मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

ऐसा नहीं है प्रिये कि ...

गूगल साभार
ऐसा नहीं है प्रिये कि 
स्वार्थी है मेरा प्रेम
तुम कर्तव्य पथ पर हो अग्रसर
जानती हूं मैं, लेकिन
कैसे रोकूं उस उद्‌वेग को
जो तुम बिन कर देता है
तन-मन व्याकुल, फिर
चाहत होती है मात्र इतनी
तुम आवाज लगा बुला लो मुझे
गूंथ लो अपनी बाहों में
काश कि तुम्हारे कर्तव्य पथ पर
बन साथी मैं चल पाती
तुम्हारा प्रेम ना सही
साथ मुझे तो मिल जाता
चाह तो यही है मेरी कि
चूमो तो सफलता का शिखर
हां, थोड़ा सा स्वार्थी है मेरा प्रेम
जो यह चाहता है, शिखर पर
जब हो थकान तुम्हें
लगाना आवाज मुझे
क्षण भर में भागी चली आऊंगी मैं
तब भींच लेना तुम बांहों में मुझे
और अहसास करा देना कि
खास हूं मैं तुम्हारे लिए
ऐसा नहीं है प्रिये...
रजनीश आनंद
05-04-2016

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