सोमवार, 31 अगस्त 2020

बीज

माली सहेजता है, धरती की कोख में
पल रहे उस बीज को जिसे बनना है वृक्ष
अंकुरण से प्रस्फुटन तक वह झेलता है
प्रसव वेदना, मौन चीख के साथ
वह कभी बाड़ लगता है तो 
कभी जंगली घास को उखाड़ता है
शिशु पौध की चिंता में वह कभी कभी
मुखर भी हो जाता है, क्योंकि पौधे की सुरक्षा जरूरी है
वह कभी पानी से सींचता है, 
तो कभी कीटनाशक का छिड़काव करता है
तंदुरुस्त होता पौधा उसकी हिम्मत बढ़ाता है
उसकी सलामती के लिए करता है पूजा पाठ
व्रत, उपवास की श्रद्धा और तलवार का जोश भी है उसके पास
आज जबकि लोग उस वृक्ष के समक्ष आम्रबौर मांगने आये हैं
चर्चा सिर्फ उच्च कोटि के बीज की है, माली के समर्पण और त्याग की नहीं... 

रजनीश आनंद

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