मंगलवार, 13 अगस्त 2019

दीवार पर पड़ी कील

दीवार पर ठोंकी एक कील
कपड़े और मच्छर दानी के लिए
तो कुछ दिन में व्यवस्थित सी हो गयी
जिंदगी और अस्त-व्यस्त सा दिखने वाला कमरा
धीरे-धीरे बढ़ने लगी निर्भरता कील पर
कभी सब्जी का थैला,  कभी घर की चाबी
लेकिन कील ने कभी सेवा देने से इनकार नहीं किया
अनामिका अंगुली के बराबर भी ना थी कील
लेकिन उम्मीदें हजारों थी उससे
हैंडबैग,  पापा की छड़ी सब टंगते थे उसपर
पर उस रोज,  जब भींगे कपड़ों की रस्सी टांग दी गयी
तो सर्रर से निकल आयी थी कील दीवार से
और मेरे हाथों में पड़ा शव मेरे नापाक उम्मीदों का...

रजनीश आनंद

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