शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

प्रेम की फुलकियां

ना तो मेहंदी रचाई
ना महावर लगाया
मैंने उसके नाम का
पर, यह सच है मेरे ईश्वर
हर सांस में उसका नाम लिया
और इतना जरूर किया
कि जब भी उसे चूम लेने
का दिल चाहा
उसकी बातों की सीढ़ी पर सवार मैं
आकाश में टंगे चांद को
दोनों हाथों से थाम, उतार लायी
भर कर उसे बांहों में
सुकून से खूब रोई भी
उसके सीने की सुगंध घुली है उसमें
अपने वक्ष के बीच रख चांद को
खूब बतियायी भी मैं
उसकी आंखों में है
वही चमक जो दिखती है
मेरे प्रिये की आंखों में
सहसा लगता है भूखा है वो
तो चूल्हे पर चढ़ा प्रेम का तवा
मैं बनाती हूं प्रेम की  फुलकियां
अपने हाथों से खिलाती भी हूं
प्रेम की रोटी चांद को
और चांद मुस्कुरा कर देखता है
बस उसकी चांदनी बिखरती जाती
और मुझे समेटती जाती है खुद में....

रजनीश आनंद
03-11-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें