गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

...जो गुलाब दिया तुमने

आज तुमने जो गुलाब दिया मुझे
उसे हाथ में लेकर देखा मैंने
उसकी खूबसूरती में तो कोई
कमी नहीं आयी थी
ना ही उसकी खुशबू ढली थी
तुम्हारे हाथों से स्पर्श का
सुकून भी लेकर आया था फूल
फिर ऐसा क्या हुआ कि
उसके स्पर्श में तुम्हारी
छुअन महसूस ना हुई
खुशबू में तुम्हारी महक ना थी
हमारे सजीव प्रेम का साक्षी
प्रतीत नहीं हुआ मुझे
लगा जैसे किसी निर्जीव
हो चले पौधे का फूल हो
मुरझाया सा.
रिश्ते का पौधा भी पनपता है
सही रखरखाव और प्रेम के बीच
उपेक्षा,तिरस्कार से उजड़़ जाती है हर बगिया
फिर मुरझाये फूल शेष रहते हैं
रंगहीन, गंधहीन
यह बताने को कि कभी गुलजार था ये चमन
यही सोच मैंने उस गुलाब को
रख दिया अपनी जिंदगी की
उस किताब के बीच,जिसके पन्ने अब मैं नहीं पलटती...
रजनीश आनंद
20-04-17

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