मत मापो एक स्त्री को
उसके स्तन की गोलाई और उभार से
कभी उसके मस्तिष्क का माप भी लो
स्त्री के मन को तो ना समझे कभी
मस्तिष्क को ही समझकर देख लो।
है अफसोस इस बात का
मस्तिष्क की माप से पहले ही
हावी हो जाता है, देह का नाप
किंतु स्त्री शिथिल है, माप के मापदंड से
नहीं बिखरता उसका व्यक्तित्व है।
स्त्री होने का दर्द
तभी भान होता है, जब
मिलता है जन्म स्त्री का
खंडित किया जाता स्वाभिमान
मात्र लिंग बनता है कारण है।
मन हताश होता है
कभी-कभी इन बातों से
लेकिन आंसू नहीं गिरते
वर्षों की अनदेखी ने कलेजा पत्थर किया है
तभी तो छलावे के घास नहीं उगते...
रजनीश आनंद
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