शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

प्यार का कमरा

प्यार के कमरे की बहुत चाह है मुझे
जब भी कागज पर उसे उकेरा
प्यार के लाल रंग से उसे भर दिया करती हूं
एक छोटा सा सुंदर कमरा
जहां करीने से सजा होगा हमारा प्यार
जैसे बगिया में सजे होते हैं फूल
एक प्यारी सी खिड़की होगी
जिससे सटा होगा हमारा पलंग
उस पलंग पर बैठ मैं
देखूंगी बाहर आते-जाते लोगों को
करूंगी तुम्हारा इंतजार
हमारी बगिया के फूलों को रौशनी
तब मिलेगी जब तुम्हारे आने से
सूरज आकाश में चमकेगा
जानते हो ये ऐसे फूल हैं
जिनमें मौजूद है खुशबू तुम्हारे तन की
जो मदहोश करते हैं मुझे
इस कमरे की मलिका मैं
जब करना चाहती हूं श्रृंगार
तो रूप निहारने के लिए
आईना बनती हैं आंखें तुम्हारी
होठों की लाली तब खिलती है
जब हौले से तुम्हारी हाथोंं का
स्पर्श मिलता है इन्हें
पैरों में  पायल तब छनकते हैं
जब दरवाजे पर दस्तक देते हो तुम
इस कमरे की हर दीवार पर लिखा है
नाम मेरा और तुम्हारा
जिसे देखने के लिए दो जोड़ी आंखें काफी नहीं
इस कमरे की होली,दीवालीऔर ईद
तो तब होती है जब तुम बांहों में भरते हो मुझे...
रजनीश आनंद
14-04-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें