सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

एक चम्मच मुस्कान...

रात नींद जैसे पराई हुई
लाख मिन्नतें की लेकिन
आगोश में नहीं लिया उसने
जैसे मुझे तड़पाने की हो ठानी
थक कर मैंने भी उसे
परास्त करने का निर्णय किया
भर लिया चाय की केतली में
एक चम्मच तुम्हारी मधुर मुस्कान,
एक चम्मच शरारती आंखों की जुबिश
और ढेर सारी तुम्हारी अनोखी बातें
सोफे पर बैठ मैंंने जहां शुरू किया
चाय पीना, पाया, इस चाय की हर चुस्की में था
एक अपनापन,प्यार और सुकून
वो सुकून जो नींद के खजाने में भी नहीं है मयस्सर
तुम्हारी बातों का असर दिख रहा
नींद आंखों से गायब थी, और मैं
पूरी ऊर्जा से आसमान के कैनवास
पर उतारना चाहती थी ,तुम्हारी बातें
अनोखी बातें जो प्राणवायु थे मेरे लिए....
रजनीश आनंद
31-10-2017

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