शनिवार, 5 मार्च 2016

सच कहती हूं प्रिये...

गूगल से साभार
सच कहती हूं प्रिये
जो मैं जानती
प्रेम इतना तड़पायेगा
कभी प्रेम ना करती
जब जागा था, प्रेम मन में
सिहरन सी हुई थी तन में
बिना स्पर्श के ही
तन-मन भींगा गये थे तुम
भान हुआ था
तुम गिरिधर मेरे और मैं राधा
लेकिन
गिरिधर ने तो
सदा राधा का मान रखा
कभी अपमानित ना होने दिया
फिर क्यों मेरा गिरिधर
मुख मोड़ गया
आंखों में अब आंसू शेष नहीं
ना शेष है प्रेम
ना प्रेम की सिहरन
ना स्पर्श का रोमांच
शेष है तो बस
प्रेम का भ्रम
जो कहता है
अगर जानती मैं प्रिये
प्रेम इतना तड़पायेगा
कभी प्रेम ना करती
कभी प्रेम ना करती...
रजनीश आनंद
05-03-16

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