bios locker room और #girlslockerroom की चर्चा इन दिनों सोशल मीडिया के जरिये पूरे देश में हो रही है, जिसके कारण यह दोनों ग्रुप ट्विटर पर टॉप ट्रेंड में रहा. यह दोनों ही सोशल मीडिया ग्रुप के नाम हैं और जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह दोनों लड़कों और लड़कियों के ग्रुप हैं. अब इस ग्रुप में बात करने का तरीका देखिए- अगर एक लड़का तुम्हारी हॉट पिक पर रिस्पांड ना करें, तो समझना वो गे है. बूब्स की जगह पिंपल है, वगैरह-वगैरह. अब लड़कों की सुने-उसने बहुत दारू पी थी. पागलों की तरह नाच रही थी आउट अॅाफ कंट्रोल थी इसलिए हम शुरू हो गये....
यह सिर्फ उदाहरण हैं जो आम लोगों के साथ शेयर की जा सकती है, इससे इतर भी ग्रुप में कई बाते हैं, जिसे सभ्य लोगों के ग्रुप में शेयर करना असभ्यता समझा जायेगा. हालांकि हमारा समाज उस तरह की भाषाओं का आदि है और समाज में ऐसी भाषा बोली और समझी जाती है. किसी को नीचा दिखाना हो तो खासकर ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाता है. खैर विषयांतर ना करते हुए मैं मुद्दे पर आती हूं.
दरअसल #boyslockeroom इंस्टाग्राम पर लड़कों का एक ग्रुप है जिसमें स्कूल के 16-19 साल तक के बच्चे मेंबर हैं. जैसा कि आम तौर पर देखा जाता है लड़के, लड़कियों की शारीरिक संरचना के बारे में अश्लील तरीके से बात करते हैं, वो इस ग्रुप में भी हो रहा है. टीनएजर लड़के जिनमें जिज्ञासा है और वे सबकुछ जानने को उत्सुक है. खासकर शारीरिक बनावट और शारीरिक संबंध के बारे में. चूंकि इस उम्र में अपोजिट सेक्स के प्रति खिंचाव स्वाभाविक है, इसलिए उनकी बातचीत भी स्वाभाविक है. लेकिन चौंकने वाली बात या जिसे हम खतरे की घंटी मानें, वह यह है कि इंटरनेट के इस युग में वे गलत तरीके से गलत ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं. इस वजह से वे अपराट की ओर अग्रसर हो रहे हैं. यह बच्चे जो किशोर हो चुके हैं वे रेप की योजना बना रहे हैं.
वे आपस में यह चर्चा कर रहे हैं कि किस तरह एक लड़की का जो शायद उनकी सहपाठी है, उसका उन्होंने रेप किया या करना चाहते हैं. यही स्थिति डराने वाली है, क्योंकि बच्चे अपराध करने का सोच रहे हैं. वह भी तब जब इसी साल 20 मार्च को देश में निर्भया के दोषियों को फांसी दी गयी. निर्भया की चर्चा इसलिए क्योंकि चार-चार लोगों को फांसी पर चढ़ते देखकर भी अगर रेप की प्रवृत्ति लड़कों में पनप रही है तो यह समाज के लिए खतरे की घंटी है.
इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में खुलापन समाज में हावी है. हर कोई आपस में खुलकर बातें कर रहा है. सेक्स एक ऐसा विषय है जिसे लेकर जिज्ञासा तो है जो स्वाभाविक है, लेकिन गलत जानकारी किशोरों को भ्रमित कर रही है और वे पथभ्रष्ट होकर गलत राह पर जा रहे हैं. यह बात सिर्फ लड़कों पर लागू नहीं है, यह बात लड़कियों पर भी लागू है, क्योंकि जो जिज्ञासा इनके अंदर है वो लड़कियों में भी है. यही कारण है कि लड़कियों ने भी इसी तरह का ग्रुप बनाया हुआ है, जिसमें वे अपनी जिज्ञासा शांत कर रहे हैं. लड़कों पर कमेंट कर रही हैं उनकी शारीरिक बनावट पर बात कर रही हैं और मजे ले रही हैं. इसका कारण है उनकी जिजीविषा.
लड़कियों का शरीर लड़कों के लिए एक रहस्य है जिसे वह भोगना चाहता है और यह बात हर युग में सही रही है. बात sexuality की नहीं है, यह तो प्राकृतिक और स्वाभाविक प्रक्रिया है. sexuality को हमारे समाज में गलत तरीके से परिभाषित किया जाता है. यह तो सामान्य प्रक्रिया है और परिवार नामक संस्था की आधारशिला भी है. जिसमें प्रेम और विश्वास रहता है और लोग दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हुए एक दूसरे को आकर्षित करते हैं और संतुष्ट करते हैं. आपत्ति है सेक्स के नाम पर विकृति की. sexuality दोनों ही जेंडर में है, तभी यह प्रकृति सुचारूरूप से चलती है. लेकिन आज सेक्स के नाम पर विकृति दोनों ही जेंडर में दिख रही है.
sexuality जबतक स्वीकार्य हो सहमति से हो, वह प्रेम होता है, लेकिन जैसे ही यह असहमति और अस्वीकार्यता का बोध कराता है यह अपराध हो जाता है. ऐसे में समाज और परिवार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. परिवार और समाज यह तय करता है कि कैसी और कितनी जानकारी किस आयुवर्ग के लोगों को होनी चाहिए. अगर यह तय नहीं किया गया तो अनाचार बढ़ेगा, जो बढ़ रहा है. sexuality के नाम पर अपराध कोई नयी बात नहीं है. लेकिन यह कुंठा निकालने का जरिया ना बने, यह देखना समाज और परिवार की जिम्मेदारी है.
इंटरनेट की वजह से लोगों के हाथों में हर तरह की सूचना उपलब्ध है सेक्स के नाम पर लोगों के सामने विकृत सामग्री परोसी जा रही है. इस बात को मैच्योर लोग तो समझ लेते हैं, लेकिन कच्ची उम्र के लोग इस बात को समझ नहीं पाते और आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते हैं. इसलिए सूचना के विस्फोट में क्या लेने लायक है और क्या छोड़ने लायक यह हमें ही तय करना होगा.
समसामयिक ज्वलंत मुद्दे पर आपकी टिप्पणी युक्तिसंगत होती है। क्या हो गया है इस देश को!
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