रांची के पत्रकारिता जगत में कुछ नाम ऐसे हैं, जिनके बारे में यह कहा सकता है कि वे पाठशाला हैं, जिनमें हरिवंश सर, बलवीर सर और अनुज सिन्हा सर का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। आज अनुज सर की चार किताबों का विमोचन रांची के आर्यभट्ट सभागार में हुआ। मुझे भी कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। अनुज सर की जिन चार किताबों का विमोचन हुआ उनमें से तीन आलेखों का संकलन है और एक किताब गांधी जी पर लिखी गयी है जिसे मैं वहाँ से खरीद कर लायी।
प्रभात प्रकाशन ने तीन सौ की किताब दो सौ में दे दी, तो लगा अच्छा सौदा है। जैसा कि अनुज सर और हरिवंश सर ने अपने संबोधन में बताया था कि यह किताब एक दस्तावेज है तो इतिहास की विद्यार्थी होने के कारण मेरी रुचि किताब के प्रति बहुत बढ़ गयी थी। जैसा कि किताब के नाम से स्पष्ट है 'महात्मा गांधी की झारखंड यात्रा' यह एक ऐतिहासिक किताब है। इस किताब की भूमिका हरिवंश सर ने लिखी ही और बहुत ही बेहतरीन ढंग से उन्होंने किताब के विषय और उसके महत्व को समझाया है।
उन्होंने बताया है कि पिछले तीन साल यानी 2016-19के बीच महात्मा गांधी की खूब चर्चा हो रही हैं। पहले चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष मनाया गया, फिर 2018 में गांधी की 150वीं मनाने की शुरुआत हुई जो जारी है। इस दौरान देश और विदेश में गांधी पर काफी कुछ लिखा जा रहा है। शोध हो रहे हैं, चंपारण आंदोलन की खूब चर्चा हुई लेकिन इस आंदोलन से रांची का या यूं कहें कि झारखंड का जो संबंध है, वह मिसिंग था। उसपर कोई लिख नहीं रहा था ऐसे में अनुज सर की यह किताब सामने आयी है जिसने इस अनछुए अनकहे विषय को पकड़ा, जिसपर काफी कम लिखा गया है और जिसपर लिखना कितना कठिन है तह खुद अनुज सर ने प्रस्तावना में बताया है।
किताब 15 चैप्टर में बंटी है और गांधी जी जहाँ जहाँ गये और किससे कब मिले, कहाँ भाषण दिया। किसे पत्र लिखा सबका जिक्र है। महात्मा गांधी के पत्र को हूबहू किताब में स्थान दिया गया है। सबसे पहले महात्मा 1917 में रांची आये थे और उन्होंने मुख्य सचिव को पत्र लिखा था। ऐसे कई बेशकीमती उद्धरण भी किताब में हैं जो सहजता से नहीं मिलते।
गांधी के रामगढ़ और रांची आने के बारे में तो मुझे जान आरी थी लेकिन देवघर में उनपर हमला। कस्तूरबा का रांची आना, झरिया में सभा, कतरास में सभा। रांची में उनका बीमार होना सहित कई जानकारियां बिलकुल नयी थी।
घर पर कई काम भी थे लेकिन आज इस किताब को निपटाने का सोच रखा था और अपने पढ़ाकू मित्र से प्रेरणा लेते हुए मैंने किताब को आज ही निपटाने का सोच रखा था। 157 पेज की किताब है तो रात के 11.30 तक निपट गयी। अंग्रेजी होती तो थोड़ा ज्यादा टाइम लगता पर हिंदी है इसलिए पढ़ती चली गयी।
जैसा कि पहले ही स्पष्ट है यह किताब दस्तावेज है, विश्लेषण या आकलन नहीं है। इसमें तथ्य भरपूर मात्रा में हैं जो जिजीविषा को शांत करते हैं और जिज्ञासु लोगों को भरपेट मानसिक भोजन भी उपलब्ध कराते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें