रविवार, 27 सितंबर 2020

लैप पोस्ट

मेरे कमरे की खिड़की के सीध में है ये लैप पोस्ट
हर रात इसे देखती हूं
कभी मच्छरदानी खोंसते तो 
कभी किताबों को पढ़ते
पता नहीं क्यों? 
निस्तब्ध रात्रि में वाचाल होते हैं ये लैप पोस्ट
मैं समझना चाहती हूं 
इसकी मूक वाणी को
लेकिन इससे नजरें नहीं मिला पाती
ये मेरे सवालों को धुंधला कर देती है। 
जब घिसती हूं बेटे के तलवे पर सरसों का तेल
उसकी झांस से बचने का उपाय 
मैं ढ़ंढ़ती हूं लैप पोस्ट में 
अगर नहीं होता लैप पोस्ट तो? 
चूंकि मै कुछ दूरी बनाकर पूछती हूं मच्छरदानी के अंदर से
जवाब बिखरे नजर आते हैं लैप पोस्ट के नीचे
सड़क डरावनी हो जाती
खो जाता सुरक्षा का एहसास
बेटियां शाम होते दुबकती घरों में
कोई गरीब बच्चा इसके नीचे बड़ा ना बनता
 लैप पोस्ट हमेशा विपरीत परिस्थितियों में रौशन होता है
आंधी तूफान का उसे डर नहीं
ना डर है अकेले पन का
तब ही तो लैप पोस्ट मुझे स्त्रीलिंग लगते है
क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में सृजन औरत का शगल है... 

रजनीश आनंद

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