गुरुवार, 21 जनवरी 2016

सिंदूर का बोझ!

एक औरत के लिए क्या होते हैं रिश्ते? यह सवाल रितिका को लगातार खाये जा रहा था. मांग में सिंदूर डालकर एक आदमी एक औरत को अपनी प्रेयसी बनाता है या फिर दासी, वह समझ नहीं पा रही थी. शादी के वक्त लिये तमाम वचन उसे तो याद हैं, फिर अमन क्यों भूल गया? अमन की चाहत हमेशा यह तो रहती है कि वह उसे प्रेयसी बनकर खुश रखके, लेकिन वह सिंदूर की मर्यादा भूल गया.

क्यों ना तो उसने धार्मिक आयोजनों में, ना निर्णयों में उसे शामिल किया. क्यों वह यह भूल गया कि अब उसे किसी और की तरफ ध्यान नहीं देना है, क्यों वह भूल गया कि वह उसकी पत्नी है, जिसका पालन- पोषण उसे करना है.यह तमाम एेसे सवाल थे, जो रितिका को परेशान कर रहे थे.

रितिका ने वह सबकुछ किया, जो अमन ने उससे करने को कहा, फिर आज एेसी क्या बात हो गयी कि वह उसे अकेला छोड़ गया. बड़ी निष्ठुरता के साथ आज अमन ने उससे यह कह दिया, मैं तुम्हें साथ नहीं रख सकता. लेकिन क्यों? रितिका ने तिलमिला कर पूछा था? अमन ने कहा, बस मेरी मजबूरी है, मैं अब तुम्हें साथ नहीं रख सकता. लेकिन क्यों रितिका ने अमन को झकझोर कर पूछा? अमन-क्योंकि मां-पापा ऐसा ही चाहते हैं. बिन जल मछली की तरह रितिका छटपटा गयी, लेकिन मैं कैसे रहूंगी.? रितिका के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था अमन के पास. वह चुप रहा. रितिका ने अपना हक मांगा, पत्नी हूं तुम्हारी. ऐसे कैसे छोड़ जाओगे, मुझे. अमन नहीं माना, कहा जाना पड़ेगा. रितिका ने सिंदूर का वास्ता दिया. लेेकिन अमन नहीं माना. रितिका ने कहा, मर जाऊंगी, तुम्हारे बिना. अमन -मैं भी नहीं जी पाऊंगा. रितिका उससे लिपट गयी, फिर क्यों जा रहे हो. क्यों आज फिर सीता को वनवास जाना पड़ेगा? अमन ने खुद को रितिका की बांहों से अलग किया, अगर वनवास पसंद नहीं, तो छोड़ दो मेरा साथ. बांध कर नहीं रखा है, मैंने. आजाद हो, कहीं भी जा सकती हो. लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता. रितिका अमन के कदमों में गिर गयी, मत करो ऐसा. पत्नी हूं तुम्हारी. अमन-इनकार नहीं है मुझे लेकिन अब तुम्हारे-मेरे रास्ते अलग हैं.
यह कहकर चला गया था अमन, फिर कभी वापस ना आने के लिए. एक बार तो रितिका के जी में आया कि कूद मरे कहीं जाकर. लेकिन फिर उसने हिम्मत जुटायी, नहीं इतनी कमजोर नहीं है, रितिका. मैं अमन को यूं नहीं जाने दूंगी. वह ऐसे कैसे मुझे बर्बाद करके चला जायेगा. रितिका ने खुद से यह वादा किया कि वह खुद को इतना मजबूत करेगी कि अमन को उसके पास वापस आना होगा. खुद से किये वादे के बाद रितिका ने सबसे पहले फिर से अाफिस ज्वाइन किया. आफिस ज्वाइन करने के बाद रितिका के दिन तो कट जाते थे, लेकिन रातें....उसे याद नहीं कि कितनी रातों को उसने अमन के लिए रो-रोकर बिताया. कभी उसे कॉल किया, तो उसने बिजी होने की बात कहकर उससे बात नहीं किया या फिर कभी कॉल पिक ही नहीं किया. रितिका अब इन बातों की आदी हो गयी थी. अमन की उपेक्षा ने रितिका के व्यक्तित्व को ही बदलकर रख दिया.
पूरे दिन हंसने-खिलखिलाने वाली रितिका अब शांत गंभीर हो गयी थी. उसे दुख और सुख के बीच का अंतर झकझोरता नहीं था. आंखें भी सूख गयीं थीं. आंसू नहीं निकलते थे.
लेकिन उसे अब भी विश्वास था अमन उसके पास वापस आयेगा. हर दिन जब वह आफिस जाने के लिए तैयार होती, तो सिंदूर से अपनी मांग इस विश्वास से भरती कि अमन वापस जरूर आयेगा. भले ही उसे अपने इस विश्वास पर भरोसा नहीं रह गया था. उसे लगता वह तो ‘साहब बीवी और गुलाम’ फिल्म की छोटी बहू(मीना कुमारी) हो गयी है, जो अपने पति को अपने पास वापस लाने के लिए भूतनाथ (गुरुदत्त) से मोहिनी सिंदूर मंगाती है. लेकिन कोई मोहिनी सिंदूर और व्रत-त्योहार  अमन को रितिका के पास वापस नहीं ला सका.
चूंकि रितिका ने रिश्ते की डोर को कभी ढीला नहीं छोड़ा, इसलिए कभी-कभार अमन उससे मिलने आ जाया करता था. लेकिन वह मुलाकात एक पति और पत्नी की नहीं होती थी. वह दो अनजानों की तरह मिलते और फिर जुदाई. अमन को रितिका की तड़प कभी दिखाई नहीं देती थी. उसपर किस चीज का फितूर था और वह क्यों उसे छोड़ गया था, यह बात रितिका कभी समझ नहीं पायी.
एक दिन बाजार में रितिका को अमन की एक परिचित मिली. रितिका उससे बात करना नहीं चाहती थी, लेकिन औपचारिकता वश उसने उस महिला से बात की. दूसरों की फटे में पांव डालने की लोगों को आदत होती हैं, सो उसने कहा-‘ बड़ा बुरा है अमन. उसने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया. रितिका चौंक गयी. इसे क्या मालूम है. उसने पूछा-मतलब. उसे तंज करने का एक और मौका मिला. मतलब तुम्हें छोड़ किसी और को ले आया. मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा करेगा. अब तो उसे अपना दोस्त कहते मुझे शर्म आती है.’
रितिका ने उसे टोकते हुए कहा‘ यह हमारा निजी मामला है. ऐसे कैसे तुम सबके सामने... मेरे पति के बारे में अनर्गल बातें  कर रही हो.
इसपर वह और तुनक गयी और चिल्लाकर कहा, मैं तो तुमसे सहानुभूति दिखा रही थी. वरना यह जो सिंदूर तुम्हारी मांग में है, वह अब तुम्हारा नहीं रहा. वेबवजह इस बोझ को ढो रही हो. मुझे क्या. इतना कहकर वह रितिका के सामने से चली गयी.
लेकिन रितिका के कानों में उसके शब्द गूंज रहे थे. रितिका की आंखें सूनी थीं, लेकिन कई सवाल उसमें एक साथ तैर रहे थे. घर पहुंचकर वह सीधी अपने कमरे में गयी. बैग रखकर वह आइने के सामने खड़ी हो गयी, उसने खुद को निहारा और खुद से सवाल किया-क्या सचमुच मेरा सिंदूर बोझ है?

रजनीश आनंद
21-01-16

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