गूगल से साभार |
प्रेम देखिए उनका, वो थी तो क्षत्राणी लेकिन प्रेम यदुवंशी कृष्ण से. मीरा का साहस देखिए, उन्होंने कृष्ण को पति रूप में स्वीकारा और इसके लिए उन्होंने उस विवाह को कभी नहीं स्वीकारा जो उनके वास्तविक जीवन में हुआ था. उन्होंने उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज से शादी तो की, लेकिन कृष्ण के प्रति उनके समर्पण में कोई कमी नहीं आयी. सबसे अद्भुत तो यह है कि मीरा को उनके प्रेम के बदले कुछ मिलने की गुंजाइश भी नहीं थी . यह बात दीगर है कि जिस कृष्ण से उसने नेह लगाया था वह किसी और का हो ही नहीं सकता था. मीरा का कृष्ण तो उसी तरह ढल्रा जैसा उसने चाहा. ऐसा अद्भुत था मीरा का प्रेम.
लेकिन इन दिनों हमारे समाज में प्रेम का जो वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है, क्या उसे प्रेम की संज्ञा देना उचित है. मैं तो इसे प्रेम नहीं कह सकती. यह कुछ भी हो सकता है, लेकिन प्रेम तो नहीं हो सकता. वर्ष 2011 में रांची के संत जेवियर कॉलेज में घुसकर एक युवक ने एक लड़की की हत्या कर दी, वह भी गला काटकर. लड़की का सिर उसके धड़ के पास पड़ा था. कुछ इसी तरह से कोलकाता के निकट बारासात में एक राष्ट्रीय स्तर की बॉलीवॉल खिलाड़ी को उसके तथाकथित प्रेमी ने हाल में सरेआम धारदार हथियार से गला रेतकर मार डाला. ऐसी कई खबरें सामने आती हैं, जहां लड़की ने अपने प्रेमी की हत्या करवा दी, क्योंकि वह शादी से इनकार कर रहा था, तो कहीं ऐसा थी सुना गया है कि लड़की ने शादी से इनकार किया, तो उसपर एसिड अटैक कर दिया गया.
यह प्रेम की आड़ में किया गया ऐसा अपराध है जिसकी माफी नहीं होनी चाहिए. ऐसे लोग क्या मीरा के प्रेम को समझकर उससे कुछ सीख पायेंगे? यह सवाल आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक है.
बहुत खूबसूरत लिखा आपने, प्रेम की पीछे अपराध जिसको मॉफी नही होनी चैहिये !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उमेश जी. अापको मेरा आलेख पसंद आया, आपने प्रशंसा की धन्यवाद
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