व्यस्त है. उससे अब सब्र भी तो नहीं हो रहा है. पूरे एक साल बाद उसका बेटा आ रहा है. पूरे 24 साल का हो गया है वो. रितिका को आज ऐसा महूसस हो रहा है, जैसे उसका जीवन सफल हो गया. गली में आने वाली घर गाड़ी की आवाज सुबह से ही उसे ऐसा एहसास करा रही है, जैसे उसका बेटा आ गया. उसकी धड़कन सुबह से बढ़ी हुई है, पता नहीं एक साल में कैसा दिखने लगा होगा वो? हालांकि वो अकसर अपनी तसवीर भेजता रहता था, बावजूद इसके रितिका को संतोष नहीं हो रहा था.
रितिका ने बेटे के कमरे को अच्छे से साफ कर दिया था, आज रितिका को बेटे के बचपन की सारी बातें याद आ रहीं थीं, उसका चलना, उसका बोलना. उसका गाना सब. कैसे वह उसकी मन की बातों को समझ लेता था सब. वह जल्दी-जल्दी सारे काम निपटाना चाहती थी. तभी अचानक उसे लगा, जैसे उसका बेटा आ गया, वह भाग कर दरवाजे पर गयी. दस्तक से पहले उसने दरवाजा खोल दिया. मां बेटे की आहट पहचान लेती है, यह बात सच साबित हुई, सामने उसका मुस्कुराता बेटा खड़ा था, उसने जोर से चिल्लाया मां मैं आ गया और वह अपने सारे सामान फेंक कर उसके सीने से लग गया. रितिका के आंखों में आंसू थे लेकिन खुशी के. उसका बेटा बहुत खूबसूरत युवक था. वैसे भी एक मां की नजर में उसके बच्चे जैसा दुनिया में कोई नहीं होता है.

रितिका को उसके बेटे ने ट्रेनिंग के दौरान की सारी बातें बतायीं. दोनों बहुत खुश थे. खाने की मेज पर जब मां -बेटा पहुंचे तो खाने के साथ-साथ बेटे ने मां से एक सवाल किया. मां मैने बचपन से आज तक तुम्हारी हर बात मानी, आज तुम मेरी बात मानना. तुमने हमेशा कहा जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो तुम मुझे अपने और मेरे जीवन से जुड़ी कुछ बातें बिना सच छुपाए बताओगी. बताओगी ना मां. रितिका ने बेटे की ओर देखा, कई सवाल उसकी आंखों में तैर रहे थे. रितिका ने कहा, हां जरूर बताऊंगी. इसपर वह हंसा और कहा, दो बातें आपको बतानी है फिर एक बात मैं आपको बताऊंगा. उसकी बात सुन रितिका ने कहा, अच्छा क्या बात है बताओ तो. शशांक ने कहा, नहीं मां पहले तो आपको बताना होगा, मैं इतने साल से इंतजार कर रहा हूं, थोड़ा तुम भी इंतजार करो.

खाने के बाद रितिका और शशांक साथ थे. वह मां की गोद में सो गया और पूछा-हां मां अब बताओ, थोड़ा अपने जीवन का रिप्ले बटन दबाओ . बताओ तो मुझे जो इतने साल से तुम्हारे सीने में दफन है. बचपन से हमेशा शशांक ने रितिका से यह पूछा कि सभी बच्चे अपने मम्मी-पापा के साथ रहते हैं, तो मैं क्यों नहीं.क्यों पापा अपने घर और तुम अपने घर रहती हो. रितिका ने उसे कभी पूरी सच्चाई नहीं बतायी क्योंकि उसे भय था कि उसका बचपन खराब हो सकता है. ऐसा नहीं है कि रितिका और अमन के रिश्ते का प्रभाव शशांक के जीवन पर नहीं पड़ा, लेकिन रितिका ने भरसक कोशिश की कि वह खुश रहे. आज जब शशांक पूरा सच जानना चाहता था,
तो रितिका ने अपनी पूरी कहानी उसे बतायी. बताते-बताते आज फिर रितिका के आंसू छलक गये, जिसे पोंछते हुए शशांक ने कहा, मां तुम रो मत. रोने के दिन अब गये. हालांकि इतने सालों में मैं काफी कुछ समझ ही गया था. तुम्हारी हर पीड़ा को मैंने भी देखा है मां लेकिन मेरी मां तो जरा हट के है इसलिए वो रोयेगी नहीं.

