शनिवार, 29 अगस्त 2020

टिकुली-सिंदूर पर नहीं, इन मुद्दों पर लड़े जंग

पिछले कुछ दिनों से स्त्री कैसी हो इसपर चर्चा आम है। सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव नहीं रही पर देखा जरूर। तीज के समय से शुरू हुआ यह द्वंद्व अब भयावह होता दिख रहा है। रिया चक्रवर्ती के मामले ने इस बहस को और बढ़ाया और कड़वाहट ला दिया है। सबसे पहले तो हम औरतों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब आप अपने हक और अधिकारों की जंग लड़ रही हैं तो एकजुट रहें अकेले कोई सेनापति युद्ध नहीं जीत सका है, सेना की जरूरत होती ही है। तो बात मुद्दों की करते हैं रिया चक्रवर्ती तमाम स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं कि उनके लिए हम आपस में लड़ मर जाये ं। सुशांत सिंह के मामले में अगर रिया दोषी है तो उसे सजा मिलेगी, और जरूर मिलेगी। लेकिन उस एक लड़की को लेकर तमाम माडर्न लड़कियों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। ऐसी कई घटनाएं हमारे सामने होती हैं लेकिन हम उसकी चर्चा भी नहीं करते, यह हाईप्रोफाइल केस है इसलिए मीडिया लहालोट हो रहा है। बेशक जिस परिवार ने बेटा खोया है हमें उसके साथ खड़े होना चाहिए। सुशांत हमारे इलाके के थे इसलिए यह हमारा फर्ज बनता है कि हम उस परिवार के दुख में शामिल हों। अबतक जो जानकारी सामने आयी है वह चौंकाने वाली है। 
लेकिन कुछ बात मुझे पच नहीं रही मसलन रिया सुशांत के पैसों पर ऐश करती थी। अरे भाई वे लिव इन में रहते थे, और जब दो लोग प्रेम में होते हैं साथ होते हैं तो एक दूसरे पर खर्च करते हैं।लेकिन रिया ने अगर प्रेम का फायदा उठाया है तो यही कहूंगी कि सबको अपने कर्म का फल इसी दुनिया में भुगतना पड़ता है। हमारे देश का कानून उसे सजा देगा। रिया जिस प्रेम का दावा कर रही हैं वह व्यक्ति गत तौर पर मुझे इसलिए झूठा लग रहा है कि अगर प्रेम था तो उसे मरने के लिए क्यों छोड़ दिया। लड़ाई क्या प्रेम से ऊपर है, वह भी तब जब आपका साथी बीमार हो, जैसा कि रिया कह रही हैं। 
खैर मेरा यह कहना है कि रिया को गरिया कर महिलाएं आपस में क्यों भिड़ रही हैं। रिया ऐसे सोसाइटी से है जहाँ कोई महिला पीड़ित या अधिकारों से वंचित नहीं है। अधिकारों की जंग वंचित महिलाओं को लड़नी पड़ती है। रिया या आलिया को नहीं। 
तीज, जीतिया और छठ व्रत हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। अगर कोई  व्रत रखकर अपना प्रेम और केयर प्रदर्शित करता है तो करने दें, इसमें क्या बुरा है। श्रृंगार करके स्त्री मन प्रसन्न होता है होने दीजिए। इसमें आरोप प्रत्यारोप क्या। बंगाल की सारी कम्युनिस्ट महिलाएं दुर्गा पूजा के समय मार्क्स वाद भूलकर वही करती हैं जो उनकी परंपरा है, तो बिहारी औरतें तीज, छठ पर नाक से सिंदूर क्यों ना लगायें। किसी की भावना आहत ना करें। वैसे भी आजकल के पति पत्नियों का खास ख्याल रखते हैं। खैर मेरा कहना यह था कि जिस चीज से आप सहमत नहीं वह गलत है ऐसा नहीं है। वैसे भी हमें बात लैंगिक समानता की करनी चाहिए। स्त्री शिक्षा, स्वास्थ्य, काम के अवसर और निर्णय के अधिकार पर बात करनी चाहिए। स्त्री को देह से इतर एक इंसान के रूप में स्थापित करने की जंग करनी चाहिए तो हम टिकुली-सिंदूर पर भिड़े हुए हैं, अरे समझिए यही हमारी हार है। 

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