औरतों की जिंदगी मेंं
ढांढस की तरह हैं आंसू
जिनसे सराबोर हो
वह संभल जाती है
झेल लेती है हर
वो घाव, चाहे नये हों
या रिसते रहें हों जख्म बन
आंसू की झील में तैरकर
औरत बन जाती है पारंगत मांझी
नमकीन आंसू बनाये रखते हैं
नमक जिंदगी में
इसे कमजोरी की निशानी ना समझें
स्वार्थपरक इस दुनिया में
जब टूटते हैं भ्रम और विश्वास
तो आंसू होते हैं सच्चे साथी
तो मर्दों कभी रोकर देखो
त्रिया चरित्र के हथकंडे नहीं हैं सिर्फ ये
निर्मल भाव में भी बहते हैं आंसू...
रजनीश आनंद
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