बुधवार, 13 दिसंबर 2017

मैं देखना चाहती हूं...

प्रिये,
जानते हो मेरा जी करता है, तुम्हें पास से देखने का. बहुत मन करता है कि देखूं तुम्हें कैसे दिखते हो तुम जब गीले बालोंं में करते हो कंघी. मैं समेटना चाहती हूं तुम्हारे बालों का पानी अपने आंचल में, ताकि सीने पर जब रखूं उस आंचल को तो भीग जाये तनमन. मैं खाना चाहती हूं एक प्यार की रोटी का निवाला, तुम संग. जब तुम खाओ बैठकर सुबह का नाश्ता. तुम्हें पता है, मैं देखना चाहती हूं तुम्हें अखबार पढ़ते हुए, अपनी कुर्सी पर काम करते हुए. तब मैं हाथ फेरना चाहती हूं तुम्हारे बालोंं में और चूम लेना चाहती हूं माथा तुम्हारा. मैं इस्तरी करना चाहती हूं तुम्हारी सफेद कमीज पर, जिसे पहनकर जब तुम घर से बाहर जाओ तो लड़कियां आहें भरें, थोड़ी सी जलन तो होगी, पर मन खुश भी बड़ा होगा. मैं देखना चाहती हूं तुम्हें हंसते, खेलते, गाते , खाते और जीते. मैं देखना चाहती हूं तुम्हें पास से हर पर्दे से परे, यह प्रेम में मेरा हक है तुम पर...

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