जीते तो हम तब भी थे जब
चांद आकाश में दौड़ता नहीं था
पर अब तो चांद अठखेलियां करता है
कभी पूरे चेहरे के साथ रौशन रहता है
तो कभी दूज का चांद बना फिरता है
मैं भागना चाहती हूं संग उसके
लेकिन मेरी और उसकी रफ्तार कहां मेल खाती है
वो आकाशवासी मैं धरती निवासी
पर कुछ तो है जो एकसार रखती है हमें
मैंने कई दफा पूछा उससे
बोलो तो मैं क्यो भागती हूं जानिब तुम्हारे
क्या होगा इसका हासिल?
कहता वो कुछ नहीं, सिवाय इसके
कि अब तो जीवन भर के लिए है यह मैराथन
भागो क्योंकि भागना ही जिंदगी है
उसकी जलती नजरें, दूर से भी देती हैं गरमाहट
और मैं भागना शुरू कर देती हूं
बिना सोचे कि क्या होगा इसका परिणाम
वो मुस्कुराता है और मैं उन दिनों को पीछे छोड़ आती हूं
जब चांद आकाश में दौड़ता नहीं था...
रजनीश आनंद
07-04-17
चांद आकाश में दौड़ता नहीं था
पर अब तो चांद अठखेलियां करता है
कभी पूरे चेहरे के साथ रौशन रहता है
तो कभी दूज का चांद बना फिरता है
मैं भागना चाहती हूं संग उसके
लेकिन मेरी और उसकी रफ्तार कहां मेल खाती है
वो आकाशवासी मैं धरती निवासी
पर कुछ तो है जो एकसार रखती है हमें
मैंने कई दफा पूछा उससे
बोलो तो मैं क्यो भागती हूं जानिब तुम्हारे
क्या होगा इसका हासिल?
कहता वो कुछ नहीं, सिवाय इसके
कि अब तो जीवन भर के लिए है यह मैराथन
भागो क्योंकि भागना ही जिंदगी है
उसकी जलती नजरें, दूर से भी देती हैं गरमाहट
और मैं भागना शुरू कर देती हूं
बिना सोचे कि क्या होगा इसका परिणाम
वो मुस्कुराता है और मैं उन दिनों को पीछे छोड़ आती हूं
जब चांद आकाश में दौड़ता नहीं था...
रजनीश आनंद
07-04-17
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