शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

गलती

रितिका का दुख यह था कि अमन ने उसे अपनी जिंदगी में दोयम दरजा दिया था. उस अमन ने जिसके बिना वह अपनी जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकती थी. अमन उसका पहला प्यार था. लेकिन उसी ने उसे दूसरा दरजा दिया.
इस दुख के साथ वह जी लेना चाहती थी. आखिर अमन उसकी ख्वाहिश था. सो अमन को अपनी पूरी जिंदगी सौंप वह सपनों की दुनिया में खोना चाहती थी. अतीत में कब क्या हुआ उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं था. वह तो बस खुली आंखों से सपने बुनना चाहती थी, जिसमें घोड़े पर सवार होकर उसका अमन आये और उसे दूर देश में ले जाये.

उसने खुद को अमन की चाहत के अनुरूप ढाला. अमन ने कहा, नौकरी छोड़ दो, रितिका ने बिना सवाल किये छोड़ दिया. उसने अपने पहनावे में भी अमन की इच्छानुसार परिवर्तन किया. रितिका ने खुद में वे सारे बदलाव लाये, जो अमन को पसंद थे. फिर भी एक खलिश जो अमन के मन में थी, उसे दूर ना कर पायी. अमन उसे चाहता तो था, लेकिन उतनी शिद्दत से नहीं, जितनी शिद्दत से वह अमन को चाहती थी. जब भी वह अमन की बांहों में होती, उसे यह अहसास होता, कि अमन उसे नहीं किसी और से मोहब्बत कर रहा है. इस अहसास को मिटाने के लिए रितिका ने अपने अस्तित्व को ही मिटा डाला.... और अचानक एक दिन जब उसने आईने में खुद को निहारा, तो उसे उसकी छवि दिखी, जिसकी जगह अमन के दिल में वो कभी नहीं ले पायी.

आईने के सामने वह ठिठकी, खुद को निहारा, रितिका के अस्तित्व की ऐसी मौत होगी, उसे उम्मीद नहीं थी. उसकी आंखों में आंसू थे.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. आंसू पीकर रितिका दरवाजे तक गयी. छिटकनी खोला, सामने एक महिेला थी. रितिका को उसने ऊपर से नीचे घूरा, वह कुछ कह पाती, तब तक वह अंदर आ गयी. धम्म से सोफे पर बैठी. कहा, अच्छा, तो वो तुम्हीं हो, जिसे मेरा बेटा ब्याह लाया है. ऐसी कोई खूबी तो दिखती नहीं है, तुममें.
माथे पर बड़ा सा लाल टिका लगाये, वह महिला रितिका को जादूगरनी जैसी दिख रही थी. लेकिन वह इतना समझ गयी थी कि वह अमन की कोई रिश्तेदार है.

रितिका कुछ कहती, इससे पहले अमन घर के अंदर दाखिल हुआ और उस महिला को देख उसका चेहरा खिल गया. वह खुशी से लगभग चिल्ला उठा. अरे, ‘ तृप्ति बुआ तुम’. मैं जानता हूं कि मुझसे गलती हुई है, लेकिन ऐसे कोई बेटे से नाराज होता है क्या?

रितिका समझ नहीं पायी, अमन किस गलती की बात कर रहा है. तभी अमन ने उसे आदेश दिया. अरे खड़ी क्या हो, कुछ चाय-पानी लाओ बुआ के लिए. यह मेरी फेवरेट बुआ है और अब तुम्हें इसकी सेवा करनी है.

रितिका तुरंत अंदर गयी और चाय बनाने लगी. तभी उसके कानों में एक बात गयी. बुआ कह रहीं थीं ‘ देख अमन तूने गलती तो की है. कहां से उठा लाया इस लड़की को. ना हमारे जैसे कुल की है, ना जात की है और ना देखने में सुंदर है. अब तू अपने मां-बाप की भी अनदेखी कर रहा है. यह सही बात नहीं है. मैं तुम्हें समझाने आयी हूं. जो हुआ सो हुआ. अब बस कर और इसे इसके घर पहुंचा, बहुत दिन रह ली. और अपने मां-बाप से माफी मांग’. तभी तेरी गलती सुधरेगी.
बुआ की बात पर अमन ने कहा, ‘ हां गलती तो हुई है. लेकिन अब इसे इसके घर पहुंचाना संभव नहीं.’ इसके घर वाले हंगामा कर देंगे. चाय की प्याली रखते हुए रितिका ने अमन की बात सुनी. उसकी बातें रितिका को शूल की तरह चुभ रहे थे.
वह एक पल भी वहां नहीं रूकी. किचन में आकर रोने लगी. उसका कलेजा फटा जा रहा था. अपनी शादी को अमन जितनी आसानी से गलती बता रहा था, वह रितिका को बर्दाश्त नहीं हो रहा था. वह खाना बनाने के लिए गैस जला चुकी थी, लेकिन गैस में उतनी आंच नहीं थी, जितनी उसके दिल में थी.

तभी अमन की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ. कहां खोई हो, जल्दी करो, बुआ को खाना चाहिए. खाने की प्लेट सजाकर रितिका ने टेबल पर सजाया. आलू दम, पूरी, पापड़, खीर, सलाद. इतना खाना अगर वह अपने घर में बनाती, तो तारीफों के पुल बंध जाते. पापा और भैया तो ईनाम तक देते, लेकिन यहां तो बुआ पहला निवाला खाते ही चिल्ला उठी, अरे पूरी ऐसे बनती है क्या... अमन ने बुआ को रोका. इसपर वह थोड़ी शांत हुई. लेकिन बड़बड़ाना बंद नहीं किया. पहली वाली जैसी नहीं है. ना रूप में ना गुण में. जो सच है कह रही हूं, आगे तेरी मरजी. खाली प्लेट उठाते समय रितिका की आंखों में आंसू आ गये.

रात घिर आयी थी, रितिका ने बुआ के लिए बेड ठीक कर दिया और सोने के लिए अपने कमरे में चली आयी. अमन अभी अपनी बुआ से बातें कर रहा था. रितिका की इच्छा हो रही थी कि वह चीख-चीख कर रोये, लेकिन उसकी मजबूरी ऐसी थी कि वह चीख भी नहीं पा रही थी. उसके आंसू बह रहे थे.

रात को 12 बजे अमन कमरे में आया. उसने आते ही रितिका को बांहों में ले लिया. रितिका के आंखों में आंसू देखकर उसने कहा, अरे क्या बेवकूफी करती हो, बुआ-यूं ही बोलती हैं. अब गलती तो हमने की है, तो इतना तो सुनना ही पड़ेगा. अमन ने थोड़ा लाड़ दिखाया, तुमने खाना खाया? रितिका ने हां में सिर हिला दिया. अमन ने उसे बांहों में भर लिया.

रितिका ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन गिरफ्त बहुत मजबूत थी. वह विवश हो गयी. लेकिन उसने अमन का साथ नहीं दिया, उसका ध्यान तो बस उसी बात पर था, जब अमन ने कहा- ‘उससे गलती हो गयी है.’ वह सोच रही थी यह कैसी गलती है, जिसकी सजा उसे दिन के उजाले में तो कुछ और मिलती है और रात में कुछ और....

08-01-16

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