मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

ममता की डील

मातृत्व का अहसास किसी औरत को किस हद तक रोमांचित कर सकता है, इस बात को रितिका ने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था. लेकिन उसके जीवन में यह सुख आने से पहले ही उसके प्रेम की बगिया उजड़ गयी. वह अपने जीवन के सफर में अकेली थी. एक दिन वह आफिस से घर लौट रही थी, उसने अॅाटो में अपनी बगल वाली सीट पर बैठी एक महिला को देखा. वेशभूषा से वह निम्मवर्ग की महिला लग रही थी.
लेकिन उसके चेहरे पर अजीब सी खुशी थी, मानो किसी चीज का तेज हो. उसका बच्चा उसकी गोद में बैठा था. वह बच्चे के साथ कुछ-कुछ बोलकर खेल रही थी. उसके चेहरे के तेज को देख रितिका उसकी ओर आकर्षित हो गयी और बात की पहल की. बातों-बातों में उसे पता चला कि उस औरत का पति नहीं रहा, वह तो बस उसके प्रेम की निशानी को सीने से लगाये जी रही है. औरत की उम्र 25-26 साल से ज्यादा नहीं थी.

उसने उस औरत से पूछा, कैसे जीओगी पूरा जीवन अकेले. उस औरत ने हंसते हुए जवाब दिया, यह बच्चा है ना मेरी जिंदगी. जब यह बच्चा मेरे सीने से चिपकता है, तो मुझे ऐसा महसूस होता है, जैसे मुझसे खुशनसीब औरत दुनिया में कोई नहीं. फिर मैं अकेली कैसे. यह तो है मेरे सुख-दुख का साथी. फिर उस औरत ने रितिका की तरफ देखा और पूछा-तुम्हारे बच्चे नहीं है का? रितिका को इस सवाल की उम्मीद नहीं थी, वह असहज हो गयी और घबरा कर कहा, नहीं. वह औरत बोली, तो कर लो, जिंदगी बदल जायेगी.

अॅाटो से उतरते वक्त वह फिर रितिका को बोली, मेरी बात का ध्यान रखना, फिर तुम्हारे चेहरे पर भी खुशी होगी, ऐसा मुंह लटका नहीं रहेगा, तुम्हारा. यह कह वह खिलखिला पड़ी. मुस्कान तो रितिका के चेहरे पर भी आ गयी थी.

घर पहुंच कर वह बहुत परेशान रही, फिर अचानक उसने अपना फोन उठाया और अमन का नंबर डायल किया. उसने फोन पर सिर्फ इतना ही कहा, बहुत जरूरी काम है, जितनी जल्दी आ सको आ जाओ. कुछ देर में अमन रितिका के सामने था. लेकिन आते ही उसने रितिका से कहा, इतना हल्ला क्यों मचाती हो, आराम से भी बात हो सकती थी. अब कहो क्या हुआ, क्यों मरी जा रही थी. रितिका-बात जरूरी थी, इसलिए बुलाया.
अमन-ठीक है, बको.
रितिका-आज तुम्हें फैसला करना होगा. अमन -किस बात का फैसला? रितिका-तुम मुझे अपने साथ लेकर चलो. इस बार अमन चिल्लाया, तुम यह कहते हुए मर भी जाओगी ना, तब ही यह संभव नहीं. तो तुम मेरे पास आ जाओ, यह कहते हुए रितिका ने अमन को बांहों में भरने की कोशिश की. लेकिन उसने उसे रोकते हुए कहा, यह संभव नहीं.
अब रितिका तिलमिला गयी थी, उसने कहा, जो तुम्हारी मरजी होगी, सिर्फ वही होगा क्या? मेरी इच्छा का क्या? क्यों शादी की थी मुझसे. अमन ने कहा, मुझे अच्छी लगी थी, इसलिए शादी थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गयीं हैं. हमारे रास्ते अलग-अलग हैं. लेकिन मैंने तो साथ चलने के लिए हाथ थामा था, रितिका ने कहा, तुम यूं हाथ झटककर चले जाओगे, मालूम ना था. मैं कैसे जीऊंगी, कभी सोचा है, तुमने?

