गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

मेरी जगह, तुम्हारे दिल में

हां मैं चाहती हूं थाम कर हाथ
तुम्हारा चलना, तो क्या हुआ
कि कभी महसूस ना कर पायी
गरमाहट तुम्हारी हथेलियों की
पर जिंदा है मेरे अंदर जिजीविषा
उन हथेलियों के बीच समाकर
तुम्हारा मुख तकने की
उन आंखों में तलाश करनी है
मुझे अपनी जगह,जिसमें सिमटी है दुनिया मेरी
हां , इन आंखों में है मेरी जगह
साफ दिखता है मुझे जब भी
मैं डूबकर इनमें देखती हूं
मेरी तसवीर साफ नजर आती है...
रजनीश आनंद
13-04-17

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