गुरुवार, 2 नवंबर 2017

नींद

आज तो नींद बहुत
प्यारी मालूम होती है
तुम्हारी मुस्कान की तरह
इसलिए तो सहेजा है मैंने
इसे अपने पलकों पर
लेकिन उफ्फ! यह मुस्कान
फिसल आयी पलकों से सीने में
और करा गयी तुम्हारे स्पर्श का एहसास
हां-हां लेकिन याद कराने की जरूरत नहीं
पता है मुझे भलीभांति
तुम कहीं नहीं हो
लेकिन यह क्यों भूलते हो?
तुम्हारी नजरें हर वक्त
साथ चलती हैं मेरे
चांद बनकर, जहां और
जिस ओर जाऊं मैं
अकेला पन नहीं सालता मुझे
क्योंकि तुम ही तो कहते हो
तुम मेरे और मैं तुम्हारी हूं...

रजनीश आनंद
02-11-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें