उस दिन दूधवाले ने कम दूध दिया
मेरी जरूरत ज्यादा की थी, पर दूध कम
खीज में पूछा मैंने, क्यों करते हैं भैया ऐसे
वर्षों से आपके भरोसे हम
फिर ऐन वक्त यह धोखा क्यों?
मेरे सवालों से भरे नेत्रों को देखा नहीं
उस दिन दूधवाले ने, बस नजरें झुका
कह गये, आज बछड़ा दूध चुरा लिया
दूध की बोतल मेरी हाथों में थमा
वे चले गये पवन वेग से
मैं कुढ़ती रही दिन भर
55 के हो गये होंगे पर इतना बड़ा झूठ
उसपर हर जरूरत में मदद की हमने
बिटिया की शादी पर पैसे दिये
बीमारी या कोई और जरूरत रही हो
पर हमारी जरूरत नहीं दिखी उन्हें
अगले दिन जब सुबह आठ बजे
दूध वाले भैया जी आये तो गर्व था चेहरे पर
मुझे एक किलो अधिक दूध देकर बोले
आज सवेरे ही बांध दिया था बछड़े को
गाय से दूर, रंभाती रही गैया
जो कटौती हुई थी वो पूरी कर दी
बोतल हाथ में लिये मैं रसोई में आयी
सफेद दूध रक्त की तरह लाल जान पड़ा
बिलकुल वैसा ही जैसे उस दिन देखा था मैंने
अपने बेटे के खून में सने चेहरे को,
भागकर बालकनी में उसके पीछे गयी थी
खून क्यों छिपा रहा, बताया क्यों नहीं मुझे?
मासूम चेहरा, मेरी ओर करके कहा था उसने
तुम तो आफिस गयी थी मेरे पास कहाँ रहती हो
दूधवाले का बछड़ा और मेरा लाडला
एक से दुख में थे, और मैं पीड़ा से रंभाती...
रजनीश आनंद
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