अमन ने कहा, सोचता हूं, लेकिन क्या करूं. मैं मजबूर हूं. तुम्हारी मजबूरी की सजा मैं क्यों झेेलूं? रितिका ने कहा, अमन थोड़ा नरम हुआ और कहा, अच्छा तुम ही बताअो मैं क्या कर सकता हूं, तुम्हारे लिए? मैंने तुम्हारी जिंदगी खराब की है, इसका अफसोस है मुझे, बोलो क्या चाहती हो.

रितिका ने अमन की आंखों में आंखें डालकर कहा, मुझे बच्चा चाहिए. अमन उसकी बात सुनकर चौंका. लेकिन मैं बच्चा नहीं चाहता. अमन की यह बात रितिका को चुभ गयी. उसने अबतक यही देखा और सुना था कि पति-पत्नी बच्चे का सपना साथ देखते हैं और उसके आने से खुशी का इजहार करते हैं. लेकिन उसके साथ ऐसा कुछ नहीं हो रहा था. उसे बच्चे के लिए पति से लड़ाई करनी पड़ रही थी. लेकिन उसने खुद को संभालते हुए मजबूती से कहा, सिर्फ तुम्हारे चाहने से क्या होता है. उसने अपनी ममता के लिए डील करने का फैसला किया और अमन से कहा, तुम या तो मुझे अपने साथ मुझे ले चलो या फिर तुम्हें मुझे बच्चा देना होगा.

रितिका की आवाज में इतना दृढ़ निश्चय था कि अंतत: वह मान गया. रितिका के आंखों में खुशी थी, क्योंकि उसकी डील पक्की हो गयी थी और उसे उस औरत का चेहरा बार-बार याद आ रहा था, जिसने उसे यह डील करने के लिए प्रेरित किया था.

डील के अनुसार अमन ने रितिका को मातृत्व का तोहफा दिया. जैसे ही उसे यह महसूस हुआ कि उसके अंदर कोई जीवन है, वह भागी-भागी डॉक्टर के पास गयी. डाॅक्टर ने जब उसकी खुशी को कंफर्म किया, तो रितिका को ऐसा महसूस हुआ कि वह खुशी से रो पड़ेगी. मां बनने का अहसास जब इतनी खुशी देता है, तो जब उसकी गोद में उसका अंश साकार स्वरूप में होगा, तो कैसा महसूस होगा,यह सोच वह रोमांचित हो रही थी.

उसे लगा वह अपनी खुशी अमन के साथ बांटें, उसे बताया कि उसे पापा कहने वाला उसके अंदर पल रहा है. वह इतनी खुश थी कि उसने अमन की सारी गलतियां भी माफ कर दी. उसका बच्चा, यह सुख उसे बेचैन कर रहा था.

वह भागकर अमन के पास गयी, उसे सारी बातें बतायी, अमन ने मुस्कुरा कर सिर्फ इतना ही कहा, चलो तुम्हारी इच्छा पूरी हो रही है. अब खुश रहो और मुझसे अब कोई उम्मीद मत करना. अमन की बात रितिका को चुभ गयी. उसे लगा था कि वह खुशी से पागल हो जायेगा, उसे बांहों में भर लेगा. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

अमन ने उससे स्पष्ट कह दिया, तुमने बच्चे की चाह की, मैंने पूरी कर दी. लेकिन मैं इसके परवरिश की जिम्मेदारी नहीं लूंगा. मैं किसी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं लूंगा. बच्चे की चाहत तुम्हारी थी मेरी नहीं, यह बात तुम याद रखना. अमन की बातें रितिका को कड़वी तो लगीं, लेकिन ना जाने क्यों उसे यह भ्रम हो गया था कि अमन बदल जायेगा. अपने बच्चे का चेहरा देख बदल जायेगा...

