बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

माँ

तोतली बोली से चेहरे पर 
उग आयी हल्की मूंछों तक
मैंने हर रोज संवारना चाहा
खुशी से तुममें अपना जीवन
स्तनपान हो या स्नान, औलाद देती है
सिर्फ और सिर्फ खुशी एक माँ को
हाँ, जो तड़प और भय माँ 
सहेजे है कलेजे में, वह भी कारक हैं
बस प्रेम और हर्ष का। 
बावजूद इसके माँ कई बार
नहीं बन पाती, संतान के लिए कवच
जिस गोद में वह सुकून से सोता है
वहाँ नहीं होती दवा हर मर्ज की
कई दफा योद्धा माताएं भी
बेबस होती हैं नियति के समझ
नजरें उतारते और मिर्च जलाते
कभी कभी उसकी खांसी बन जाती है दमा
भगवान के नाम का जाप करती माताएं
कुछ नहीं भूलतीं ना जीतिया ना  छठ
गुहार, लड़ाई, सिफारिश कुछ भी नहीं छोड़ती
फिर भी ना जाने हो जाती है क्या चूक... 

रजनीश आनंद

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