बुधवार, 6 दिसंबर 2017

उम्मीदों का हाँर्लिक्स

जब गिलास में डालकर
दो चम्मच हाँर्लिक्स
मैं घोलती हूं तो
घोलती हूं जिंदगी में उम्मीदें
मैं दूध में नहींं, पानी में घोलती हूं
ताकि उम्मीदें खालिस रहें
उनपर ना पड़े कोई रंग
कभी -कभी अत्यधिक उम्मीदें भी
बन जाती हैं गले का फांस
इसलिए तो पारदर्शिता पसंद है
मुझे उम्मीदों की
वैसे भी औरतें कम में सुकून पा जाती हैं
पर औरतों की उम्मीदें सतही नहीं होती ं
एक गहरापन लिये होती हैं
मैंने तो कइयों को देखा
एक आलिंगन, एक चुंबन को
जीवन मान जीते
मै रोज घोलती हूं दो चम्मच हाँर्लिक्स
ताकि कभी तो रूमानियत के
एहसास के साथ, चाँकलेट फ्लेवर लिये
आओ तुम और मेरे जिह्वा पर धर दो
उम्मीदों की गरमाहट, जो घुल जाये बिलकुल
उम्मीदों का शहद बनकर....

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