गुरुवार, 30 नवंबर 2017

ओढ़कर शाँल तुम्हारे प्रेम का...

इस ठिठुरती रात में ओढ़कर
शाँल तुम्हारे प्रेम का
गरमाहट महसूस करती मैं
सोफे पर बैठ लिखना चाहती हूं
एक कवितानुमा संदेश, नाम तुम्हारे
पता है मुझे, यह डिजिटल युग है
फिर भी उस संदेश को
मैं भिजवाऊंगी डाक से
ताकि जब वह पहुंचे तुम तक
तो अपने हाथों में थाम
तुम पढ़ो उस प्रेम संदेश को
जानते हो तुम? तुम्हारे हाथ कलाकार से हैं
जो गढ़ सकते हैं अनगिनत ख्वाब साकार स्वरूप में
इसलिए तो मैं लिख रही यह संदेश तुम्हें
सुनो प्रिये, मैं हौले से नहीं
जोर से खींचना चाहती हूं तुम्हारे गाल
ताकि जब आह निकल जाये तुम्हारी
तो हौले से चूम लूं मैं उन्हें
फिर प्यार के नीले रंग में रंगा
वह स्वेटर पहनाऊं मैं तुम्हें
जिसे बुना है मैंने बड़े प्रेम से
फिर तुम्हें पिलाऊं एक कप गरम चाय
खास्ता मठरी के साथ
फिर घूम आऊं तुम संग उस साइकिल पर
जिसके सामने के डंडे पर मैं बैठ सकूं
और कर सकूं तुमसे बातें प्रेम भरी
और तुम इस गुलाबी मौसम में
मस्ती में हवा के झोकों से प्रेम को
महसूस करते हुए, चूम लो डीप नेक ब्लाज से झांकती
मेरी पीठ को, जिसे खास पहना है
मैंने तुम्हें देखकर अपने पास-इतने पास...

रजनीश आनंद
30-11-17

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें