रविवार, 23 अगस्त 2020

धीरज और सृजन

धीरज और सृजन औरतों के ऐसे शस्त्र हैं
जिनका मुकाबला करना ब्रह्मास्त्र के लिए भी संभव ना था
तभी तो अश्वत्थामा का प्रहार खाली गया था
जानते थे कृष्ण औरतों के इस शस्त्र को
तभी तो बदल दिया था उन्होंने परीक्षित का भाग्य
स्त्री धीरज रखती है, अश्रु का सहारा लेकर
वह जानती है शस्त्र घातक हैं मानव समाज के लिए
जो उपहास करते हैं अश्रु का
उन्हें रोकर देखना चाहिए, यह मात्र कुटिलता नहीं 
सहजता है सबकुछ संवारकर, सहेजकर रखने की
स्त्री सबकी चिंता करती है, इसलिए वो रोती है
धीरज धरती औरत तो बिकती आयी है बाजारों में
समाज उस सृजन को दरकिनार कर रहा है
जो औरतों के पेट में नहीं, समाज की कोख में पल रहा
लिंगभेद ने छीना है बच्चियों और उसकी मुस्कान को
फिर भी औरत धैर्य से सृजन कर रही है अनगिनत अश्वत्थामा का... 

रजनीश आनंद

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