सोमवार, 18 दिसंबर 2017

मुट्ठी में कैद खुशबू...

प्रेम की नदी बहती थी
मेरे घर के पीछे
जब हवा तेज चलती
तो उसकी भीनी सुगंध
मेरे कमरे तक आती
मदहोश कर जाती
एक बार हथेली में
कैद किया मैंने
जोर से पकड़े रखा
प्रेम के सुगंध को
लेकिन मैंंने जब मुट्ठी
फूंक कर खोली
तो निकला उसमें से
मात्र प्रेम का भ्रम
मैं खाली हाथ खड़ी थी
सहसा नदी की ओर से
पुकारा किसी से नाम मेरा
मैं भागकर गयी, कोई नहीं था
बस चट्टानों पर बैठा कोई
मेरी तरह फूंक रहा था
अपनी मुट्ठी को और
प्रेम की खुशबू बिखरी थी फिजाओं में
मैंने पास से देखा, खूशबू मुट्ठी से नहीं
उसकी आंखों से बिखर रही थी
और हाँ, कोई भ्रम नहीं था
अब मन में मेरे...

रजनीश आनंद
18-12-17

बुधवार, 13 दिसंबर 2017

मैं देखना चाहती हूं...

प्रिये,
जानते हो मेरा जी करता है, तुम्हें पास से देखने का. बहुत मन करता है कि देखूं तुम्हें कैसे दिखते हो तुम जब गीले बालोंं में करते हो कंघी. मैं समेटना चाहती हूं तुम्हारे बालों का पानी अपने आंचल में, ताकि सीने पर जब रखूं उस आंचल को तो भीग जाये तनमन. मैं खाना चाहती हूं एक प्यार की रोटी का निवाला, तुम संग. जब तुम खाओ बैठकर सुबह का नाश्ता. तुम्हें पता है, मैं देखना चाहती हूं तुम्हें अखबार पढ़ते हुए, अपनी कुर्सी पर काम करते हुए. तब मैं हाथ फेरना चाहती हूं तुम्हारे बालोंं में और चूम लेना चाहती हूं माथा तुम्हारा. मैं इस्तरी करना चाहती हूं तुम्हारी सफेद कमीज पर, जिसे पहनकर जब तुम घर से बाहर जाओ तो लड़कियां आहें भरें, थोड़ी सी जलन तो होगी, पर मन खुश भी बड़ा होगा. मैं देखना चाहती हूं तुम्हें हंसते, खेलते, गाते , खाते और जीते. मैं देखना चाहती हूं तुम्हें पास से हर पर्दे से परे, यह प्रेम में मेरा हक है तुम पर...

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

उम्मीदों का हाँर्लिक्स

जब गिलास में डालकर
दो चम्मच हाँर्लिक्स
मैं घोलती हूं तो
घोलती हूं जिंदगी में उम्मीदें
मैं दूध में नहींं, पानी में घोलती हूं
ताकि उम्मीदें खालिस रहें
उनपर ना पड़े कोई रंग
कभी -कभी अत्यधिक उम्मीदें भी
बन जाती हैं गले का फांस
इसलिए तो पारदर्शिता पसंद है
मुझे उम्मीदों की
वैसे भी औरतें कम में सुकून पा जाती हैं
पर औरतों की उम्मीदें सतही नहीं होती ं
एक गहरापन लिये होती हैं
मैंने तो कइयों को देखा
एक आलिंगन, एक चुंबन को
जीवन मान जीते
मै रोज घोलती हूं दो चम्मच हाँर्लिक्स
ताकि कभी तो रूमानियत के
एहसास के साथ, चाँकलेट फ्लेवर लिये
आओ तुम और मेरे जिह्वा पर धर दो
उम्मीदों की गरमाहट, जो घुल जाये बिलकुल
उम्मीदों का शहद बनकर....

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

रात की खामोशी...

रात की खामोशी में
प्रेम से  उस क्षण
साक्षात्कार होता है
जब पुकारते हो तुम
लेकर प्यार वाला नाम
भींग जाती हूं मैं तुममें
जैसे जमीन ओस से
हर सुबह घर के बागीचे से
सहेजती हूं बिखरे ओस
उस पल की याद में
जब सीने में तुम्हारी
दुबकी थी मैं और
प्रेम मुखरित था...

रजनीश आनंद
04-12-17