गूगल से साभार |
चुपके से आया ऋतुराज वसंत
कर मन के तारों को झंकृत
गूंजा एक मधुर स्वर
आओ प्रिय, मोहे अंग लगा लो
ताकि निर्जीव हो चले
शरीर को मिल जाये सजीवता
बांहों का घेरा हो इतना मजबूत
जो जीवन के प्रति बढ़ा जाये
मेरी जिजीविषा
प्रेम को पाने की आतुरता
अमृत बन बरसो प्रिय
रोम-रोम पुलकित हो
अनगिनत नहीं मेरी चाहत
बस अंग लगा कह दो तुम
मैं तुम्हारी, तुम मेरे हो
बस बन मीरा सांवरे की
धन्य कर लूं अपना जीवन
आओ प्रिय, मोहे अंग लगा लो...
रजनीश आनंद
01-04-16
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