सोमवार, 8 जुलाई 2019

प्राथमिकता बदलो

मैं बेचैन रहती हूं तबतक
जबतक,  नहीं लिख लेती
कोई आलेख, कविता
डरती हूं, कलम निकालते
अकसर मैंने पाया जब नहीं होता
सृजन कोई मेरी कलम से
वह आंखें तरेरती है
उलाहना भी देती है
मैं चाहे जितनी से
बंद कर लूं अपने कान
स्पष्ट आवाज आती है
मेरी डायरी के साथ चिपकी
मेरी कलम नजर रखती है
मेरे उन पलों पर,  जब मैं
करती हूं कोताही, बनाती हूं बहाने
चौबीस घंटे तो सबके लिए है,
गालिब शेक्सपियर,  महादेवी
इन्हीं घंटों में पनपे, उन्होंने तो नहीं गिने घंटे
रचना के लिए समय, नहीं समर्पण चाहिए
कलम कहती है होकर वाचाल
प्राथमिकता बदलो, यह दुनिया बहुत हसीन है...

रजनीश आनंद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें