शनिवार, 11 नवंबर 2017

स्वेटर

हो चुकी ठंड की शुरुआत
पंछी की भांति नीड़ की ओर
लौटते हुए शाम को महसूसा
जब टकराया एक सर्द झोंका
दिल ने कहा मुझसे सिकुड़े तुम
मन ने एक सपना बुना, क्यों ना
बुन लूं मैं तुम्हारे लिए एक स्वेटर
नीले रंग का, सफेद बाँर्डर वाला
सच बहुत फबेगा तुम पर
नीले आकाश की तरह तुम
ऊन के लच्छों से गोले
बनाते-बनाते प्रेम की ऊष्मा
बन गयी गरमाहट की वजह
सलाइयों पर चढ़ा फंदा
मैं बुनती हूं ख्वाब, तुम संग
कभी उलझ भी जाते हैं फंदे
तब सुलझाते वक्त देती हूं उलाहना
आंखें मटकाकर मैं, पर
डूब कर कभी देखो तो इनमें
उलाहनों में शिकायत नहींं, प्रेम है
फंदों पर फंदा चढ़ाती मैं
पूरा कर देती हूं मैं सपनों का स्वेटर
इस उम्मीद में कि तुम कहोगे कभी
प्रिये, बहुत सुंदर बुना यह स्वेटर
लाओ पहना दो मुझे...

रजनीश आनंद
11-11-17




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