अब दूसरी बात बताओ मां, जिसे बताने का तुमने वादा किया था. अपने आंसू पोंछ रितिका ने कहा, बेटा मैंने जो झेला उसे बताना बहुत आसान है, जीना बहुत मुश्किल. मैं भी एक इंसान हूं मेरे भी कुछ सपने होंगे, कुछ जरूरतें होंगी, जो पूरी नहीं हो पायी. तुम्हारे पिता ने मेरे साथ जो कुछ किया, उसके बाद जीना बहुत कठिन था मेरे लिए लेकिन उसी दौरान मेरे जीवन में जैक आया, उसने मुझे वो प्यार दिया, जिसकी चाहत मैंने तुम्हारे पिता से की थी. हां एक शादीशुदा होते मैंने उससे प्रेम किया और उससे एक पति का प्रेम पाया. भले ही उस प्यार की उम्र बहुत छोटी थी, लेकिन उसमें कहीं भी धोखा नहीं था. जैक मेरे जीवन से जुड़ा वह सच है, जिसपर मैं कभी शर्मिंदा ना थी ना हूं और ना कभी होंगी.

उसने मुझे जीवन को जीने की वजह दी. उसने मुझे बताया कि जिंदगी को जी लो, वरना वह तुम्हें जी जायेगी. उसकी बातें हमेशा मेरे लिए प्रेरणा रहीं और आज मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं. तुम्हें अगर लगता है कि मैंने गलत किया था, तो तुम मुझसे नफरत कर सकते हो, लेकिन उस इंसान ने तुम्हारे लिए भी बहुत प्रार्थनाएं की हैं. वह तुम्हें अपना बेटा मानता था. वह दिल से तुम्हें चाहता था. मुझे हमेशा यह यकीन रहा है शशांक की दुनिया चाहे जो भी कहे, मेरा बेटा मुझे समझेगा और हमेशा मेरे साथ खड़ा होगा. तुम्हारी मां और जैक का रिश्ता अद्‌भुत था, जिसमें प्रेम था समर्पण था, लेकिन स्वार्थ और झूठ कहीं नहीं था. मेरी तुमसे यह गुजारिश है कि जब मेरी अर्थी उठे तो तुम उस इंसान को जरूर बुला देना, ताकि तुम्हारी मां की आत्मा को पूर्णता का एहसास हो.

यह कहकर रितिका बेटे से लिपट गयी. आज एकबार फिर दोनों की धड़कनें एकसार हो गयीं. रितिका के आंखों में आंसू थे और शशांक भी रो पड़ा. उसने अपनी मां को कहा, मां तुम्हारा प्रेम गलत नहीं हो सकता, तुम्हारे जैक को मैं ढूंढकर लाऊंगा. तुम्हारे अंतिम संस्कार पर नहीं , तुम्हारे जीवित रहते, ताकि एकबार फिर तुम जी सको. मेरी मां कभी गलत नहीं हो सकती. शशांक की बातें सुन रितिका फफक पड़ी और बोली अच्छा बहुत बड़ा हो गया है तू अब जरा ये भी बता दे कि कौन सी बात मुझे बताने वाला था.

मां की बात सुन वह बोला-अरे मां कुछ नहीं मैं ट्रेनिंग में था ना, तो वहां मेरे साथ एक लड़की थी जो हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती थी, अब मैं घर आ गया हूं, तो कह रही थी कि मैं भी तुम्हारे घर आना चाहती हूं, वही मैं तुमसे पूछना चाह रहा था कि उसे घर बुलाऊं क्या? रितिका ने बेटे के कान को खिंचते हुए कहा-हां जरा बुला तो उसे देखती हूं कौन मेरे सीधे-साधे बेटे को परेशान कर रही थी. उसके घर वालों से शिकायत करनी होगी मुझे. मां की बात सुन शशांक हंस पड़ा और उसके साथ-साथ रितिका भी. उसे लगा जैसे उसके भगवान शिव ने उसके जीवन को खुशियों से भर दिया....
रजनीश आनंद
26-05-16

मैं नहीं जानती कि तुम मेरे क्या हो?


मैं नहीं जानती कि तुम मेरे क्या हो?
लेकिन जब सांस आती है, तो हर सांस में होता है तुम्हारा नाम
जैसे धड़कन हो तुम .
पूरी दुनिया की भीड़ में खुद को तुम्हारे साथ पाती हूं हर्षित
जैसे सबसे प्रिय मित्र हो तुम
जो मुस्कान कभी छिन गयी थी होंठों से, उसे वापस लाये हो तुम
जैसे मुस्कान हो तुम
जब पीड़ा होती है बहुत तो, कांधे पर तुम्हारे सिर रख कर रो लेती हूं, जैसे वरदान हो तुम
जीवन के संघर्षपथ पर, अग्रसर हूं तुम्हारे उस वादे के सहारे कि कभी ना छूटेगा यह हाथ
जैसे आत्मविश्वास हो तुम
जब मूंद लेती हूं आंखें अपनी और अपने सीने पर रखती हूं तुम्हारा हाथ तो
अंतस  से आती है एक आवाज, जिंदगी हो तुम, जिंदगी हो तुम...
रजनीश आनंद
26-05-16


मंगलवार, 24 मई 2016

चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार किस मानसिकता का परिचायक है?

मेरे कुछ पुरुष मित्र मुझपर यह आरोप लगाते हैं कि मैं पुरुषों की निंदा का कोई मौका नहीं चूकती. लेकिन यह सच नहीं है. पुरुषों से मेरा कोई बैर नहीं है. कई पुरुष ऐसे हैं जिनका मेरे जीवन में अहम योगदान हैं और जो मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं. मेरा विरोध उस सोच को लेकर है, जो पुरुष को इंसान से हैवान बनाकर रख देता है. मैं यह मानती हूं कि इस धरती पर इंसानों की दो ही जाति है स्त्री और पुरुष. इन दोनों में शारीरिक भेद तो है ही मानसिक स्तर पर भी दोनों अलग होते हैं. विज्ञान भी इस बात को मानता है. दोनों के सोच का मनोविज्ञान भी अलग है.

आज मैं इस बात को कह रही हूं तो इसका कारण है वह खबर जिसे आज सुबह मैंने पढ़ा. हमारे शहर रांची में एक चार की बच्ची के साथ एक 30-32 साल के युवक ने बलात्कार किया और और उसके बाद उसकी हत्या भी कर दी. वह आदमी उस बच्ची को टॉफी दिलाने के नाम पर अपने साथ ले गया, जब वह अपने घर के बाहर खेल रही थी. वह बच्ची के पड़ोस में ही रहता था. अब बताइए यह किस तरह की मानसिकता का परिचायक है. अब अगर मैं इसके विरोध में बोलती हूं, तो क्या मैं क्या पुरुष विरोधी हूं.

क्या कोई सभ्य पुरुष इस घटना की प्रशंसा कर सकता है. मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आयी कि क्योंकर एक पुरुष एक चार साल-पांच साल की बच्ची को देखकर संभोग के लिए आतुर हो जाता है. क्या अब यह पुरुषवादी सोच वाला यह समाज यह कहेगा कि वह बच्ची उसे provoke कर रही थी या उसकी छोटी फ्रॉक का दोष है यह. क्या चार की बच्ची के शरीर में कोई ऐसे उभार होंगे, जो उस हैवान को उत्तेजित कर रहे थे. क्या इस इंसान को समाज के लिए खतरा बताकर सजा देने की जरूरत नहीं है. जबकि खबर में यह बात भी सामने आयी है कि वह पहले भी ऐसा कर चुका था. इस तरह की घटनाएं शहरों में तो होती ही हैं ग्रामीण इलाकों में तो आम हैं, जिन्हें हम दबा-छिपा जाते हैं. क्यों, क्योंकि हमारे समाज को बदनामी का डर है. हमारा समाज अद्‌भुत है, जहां बलात्कारी की बदनामी नहीं होती, पीड़िता की होती है.

कानून हमारे देश में कई हैं, लेकिन कई बार सजा के बाद भी ऐसी मानसिकता के लोग सुधरते नहीं हैं. जरूरत आज इस बात कि है कि हमारा समाज यह सोचे कि आखिर बलात्कार इस देश में क्यों होते रहे हैं? उसे रोकने के लिए क्या कदम उठाये जायें. सजा से बात बनती नहीं दिखती, इसके लिए जरूरी है सोच में बदलाव की. जब तक हम औरत को देह से इतर नहीं देखेंगे इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी. ऐसा नहीं है कि कामेच्छा सिर्फ पुरुषों के अंदर है, महिलाओं के अंदर नहीं. तो फिर क्यों एक पुरुष कामेच्छा की पूर्ति के लिए किसी की हत्या तक कर देता है. उन्हें महिलाओं से संयम का पाठ सिखना चाहिए.

बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसमें सजा दे देना पर्याप्त नहीं है. इस अपराध से महिला टूट जाती है, वह उबर नहीं पाती. सहमति से बनाया गया शारीरिक संबंध जहां खुशी देता है, वहीं रेप महिला को जीवन भर डराता है, अत: किसी भी तरह इस अपराध को रोकना समाज की जिम्मेदारी है और यह बात समाज को समझनी ही होगी.
रजनीश आनंद
25-05-16
  

सोमवार, 23 मई 2016

आज रात जो चांद को देखा...

आज रात जो चांद को देखा, ठिठक गयी मैं
नहीं देखा था पूर्णमासी का चांद पहली बार
लेकिन ना जानें क्यों आज उसका सौंदर्य लगा अद्‌भुत अप्रतिम
चाह हुई चूम लूं उसे, लेकिन ज्यों ही मैं उसके करीब जाने को हुई
एक नजर ने सकुचा दिया मुझे, घबरा कर मैंने चांद से कहा
ये किसकी आंखें हैं, जिसने बेचैन कर दिया मुझे
जाओ जाकर कह दो उससे, ऐसे ना देखे मुझे
कर दूं अगर कोई खता, तो फिर इल्जाम ना लगाना मुझपर
चांद ने हंसकर कहा, मुझे क्यों उलाहने देती हो
यह तो तेरे उसी प्रिये की आंखें हैं, जिसका अक्स मुझमें नजर आता है तुझे
अब दोष तो मुझे ना दो, सारी गलती तो तुम्हारे प्रिये की है
मैंने चांद को झिड़कते हुए कहा, ज्यादा इतराओ ना अपने रूप पर
तुम मुझे भाते हो, तो सिर्फ इसलिए कि उसकी झलक दिखती है तुममें
नहीं तो क्या पूर्णमासी का चांद और क्या स्याह रात
उसका अक्स बनाता है तुम्हें अद्‌भुत, अनोखा
जिसकी एक नजर से जी उठती हूं मैं
चाह होती है खत्म ना हो कभी जिंदगी का सफर.
रजनीश आनंद
23-05-16

शुक्रवार, 13 मई 2016

...क्योंकि इंतजार से कम नहीं होता प्रेम

अमावस की रात में अचानक क्यों
मैं छत पर जाकर बैठक गयी थी तुम जानते हो प्रिये?
क्योंकि मुझे इंतजार था, शायद दिख जाये मुझे दूज का चांद
पूर्ण चंद्र से अनोखी होती है, दूज के चांद की छटा
मुझे उम्मीद थी चांद में दिख जायेगा तुम्हारा अक्स
तब गूंथ लेना मुझे अपनी बांहों में और
मैं सीने से लगकर आज बहुत रोऊंगी
ऐसे कैसे कह दिया तुमने
कोई मोल नहीं है मेरे प्रेम का
लेकिन देखो ना प्रिये
अमावस की रात तो और भी काली होती जा रही है
नहीं दिखता इसमें मुझे दूज का चांद
लेकिन तुम घबराना नहीं
क्योंकि हर अमावस के बाद आती है पूर्णिमा
उस दिन मेरा चांद मुस्कायेगा और मैं रहूंगी उसकी बांहों में
तब तक इंतजार ही है मेरा धर्म
क्योंकि इंतजार से कम नहीं होता प्रेम...
रजनीश आनंद
13-05-16

गुरुवार, 12 मई 2016

...तब दमक उठेगा मेरा सौंदर्य


क्या तुमने कभी बिन जल मीन को तड़पते देखा है प्रिये?
जानते हो वो इतना छटपटाती क्यों है?
क्योंकि बिन जल उसका जीवन संभव नहीं
वह तो हमेशा जल के आगोश में रहना चाहती है
जब तक जल उसे खुद में समेटकर चूम नहीं लेता,
उसे चैन नहीं आता, वह तड़पती रहती है
लेकिन देखो ना प्रिये,यह जल कितना निर्मोही है
उसे मीन की तड़प कभी दिखती नहीं
वह तो अपनी धुन में बहता है
क्या तुम्हें भी मेरी तड़प नहीं दिखती
क्या मेरी आंखें तुम्हें नहीं कहतीं
कि तुम ही एकमात्र हो मेरे जीवन की आस
जिसके प्रेम की डोर ज्यों ही छूटेगी
शव ना हो जाऊं, तो जिंदा भी नहीं रहूंगी मैं
सांवरे मैं मीरा हूं तुम्हारी,
जो तुम मुख मोड़ भी लो, तो विश्वास है मुझे
प्रेम मेरा मेरी अंतिम सांस से पहले खींच लायेगा तुम्हें
क्षण भर के लिए ही सही आगोश में ले लेना मुझे
सच कहती हूं प्रिये, ये जो मेरी मांग में
तुम्हारे नाम का सिंदूर है, दमक उठेगा वह
और उस वक्त अप्रतिम होगा मेरा सौंदर्य...

रजनीश आनंद
12-05-16

सोमवार, 9 मई 2016

प्रेम की भाषा...

रात झरोखे से जो मैंने देखा चांद को
उसने इतराकर कहा, ऐसे क्या देखती है
मैं प्रिये नहीं तुम्हारा, नहीं करता तुमसे प्रेम
मैंने हंसकर कहा, क्या अब तुझे मेरा देखना भी नहीं है गंवारा,
क्या करूं मैं, जो मुझे तुझ में दिख जाती है अक्स अपने श्याम की
वो दूर है मुझसे और ये भी कहता है, प्रेम नहीं करता मुझसे
लेकिन मैं जानती हूं उसके होंठ कुछ और नेत्र कुछ और कह रहे हैं
उसके आंखें कभी झूठ नहीं बोलतीं
जिसमें मुझे अपने लिए दिखता है, तो सिर्फ प्रेम और कुछ नहीं
इस बार चांद ने तंज कसा, तू भ्रम में है शायद
मैं भी कहां हार मानने वाली थी
कहा उससे, तुम क्या जानो प्रेम की भाषा
क्या कभी किया है किसी से प्रेम?
मेरी इस बात पर चांद ने मुस्कुराकर कहा
अच्छा तो तू ही बता दे, क्या है प्रेम की भाषा
मैंने कहा, तो सुन, जब मैं कहती हूं अपने प्रिये से
ए सुनो ना, मुझे तुमसे नफरत है,
तो पता है उनको क्या सुनाई देता है?
इस बार चांद ने रुखाई से पूछा, क्या?
मैंने कहा, उनके कानों में गूंजता है यह मधुर स्वर
कि मुझे उससे है आगाध प्रेम, असीमित प्रेम
मेरी इस बात पर चांद ने मुस्कुराकर कहा, हां
मैं समझ गया प्रेम की भाषा और उसने ले लिया मुझे अपने आगोश में
जहां था तो सिर्फ प्रेम और प्रेम...
रजनीश आनंद
09-05-16 

शनिवार, 7 मई 2016

प्रिये तुम कर्मयोगी, मैं विरह में जलती नारी


मिले तो तुम मुझे अब हो प्रिये,लेकिन लगता है जैसे तुम
कहीं मेरे अंदर ही समाहित थे, हां सच कहती हूं सांवरे
इतना अपनापन तो इंसान को खुद से ही होता है
जब देखती हूं मुख तुम्हारा, झंकृत हो जाते हैं मन के सारे तार
ना जानें कौन सा नाता है तुमसे
स्याह रात से दिन के उजाले तक
खोई रहती हूं तुम्हारी यादों में
जानती हूं मैं कर्मयोगी हो तुम
विरह में जलती इस नारी का नहीं है तुम्हें ध्यान
लेकिन क्या करूं मैं, प्रेम का जो बीज तुमने
मेरे हृदय में बोया है, वह अंकुरित हो
तुम्हारे प्रेम की छांव चाहता है
मैंने इसे बताया, समझाया
कर्मयोगी है वो, उसे है अपने पार्थ की तलाश
क्यों तू बनना चाहता है उनके पैर की बेड़ियां
लेकिन यह मानने को तैयार नहीं
कहता है मैं बन जाऊंगा उनका पार्थ
ताकि मुझे मिलता रहे जीवन में उनका साथ
प्रेम ना सही, ज्ञान ही मिले पर कुछ तो मिलेगा
मैं उसे ही प्रेम की भेंट समझ लूंगा, सीने से लगा लूंगा
धृष्टता के लिए मुझे माफ करना प्रिये  क्योंकि
वह बीज तो मेरे हृदय में ही हुआ है प्रस्फुटित...
रजनीश आनंद
07-05-16



गुरुवार, 5 मई 2016

पुरुषवादी सोच का क्रूर चेहरा

यह दुनिया पुरुषवादी सोच के साथ चल रही है इस बात से हम सभी वाकिफ हैं. कमोबेश महिलाएं इस सोच के साथ जीने को राजी भी हैं. लेकिन दुख तब होता है यह जब इस सोच के सहारे महिलाओं को कदम-कदम पर अपमानित किया जाता है. ताजा मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां एक सांसद साक्षी महाराज ने भरी सभा में एक लड़की की जींस उतरवाई और उसके जख्मों का मुआयना किया. दुख तो इस बात है कि वहां उपस्थित महिलाएं भी इस कृत्य को रोकने की बजाय उसके समर्थन में खड़ीं थीं. एक महिला के देह का इस तरह प्रदर्शन कहां तक उचित है. क्या एक पुरुष को भरी सभा में कपड़े उतराने के लिए इस देश में मजबूर किया जा सकता है. उस लड़की के साथ जो अन्याय हुआ हो, उसके जो जख्म उसके शरीर पर होंगे उससे ज्यादा बड़ा जख्म साक्षी महाराज का यह कृत्य उसे जीवन भर के लिए दे गया. क्या साक्षी महाराज बिना जींस उतरवाये उस लड़की का दुख नहीं समझ पा रहे थे, जो उन्होंने ऐसी हरकत की.

सही है जिस में देश में पुरुषवादी सोच इस कदर मुखर हो कि लोग दो-चार की बच्ची के साथ भी शारीरिक सुख लेकर आनंदित होना चाहते हों और उस बच्ची को आजीवन खौफ के साये में जीने के लिए मजबूर करते हों, वहां तो इस तरह की घटनाएं होंगी ही. साक्षी महाराज और बाबूलाल गौर जैसे लोग जब सांसद और मंत्री होंगे तो महिलाएं किस तरह अपने आत्मसम्मान की रक्षा करेंगी, यह बात मेरी समझ से परे है. हम क्यों इस तरह के लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनते हैं और क्यों उन्हें कानून बनाने वाली संसद तक पहुंचाते हैं. क्या इस देश की आधी आबादी इस पर विचार करेगी. कहा जाता है कि महिलाएं रेप का केस लेकर कोर्ट तक इसलिए नहीं जाना चाहती, क्योंकि उसके साथ तो एक बार खौफनाक हादसा होता ही है , कोर्ट में अश्लील और बेतुके सवाल पूछकर उसे और अपमानित किया जाता है.

दुखद यह है कि महिलाओं के साथ जब कोई अपमानजनक हरकत होती है, तो यह समाज महिला के साथ सहानुभूति नहीं रखता बल्कि चटखारे लेकर उस घटना का जिक्र करता है और संबंधित खबर को पढ़ता है. महिलाएं इस देश में तभी सम्मान की जिंदगी जी सकती हैं, जब पुरुष अपने दष्टिदोष को दूर करें, अन्यथा इस देश में इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और दो-चार दिन चिढ़कर-लिखकर घटनाओं को भूल जायेंगे और घटनाएं इतिहास में दर्ज होती जायेंगी. मथुरा बलात्कार कांड, अरुणा रेप केस और दिल्ली गैंगरेप जैसी घटनाएं अब इतिहास ही हैं. अफसोस इस बात है कि आज भी महिलाओं को देह से ऊपर नहीं देखा जाता,जिसके कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं.
रजनीश आनंद
06-05-16

मैं उनकी चांदनी...

