शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

चांद रात

चांद रात को मैं अकेली
खिड़की से देख रही थी
बाहर का नजारा, सर्द थी रात
कई सवाल अतीत से सामने आकर
बढ़ा रहे थे कमरे की उष्णता
चांद का चुंबन, कभी उत्तेजना से सराबोर था
लेकिन आज, निरर्थक, निष्क्रिय
समय की गति अनोखी है
यह सोने को राख और 
राख को सोना बना सकती है
किंतु जबतक यह रहस्य उजागर होता है
सफेद हो जाते हैं केश
और नजर हो जाती है कमजोर
काश कि जिंदगी, पहली पाली में ही
समझा देती यह गूढ़ रहस्य
तो अनगिनत रिश्ते टूटने से बच जाते,,, काश

रजनीश आनंद


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