अमन से मिलकर जब वह वापस जा रही थी, उसने अपने बच्चे से वादा किया-तू मेरा अंश है. तुम्हारी सुरक्षा और परवरिश की सारी जिम्मेदारी मेरी. मैं कभी तुम्हारे चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दूंगी.
रितिका अब अपना हर सुख-दुख अपने बच्चे से बांटने लगी. उसकी आंखों में जब आंसू आते, तो उसे महसूस होता कि उसे कोई आवाज दे रहा हो-मां मत रोओ, जिस मैं दुनिया में आऊंगा, उस दिन अपनी हाथों से तुम्हारे आंसू पोछूंगा.

डॉक्टर के पास जब वह रेग्यूलर चेकअप के लिए जाती, तो उसे अमन की कमी बहुत खलती, क्योंकि वहां सारी औरतें अपने पति के साथ आतीं थीं, जो उन्हें सहारा देता और सहेजता रहता था. उनका प्यार देख रितिका की आंखें नम हो जाती, लेकिन फिर वह खुद को संभालती, उसे खुशी देने वाला उसके साथ है. धीरे-धीरे समय बितता गया, रितिका हमेशा अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती और आखिरकार वह दिन आ गया, जब उसका अंश साकार स्वरूप में उसके सामने आने को बेचैन हो गया.

उसे उम्मीद थी कि अमन आयेगा, वह आया भी. लेकिन बच्चे के पिता की तरह नहीं, बल्कि उस व्यक्ति की तरह, जिसके साथ उसने डील की थी. जिसे सिर्फ यह जानना था कि डील साकार हुआ या नहीं. रात घिरते ही वह चला गया. दर्द से छटपटाती रितिका की आंखों ने उससे विनती की, मत जाओ. कम से कम उसका चेहरा तो देख लो, लेकिन अमन की आंखों में उसे अपने बच्चे को देखने की लालसा रितिका को दिखाई नहीं दी.... और वह चला गया.
रात लगभग 12 बजे कृष्ण कन्हैया की तरह रितिका का कान्हा अवतरित हुआ और जब उसकी आवाज रितिका के कानों में पड़ी, तो वह जार-जार रो पड़ी. उसके बच्चे को आशीर्वाद देने वालों की कमी नहीं थी, लेकिन उसका अपना पिता अभी तक नहीं आया था. सुबह से रितिका उसकी राह देख रही थी, लेकिन वह नहीं आया था. हालांकि सूचना उसे थी.

शाम को अमन आया, उसने कुछ देर तक बच्चे के सिर पर हाथ रखा. रितिका को लगा अब सबकुछ बदल जायेगा. बच्चे का चेहरा देख अमन उसे छोड़कर नहीं जायेगा. कमरे में दोनों अकेले थे, उसने अमन को पास बुलाया और कहा-यह बिलकुल तुम पर गया है. अमन ने हां में सिर हिलाया. रितिका ने कहा, खुशी नहीं हुई इसे देखकर, बहुत खुशी हुई, अमन ने कहा. फिर उसने कहा- चलो तुम्हारी चाहत पूरी हुई. अब तुम इसके साथ खुश रहो. मैं जा रहा हूं. रितिका ने अमन का हाथ पकड़ लिया. आज की रात तो मत जाओ. आज इसके जिंदगी का पहला दिन है, आज मत जाओ. अमन ने रितिका से अपना हाथ छुड़ाया और कहा, नहीं मुझे जाना होगा.

यह कहकर अमन ने रितिका के सिर पर हाथ फेरा और उठकर चला गया. उसके जाने के बाद रितिका फफक पड़ी. लेकिन तभी उसे अहसास हुआ कि उसने तो ममता के लिए डील की है, फिर रोना कैसा. रितिका ने अपने बच्चे को गोद में उठाया और खिलखिला उठी.

रजनीश आनंद
03-02-2016


  

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