रात चांदनी ने कहा मुझसे, तू क्यों है बेचैन
क्यों तू हर पल उसी के ख्यालों में डूबी रहती है
क्यों मुझे तेरी सांसों से उसकी खुशबू मिलती है
क्यों मैं जब तुझे देखती हूं, तो तेरी आंखों में उसका
मोहक चेहरा नजर आता है, क्यों तू  खुद को उससे इतर नहीं कर पाती
मैंने कहा, नाराज क्यों होती हैं
तू भी तो चांद की ही छाया है, उसके ही चमक से इतराती है
क्या बिना चांद के है तेरा अस्तित्व
मेरी बात सुन चांदनी थोड़ा मुरझाई
मैंने उसकी ओर हंस कर देखा
कहा, निराश क्यों होती है
जैसे वो हमारे प्रिये है, वैसे चांद तुम्हारा
मैं तो अपने चांद की चांदनी बन बहुत खुश हूं
उसका प्रेम मेरे लिए अमृततुल्य
जिसका रसपान कर अमर हुआ हमारा प्रेम,शरीर भले ही नश्वर हो,
मैंने चांदनी के कानों में फुसफुसाकर कहा,
जानती हूं उसने इस संसार से साथ लेकर जाने का भी किया है वादा
मेरी बात सुन चांदनी मदमस्त हो गयी
समा गयी अपने प्रियतम के आगोश में
देखा मैंने, अब नहीं था दोनों का अलग अस्तित्व
 बस था एकाकार प्रेम...
रजनीश आनंद
05-05-16

मंगलवार, 3 मई 2016

मुझे है विरह से प्रेम...

ध्यान रखना तुम, मैं प्रेयसी तुम्हारी, तुम मेरे प्रिये हो
प्रेम में हमारे है ना कोई शर्त ना कोई बाध्यता
है तो बस प्रेम और समर्पण का वादा
जब भी हम साथ हों,टूट कर करें प्रेम बस प्रेम
विरह भी पस्त हो जायेगा, सम्मुख हमारे
मुझे है भरोसा एक दिन ऐसा भी आयेगा
जब हमारे मिलन की बेला में नतमस्तक वो खड़ा होगा
लेकिन सुनो ना प्रिये, तुम्हारे प्रेम में डूबकर
हो गया है विरह से मेरा अटूट नाता
जब तुम दूर होते हो, तब वही एकमात्र सखा होता है मेरा
विरह की आग ज्यों-ज्यों तड़पाती है
तुम्हारे प्रति बढ़ता ही जाता है प्रेम मेरा
जाने कब विरह में जलकर मैं बन गयी तुम्हारी मीरा
इसलिए आओ ना प्रिये इस विरह की बेला में भी
हम डूब जायें इस कदर प्रेम रस में
कि विरह को भी हो जाये हमारे प्रेम से अगाध प्रेम
 रजनीश आनंद
02-05-16   

सोमवार, 2 मई 2016

...शेष सब झूठ, सब झूठ


प्रिये ना जानें क्यों मध्यरात्रि को अचानक लगा मुझे
 जैसे तुमने लगायी हो आवाज, बुलाया हो अपने पास
चौंक कर अधीरता में, झांका ज्यों झरोखे से मैंने
सन्नाटे के अलावा कुछ आया नहीं नजर
तभी हुआ एहसास जैसे तुमने फिर पुकारा मुझे
इस बार तो मैं खुद को रोक नहीं पायी,
क्योंकि ए सुनो प्रिये कहकर लगायी थी आवाज तुमने
खोल द्वार की कुंडी निकल आयी मैं देहरी से बाहर
तुम्हारा मुख तो नहीं दिखा मुझे
लेकिन आसमान में चांद मुस्कुरा रहा था
मैंने पूछा तू क्यों हंस रहा है?
क्या एक विरह में जलती प्रेयसी का उपहास कर रहा है
उसने कहा, नहीं मैं तो  गवाह हूं तुम दोनों के प्रेम का
जानता हूूं, मैं कि अपने प्रिये से मिलने को आतुर है तू
चांद ने बांहे फैलाकर जब मुझे अपने आगोश में लिया
तो उसके सीने से लगकर हुआ मुझे एहसास
अब तक तो अपने प्रिये से ही कर रही थी मैं दिल की बात
चांद सा मुख उसका देख मुझे हुआ उसके आसमान में होने का भ्रम
रात के सन्नाटे में जब मैं रहूं प्रिये की मजबूत बांहों में
तब क्या मैं जल सकती हूं विरह की आग में
चूम कर अधरों को मेरे
सांवरे ने कहा था, मेरी हो तुम और मैं तुम्हारा
शेष सब झूठ-सब झूठ...
रजनीश आनंद
02-05-16