बुधवार, 26 अगस्त 2020

सोने की चेन

वो सोने की चेन मैंने बेच दी थी सुनार के पास
तुम्हें याद है ना, तुम इतना ही कह पाये थे, इसे क्यों? 
लेकिन मैंने तुम्हारे क्यों का उत्तर दिये बिना थमा दिया था
उस चेन को सुनार की हाथों में, मेरे जितने जेवर थे
उनमें से सबसे खरा सोना साबित हुआ था, वह चेन
20 हजार में बेच, मैंने पैसे भी पकड़ा दिये थे तुमको
ताकि तुम दावा ना कर सको मेरी तथाकथित स्वंतत्रता पर
मैंने देखा है तुम्हारी नजरें दबोचना  चाहती है मुझे आज भी
दर असल जिसे मैंने प्रेम का आलिंगन समझा था
वह तो जकड़न थी उस तकिये की जो गला घोंटना चाहता था 
एक स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व का, मिटाना चाहता था उसकी आत्मा को
शरीर तो स्त्री का अपना होता ही नहीं, उसपर तो स्टांप लगा होता है समाज का
हाँ उसकी आत्मा जीवित होती है, जिसका गला घोंटने के लिए
तुमने पहनाई थी मुझे सोने की चेन, लेकिन उसकी गिरफ्त से निकल गयी थी मैं, शरीर लहूलुहान हो तो क्या, आत्मा जीवित थी
इसलिए मैं बेच आयी थी तुम्हारे साथ ही वो सोने की चेन... 

रजनीश आनंद

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