वो रहती है एक कमरे में
छोटा किंतु मनमाफिक कमरा
उसकी खिड़की बहुत प्यारी है
उसी से निहारती है, वह
दूर पहाड़ी पर बैठे प्रेमी जोड़ों को
कई बार प्रेमियों के शरीर की खुशबू
उसे बेचैन करती है, मन होता है
तितली बन फिर आऊं किसी
फूल का रस चख लूं
या फिर नीले आकाश के आगोश में
चील की तरह उड़ चलूं
कभी पहाड़ी के तालाब में
छपाक से कूदने का मन करता है
मासूम बच्चों की तरह
जिनके इस खेल में होता है सिर्फ विनोद
कभी बगुला बन उसी तलाब से निकाल लूं
चमकीली आंखों वाली मछली
जब अट्टहास करता है बादल
तो मन करता है बाहर जा सोख लूं जल उसका
लेकिन फिर चुपचाप बैठ जाती है खिड़की पर
उस पत्थर को हाथ में कसकर दबाये
जिसे शिवलिंग बताकर माँ ने थमाया था हाथों में
शिव यानी समस्त कामनाओं पर विजय
क्योंकि वह एक शालीन स्त्री है, कामना रहित...
रजनीश आनंद
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